सोंईकलां। नईदुनिया न्यूज
मातासूला गांव के हनुमानजी के मंदिर पर चल रही श्रीमद् भागवत कथा के पांचवें दिन पंडित प्रमोद शास्त्री ने भगवान रामजन्म व रामविवाह का प्रसंग सुनाया। कथा श्रवण करने के लिए रोजाना बड़ी संख्या में महिला-पुरुष पहुंच रहे हैं।
भक्तों को कथा का रसपान कराते पं. प्रमोद शास्त्री ने कहा कि, यज्ञ के प्रसाद में बनी खीर को राजा दशरथ ने अपनी तीनों रानियों को दी। प्रसाद ग्रहण करने के परिणामस्वरूप तीनों रानियों गर्भवती हो गईं। सबसे पहले महाराज दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या ने एक शिशु को जन्म दिया जो बेहद ही कान्तिवान, नील वर्ण और तेजोमय था। इस शिशु का जन्म चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को हुआ था, जिसे भगवान राम के जन्मोत्सव के रूप में भी मनाया जाता है। उन्होंने कहा कि राजा हरीशचंद्र जिन्होंने सच को धरती पर उतारा था। दूसरे राजा अंबरिष ने एकादशी के महत्व को धरती पर लाया था तथा तीसरे राजा भागीरथ ने धरती पर गंगा को लाया था और चौथे राजा दशरथ ने भगवान श्रीराम को धरती पर लाया था। पृथ्वी पर भक्ति और भगवान का हमेशा संबंध रहा है। राजा हरिशचंद्र से दरिद्र हो गए। हरिशचंद्र अपने पुत्र रोहित व पत्नी के साथ भिक्षा के लिए दर-दर की ठोकरें खाने के बाद भी सत्य की राह नहीं छोड़ी। राजा हरिशचंद्र को श्मशान में चंडाल का काम करना पड़ा था। सर्पदंश से पुत्र की म्रत्यु हो गई, लेकिन उन्होंने सत्य नही छोड़ा। अंत में भगवान श्रीकृष्ण ने राजा हरीशचंद्र को सत्यवादी की उपाधि दी है।
पं. शास्त्री ने श्रीराम-सीता के विवाह की कथा सुनाते हुए बताया कि राजा जनक के दरबार में भगवान शिव का धनुष रखा हुआ था। एक दिन सीता ने घर की सफाई करते हुए उसे उठाकर दूसरी जगह रख दिया। उसे देख राजा जनक को आश्चर्य हुआ, क्योंकि धनुष किसी से उठता नहीं था। राजा ने प्रतिज्ञा किया कि जो इस धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाएगा, उसी से सीता का विवाह होगा। उन्होंने स्वयंवर की तिथि निर्धारित कर सभी देश के राजा और महाराजाओं को निमंत्रण पत्र भेजा। एक-एक कर लोगों ने धनुष उठाने की कोशिश की, लेकिन सफलता नहीं मिली। गुरु की आज्ञा से श्री राम ने धनुष उठा प्रत्यंचा चढ़ाने लगे तो वह टूट गया। इसके बाद धूमधाम से सीता व राम का विवाह हुआ। माता सीता ने जैसे प्रभुराम को वर माला डाली वैसे ही देवता फूलों की वर्षा करने लगे। कथा में पांचवे दिन बड़ी संख्या में महिला-पुरुष कथा सुनने पहुंचे।