श्योपुर। नईदुनिया प्रतिनिधि
श्योपुर के दूरस्थ गांवों में कुम्हार गीली मिट्टी को अलग-अलग रूप और रंग देकर कुल्हड़ से लेकर रोटी सेंकने के लिए तवा तक बना रहे हैं। मिट्टी के बर्तनों की मांग जिले के अलावा आसपास के बारां, सवाई-माधौपुर, पाली और कोटा तक में है। कोरोनाकाल में प्रशासन ने मदद के लिए हाथ आगे बढ़ाया तो इनका कम चल निकला। अब यह लोग परंपरागत चौक छोड़कर इलेक्ट्रिक चौक से काम रहे हैं। परिवार के अलावा गांव में दूसरे लोगों को भी रोजगार दे रहे हैं।
बता दें, कि श्योपुर जिले में मिट्टी से बर्तन बनाने वाले कुम्हार अभी तक परंपरागत पत्थर की चौक से कुल्हड़, दिया, मटके आदि बनाते आ रहे थे। पत्थर का चौक भारी होने के कारण हाथ से चलाते समय कई लोगों के सीने में तेज दर्द भी उठने लगा था। ऐसे में वह अपना काम छोड़कर दूसरे शहरों में नौकरी करने चले गए। कोरोना काल में काम छूटा तो वापस गांव लौटकर आए। आत्मनिर्भर मप्र 2023 के तहत आजीविका मिशन इनकी मदद के लिए आग आई है।
कोरोना ने रोजगार छीना, भूखों मरने की नौबत आई
मकड़ावदा निवासी साहब प्रजापति का कहना है कि उनके घर में चार पीढ़ियों से मिट्टी के बर्तन बनाने का काम होता चला रहा है। परंपरागत पत्थर की चौक चलाने के दौरान अक्सर सीने में तेज दर्द होने लगता था। इसलिए वह अपना काम छोड़कर राजस्थान के जयपुर में नौकरी करने गए थे। कोरोना काल में नौकरी छूट गई। कुछ दिन हालत ठीक होने का इंतजार किया, लेकिन जब भूखों मरने की नौबत आई तो अपने गांव लौट आए। साहब के मुताबिक उनके अलावा गांव में अन्य लोग भी वापस आ गए थे।
लोकल से वोकल में बदल रहे किस्मत
आजीविका मिशन के डीपीएम डॉ. एसके मुदगल के मुताबिक शासन ने गांवों में रोजगार बढ़ाने और लोकल में बने सामान की ब्रांडिंग करने के लिए आत्म निर्भर श्योपुर अभियान चलाया है। इसी के तहत आजीविका मिशन के विशेषज्ञ गांव-गांव पहुंचे। यहां देखा कि जिले में कुम्हार मिट्टी से कई तरह के आकार देते हैं, लेकिन परंपरागत चौक होने से काम काफी धीमा होता है। इसलिए उन्होंने कुम्हारों को हाईटेक करने की योजना तैयार की।
मदद मिली तो दूसरों को भी दे रहे रोजगार
प्रशासन ने जिले में मकड़ावदा, मानपुर, धीरोली, ढोढर, ललितपुरा, बरगवां, कराहल, लाडपुरा, खितरपाल, अगरा सहित अन्य गांवों में आधा सैकड़ा से अधिक कुम्हारों को परंपरागत चौक से छुटकारा दिलाया है। इन्हें इलेक्ट्रिक चौक दिलाई गई है। एक चौकी की कीमत आठ से 10 हजार रुपये है। परंपरागत चौक चलाने से जहां सीने में दर्द होने के कारण काम नहीं हो पाता था। इलेक्ट्रिक चौक बिजली से चलती है। परंपरागत चौक से दिनभर में 200 से 250 कुल्हाड़, 30 से 35 मटका तैयार करते थे। इलेक्ट्रिक चौक से एक दिन में 500 से 800 कुल्हड़ बना रहे हैं। काम बढ़ने से गांव में दूसरों को भी रोजगार दे रहे हैं।
मिट्टी से इन बर्तनों को दे रहे आकार
जिले में इलेक्ट्रिक चौक से कुम्हार कई बर्तनों को आकार दे रहे हैं। इसमें मटका, परात, तवा , सुराही, गुल्लक, ढकणी या ढाकणी, बिलौना, दीपक, कुल्हड़, तावणी, कुंडा, कटोरा, पारी, सिकोरा। इसके अलावा आजकल बहुत से सजावटी आयटम और खिलौने भी बना रहे हैं।
वर्जन : फोटो नंबर
जिले में कुम्हार काफी हुनरमंद हैं। परंपरागत चौक से उन्हें काफी परेशानी होती थी। इसलिए आजीविका मिशन के तहत आधा सैकड़ा कुम्हारों को इलेक्ट्रिक चौक दिलवाई है। कुल्हाड़ की डिमांड अब जगह हो रही है। ऐसे में काम बढ़ने से लोगों को गांव में भी रोजगार मिलेगा।
राकेश कुमार श्रीवास्तव, कलेक्टर श्योपुर।