हरिओम गौड़, श्योपुर। कराहल के बछेरी एवं बड़ौदा के शाहपुरा गांव में दो लोग ऐसी बीमारी से पीड़ित पाए गए हैं जिनका रोग श्योपुर के डॉक्टरों की तो समझ में ही नहीं आ रहा है। मरीजों में एक युवक एवं एक बालिका है। दोनों के पूरे शरीर की त्वचा सांप की खाल जैसी हो गई है।
श्योपुर की सात लाख से ज्यादा की आबादी में अब तक यही दो मरीज सामने आए हैं। मेडिकल साइंस में इस बीमारी को लेमिनर इक थायोसिस नाम से जाना जाता है और करोड़ों लोगों में किसी-किसी में ही यह बीमारी पाई जाती है।
कराहल ब्लॉक के बछेरी गांव की आदिवासी बस्ती में रहने वाले ओमप्रकाश उर्फ तिर्कू (35) पुत्र भांभू आदिवासी के पैर की उंगलियों से लेकर चेहरे तक की त्वचा सांप की खाल जैसी हो गई है। ओमप्रकाश के पिता भंभू के अनुसार पांच महीने की उम्र में ओमप्रकाश के शरीर में खुजली हुई उसके बाद, यह बीमारी ऐसी बढ़ती गई कि, पूरे शरीर की खाल सख्त हो गई। ओमप्रकाश के शरीर की खाल मोटी हो गई है जो जगह-जगह से चटक रही है।
जहां से खाल चटक रही है वहां से खून बहने लगता है। त्वचा को नरम रखने के लिए ओमप्रकाश हर दो से तीन घंटे में पानी में सरसों का तेल मिलाकर पूरे शरीर से लगाता है। ऐसा नहीं करता तो पूरी त्वचा में अकड़न व दर्द होेने लगता है। ओमप्रकाश के चार भाई के अलावा माता-पिता में से किसी को यह रोग नहीं है।
ऐसी ही बीमारी से बड़ौदा तहसील के शाहपुरा गांव में एक 14 साल की आदिवासी बालिका गुड्डी भी पीड़ित है। गुड्डी के पैर की उंगलियों से लेकर चेहरे तक की त्वचा जगह-जगह से चटक रही है। गुड्डी के परिजनों ने भी कई डॉक्टरों को दिखाया लेकिन, उसका इलाज नहीं हुआ।
अनोखी त्वचा ने दिया तिर्कू नाम
ओमप्रकाश की त्वचा के कारण वह बेहद कमजोर है। वह खड़ा भी नहीं पाता इसलिए, भाई या पिता उसे गोद में उठाकर एक से दूसरी जगह ले जाते हैं। तिर्कू ने बताया कि, उसका शरीर गांव के अन्य बच्चों से अलग था। बचपन में ही पूरे शरीर की त्वचा तिरक (दरक) गई थी इसलिए, साथी उम्र के बच्चों ने तिर्कू नाम रख दिया। अब पूरा गांव ओमप्रकाश को तिर्कू नाम से ही जानता व पुकारता है।
रोग से 90 फीसदी त्वचा निकल जाती है
ग्वालियर मेडिकल कॉलेज के त्वचा रोग विभाग के एचओडी डॉ. अनुभव गर्ग ने भी माना कि यह रोग बेहद रेयर केस में आता है। डॉ. गर्ग ने बताया कि उन्होंने अपने जीवन में ऐसे कुछ ही केस देखे है। उन्होंने बताया कि, इंसान की त्वचा कई कोशिकाओं से जुड़कर बनती है।
इन कोशिकाओं को जोड़ने के लिए व्यक्ति के शरीर में ही एक पदार्थ बनता है। जिन लोगों के शरीर में यह पदार्थ नहीं बनता उन्हें लेमिनर इकथायोसिस नाम की बीमारी हो जाती है। इस बीमारी में 90 प्रतिशत तक त्वचा शरीर से निकल जाती है। डॉ. गर्ग ने बताया कि तिर्कू और गुड्डी की बीमारी बहुत खतरनाक स्टेज पर पहुंच गई है।
इनका कहना है
-श्योपुर में ऐसी बीमारी का कोई मरीज तो अब तक सामने नहीं आया है। हम इस बीमारी और इसके अलावा के संबंध में कुछ नहीं बता सकते।
डॉ. जेएन सक्सेना जिला अस्पताल