
Kuno Palpur National Park: शिवपुरी (नईदुनिया प्रतिनिधि)। भारत में पांच माह पहले शुरू हुए चीता प्रोजेक्ट अब तक प्रगति और भविष्य को लेकर शिवपुरी में अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों और भारतीय विशेषज्ञों ने मंथन कियास जिसमें अभी तक की स्थिति संतोषजनक बताते हुए नामीबिया से आए चीतों को जल्द ही खुले जंगल में छोड़ने पर सहमति जताई गई है। हालाकि कब छोड़े जाएंगे, यह तय नहीं हुआ है।
विशेषज्ञों का मानना है कि जंगल में छोड़े जाने के बाद ही चीना पुनर्स्थापाना की असली चुनौती शुरू होगी। ऐसा नहीं है कि आने वाले समय में चीतों की मृत्यु नहीं होगी या किसी अन्य तरह की परेशानी नहीं आएगी, लेकिन इससे घबराना नहीं है एक महाद्वीप से दूसरे महाद्वीप में किसी जीव को पुनर्स्थापित करने जैसा बड़ा काम किया जा रहा है तो उसमें चुनौतियों के लिए भी तैयार रहना चाहिए।
कंसल्टेटिव वर्कशाप आन चीता मैनेजमेंट पर कार्यशाला में दक्षिण अफ्रीका और नामीबिया के 12 चीता विशेषज्ञों ने माना कि चीतों की तीन साल तक सतत निगरानी की जरूरत है। जब उन्हें खुले में छोड़ा जाएगा तो मानीटरिंग महत्वपूर्ण होगी। पहले चरण में दो मादा और एक नर चीता को खुले जंगल में छोड़ा जा सकता है। दक्षिण अफ्रीका में पार्कों में क्षमता से अधिक चीते हो रहे हैं इसलिए भारत को लगातार नियमित अंतराल पर चीते मिलते रहेंगे, बशर्ते उनकी देखभाल ठीक से होती रहे।
चीता प्रबंधन के लिए विख्यात डा. स्टीफन ओ-ब्रायन व डा. लारी मार्कर ने बताया कि पूर्व में एक देश में इस तरह का प्रयोग किया था। वहां पर चीतों को तीन दिन बाद ही खुले जंगल में छोड़ दिया गया और उनकी मौत हो गई। कार्यशाला में मुख्य वन्यप्राणी अभिरक्षक जेएस चौहान, एनसीटीए दिल्ली से सचिव एसपी यादव, आइजी अमित मलिक, डीआइजी राजेंद्र गारवाड़, डब्ल्यूआइआइ के डा. वायवी झाला, सुप्रीम कोर्ट मानीटरिंग कमेटी के अध्यक्ष रंजीत सिंह मौजूद रहे।
प्रजनन से तय होगी परियोजना की सफलता
विशेषज्ञों ने बताया कि चीता परियोजना की सफलता उनका मेटा पापुलेशन और प्रजनन पर निर्भर करेगी। मेटा पापुलेशन यानी जब वह एक क्षेत्र से दूसरे में जाएं, लेकिन कुछ सालों तक चीतों को कूनो से बाहर नहीं जाने दिया जाएगा। ऐसे में दूसरा बिंदु अहम रहेगा, जब प्राकृतिक रूप से चीते कूनो में जनसंख्या बढ़ाने लगेंगे तो योजना को काफी हद तक सफल माना जाएगा।