Ram Mandir Pran Pratistha: शिवपुरी. नईदुनिया प्रतिनिधि। पूरे नगर में घर-घर में लहरा रही भगवा ध्वजाएं, मंगल गीत गाती महिलाएं, श्रीराम के स्वागत के लिए सजे हुए बाजार। इन दिनों बाबा भानगिरि की तपोभूमि करैरा नगरी कुछ ऐसे ही राम के रंग के रंगी हुई है। दृश्य देखकर लगता है मानों अब यह नगरी नहीं रही और इसने अयोध्या काे खुद में उतार लिया है। जब अयोध्या में भगवान श्रीराम की प्राण प्रतिष्ठा होगी तो इस ऐतिहासिक क्षण में ही करैरा के प्राचीन बाबा का बाग बगीचा में भी जयपुर से आई मूर्तियों की (श्रीराम, लक्ष्मण और सीताजी) प्राण प्रतिष्ठा की जाएगी। अयोध्या के साथ ही उसी तर्ज पर यहां भी कार्यक्रम शुरू हो गए हैं। बुधवार 17 जनवरी को 5100 महिलाओं की कलश यात्रा के साथ इस भव्य प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम की शुरुआत हुई। गुरुवार को काशी के विद्वानों के सानिध्य में राम महायज्ञ किया गया तो शुक्रवार को अग्नि स्थापना हुई। 22 जनवरी को दोपहर 12.40 बजे से यहां प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम शुरू होगा। इसके पहले 21 जनवरी को भगवान की चरण पादुकाओं की शोभा यात्रा निकाली जाएगी। आसपास के जो रामभक्त अयोध्या नहीं जा पा रहे हैं वे बगीचा सरकार में ही सनातन के पांच शताब्दी पुराने इस दिव्य स्वप्न को साकार होते हुए देखेंगे। 22 जनवरी को केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया का भी बगीचा सरकार में दर्शन का कार्यक्रम प्रस्तावित है। गौरतलब है कि करैरा बाबा भानगिरि की तपोभूमि है। यहां उन्होंने जिंदा समाधि ली थी। यहां हनुमान जी की प्रतिमा की स्थापना लगभग पांच सौ वर्ष पूर्व उन्होंने ही कराई थी।
करैरा के निवासी ब्रजेश श्रीवास्तव और गणेश दुबे बताते हैं कि जब कभी न्याय न मिलने की बात आती है तो बाबा का बाग बगीचा मंदिर में आपसी विवादों का न्याय भी होता है। लोग पुलिस व न्यायालय जाने से पहले लोग अपना आपसी विवाद हनुमान जी को साक्षी मान कर सहमति से सुलझा लिया करते हैं। मान्यता है कि यहां आकर कोई झूठी कसम नहीं खाता। किसी भी लालच या कारणवश झूठ बोलने वाले व्यक्ति को इसका प्रतिफल भोगना ही पड़ता है। बाबा का बाग बगीचा हनुमान मंदिर पर सच्चे मन से मनौती मांगने से मनोकमनाएं पूरी होती है। मान्यता है कि यहां आकर अर्जी लगाने वालों की मनौती पूरी होती है और कोई भी अर्जी कभी खाली नहीं जाती है। मंदिर पर सैकडों की संख्या में चढ़ाए गए घंटे इस बात के प्रमाण हैं।
बगीचा मंदिर के महंत राजेंद्र गिरि के अनुसार पूर्व में यहां छोटा सा मंदिर बना हुआ था। सिंधिया राजवंश के कार्यकाल के दौरान तत्कालीन महाराज के द्वारा मंदिर को बड़ा करने के उद्देश्य से माधवराव महाराज की 25वीं जन्मशताब्दी के अवसर पर तत्कालीन तहसीलदार मौसर राव एवं मजिस्ट्रेट हरि गणेश को रुपये भेज मंदिर निर्माण का जिम्मा सौंपा था। जब मंदिर निर्माण चल रहा था तभी निर्माण कार्य में कुछ सामग्री कम पड़ने पर नगर के प्राचीन मठ से कुछ सामान मंदिर निर्माण में लाकर लगाया गया। ऐसी मान्यता है कि भगवान इस कारण से क्रोधित हो गए और तहसीलदार व मजिस्ट्रेट को कुष्ठ रोग से ग्रसित कर दिया। फिर किसी विद्वान ने इन्हें सलाह दी कि आप बगीचा मंदिर में जाकर चैत्र नवरात्रि में नौ दिनों तक रामधुन का आयोजन करो। तब इनके द्वारा ब्राह्मणों को साथ लेकर मंदिर में स्थित बढ़ के पेड़ के नीचे 9 दिनों तक रामधुन का आयोजन किया तो वह रोगमुक्त हो गए। यहीं से रामघुन की शुरुआत हुई जो वर्तमान में लगातार जारी है। वर्तमान में ब्राह्मण समाज की कमेटी यह जिम्मेदारी संभाल रही है जिसमें अध्यक्ष डा. द्वारका पाठक, कोषाध्यक्ष राम प्रकाश दुबे, सचिव बृज किशोर तिवारी हैं।