विश्व पर्यटन दिवस पर विशेष
पोहरी का जल मंदिर, भदैयाकुंड, बाणगंगा, चुड़ैल छाज और सुरवाया की गढ़ी को मिले ख्याति तो बढ़ सकते हैं पर्यटक
शिवपुरी। नईदुनिया प्रतिनिधि
एक समय सिंधिया राजघराने की ग्राीष्मकालीन राजधानी रही शिवपुरी में माधव नेशनल पार्क और संगमरमरी छत्री जैसे अनेक पर्यटक स्थल मौजूद हैं। हरियाली से आच्छादित वन, झील, झरने और बारिश के दिनों में पर्यटकों का मन मोह लेने वाले शिवपुरी जिले में पर्यटक स्थलों की भरमार है, लेकिन पर्यटक स्थलों को ख्याति न मिल पाने के चलते वे केवल हमारे बीच ही प्रसिद्धि पाकर सिमटे हुए हैं, अदभुत हैं, आकर्षक हैं, लेकिन पहचान की दरकार है। यदि इन्हें विकसित किया जाए। पर्यटन के मानचित्र पर उकेरा जाए तो पर्यटकों की संख्या बढ़ सकती है। इससे रोजगार की संभावनाएं तो बढ़ेंगी, साथ ही शिवपुरी को प्रदेश ही नहीं, बल्कि देश भर में पहचान मिल सकेगी।
यहां के नेशनल पार्क और छत्री भले ही लोगों के बीच पहचान रखते हों, लेकिन स्थानीय लोगों के अलावा बहुत से ऐसे पर्यटन स्थल हैं, जहां स्थानीय पर्यटक तो बड़ी संख्या में पहुंचते हैं, लेकिन बाहर के पर्यटक नहीं आते। यहां झरने और बाग बगीचे लोगों का मन मोह लेते हैं तो पिकनिक भी लोग यहां जमकर मनाते हैं। लगभग हर मौसम में शिवपुरी पर्यटन की दृष्टि से बेहतर है। बारिश में यहां के झील झरने खिल उठते हैं। चारों ओर हरियाली की चादर बिछ जाती है। नगर के लोग शिवपुरी को मिनी शिमला के नाम से पुकारते हैं।
मान्यताः भदैयाकुंड, गौमुख का पानी पीने से गहराता है पति-पत्नी के बीच प्यार
चांदपाठा तालाब के समीप भदैयाकुंड जलप्रपात है। भदैयाकुंड के नीचे पहाड़ीनुमा चट्टानों के बीच जल प्रपात से पानी बहता है। बारिश के दिनों में यह जलप्रपात लोगों का मन मोह लेता है। यहां झरने के ठीक नीचे एक शिव मंदिर बना हुआ है। इस शिव मंदिर के पास ही गौमुख बने हुए हैं। कहा जाता है कि इन गौमुख का पानी पीने से जहां पेट के विकार दूर होते हैं तो वहीं पति-पत्नी का रिश्ता भी अटूट रहता है। प्यार बढ़ता है। यहां आने वाले पर्यटक शिव मंदिर के दर्शन के साथ-साथ गौमुख का पानी जरूर पीते हैं। इसके विकास के लिए पर्यटन संवर्धन समिति का गठन जिला प्रशासन ने किया था। यहां एक कैफेटेरिया भी बनाया, उसे विकसित किया और पार्क भी बनवाया। यहां अब पर्यटकों की संख्या बढ़ गई है।
महाभारतकालीन हैं बाणगंगा के कुंड
बाणगंगा का इतिहास महाभारत से जुड़ा हुआ है। पांडव जब कौरवों से अपना राजपाठ हार गए थे और उन्हें अज्ञातवास दिया गया था, उसी दौरान पांडव शिवपुरी आए थे। जब पांडवों की मां कुंती को प्यास लगी तो अर्जुन ने यहां तीरों से गंगा उत्पन्ना की और उसके बाद यहां कुछ कुंड भी बनाए, तब से इसका नाम बाणगंगा पड़ा। यहां पहले अस्तित्व में 52 कुंड थे, लेकिन आज कुछ ही कुंड शेष बचे हुए हैं। यहां एक पत्थर का बड़ा शिलालेख भी लगा हुआ है। मंदिर परिसर में ही भीम, नकुल, सहदेव, सास बहू के कुंड भी मौजूद हैं। बाणगंगा के 52 कुंड सिद्धेश्वर मंदिर तक मौजूद थे, लेकिन कई कुंडों पर कब्जा हो गया या देखरेख के अभाव में यह मलबे में दब गए। लेकिन जो कुंड मौजूद हैं, उसमें साल भर पर्यटक पहुंचते हैं। यहां मकर संक्रांति पर आधी रात के बाद से लोग स्नान करने जाते हैं और कुंड में डुबकी लगाते हैं, जबकि श्राद्ध पर्व पर भी यहां खासी भीड़ होती है।
चुड़ैल छाज
माधव नेशनल पार्क की सीमा में चुड़ैल छाज हैं। यहां पर रॉक पेटिंग्स बनी हुई हैं। जिन्हें शैल चित्र भी कहते हैं। घनघोर जंगल में यह चुड़ैल छाज पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बन सकती हैं, लेकिन नेशनल पार्क सीमा में होने के कारण जहां रास्ता ठीक नहीं है। वहीं उचित प्रचार प्रसार न होने और पर्यटन को बढ़ावा न मिलने के चलते आज यह शैल चित्र गुमनामी में हैं। यहां पर कई तरह के शैल चित्र बने हुए हैं। जंगल में स्थित इन शैल चित्रों को देखने का एक अलग ही आनंद है। जंगल में गुफा का ऊपरी हिस्सा बाहर की ओर निकला हुआ है। निचले हिस्से में यह शैल चित्र बने हुए हैं। शैल चित्रों को टार्च की रोशनी से देखा जाता है। माना जाता है कि मानव सभ्यता से पहले के ये शैल चित्र हैं जो देखते ही बनते हैं।
सुरवाया की गढ़ी
शिवपुरी-झांसी फोरलेन पर शहर से 20 किमी दूर फोरलेन झांसी रोड पर सुरवाया गांव में सुरवाया की गढ़ी है। नवी-दसवीं शताब्दी में सहस्त्रवर्धन के गुरु पुरंदर ने शिवमत की शिक्षा देने के लिए इसका निर्माण कराया था। गढ़ी चारों ओर पत्थरों के परकोटे से बनी है। बीच में यहां मंदिर और बावड़ी सहित बड़ी-बड़ी चक्की भी रखी हुई हैं। मंदिर की दीवारों पर कलाकृतियां बनी हुई हैं। बताया जाता है कि अज्ञात वास के दौरान यहां पांडव रहते थे। इन विशालकाय चक्की को भीम ही चलाते थे। भारत पर मुगलों के आक्रमण के समय इसे मिट्टी से ढककर सुरक्षित किया गया था। माधवराव प्रथम ने 1916 में इसका जीर्णोद्धार 16 हजार रुपए खर्च कर कराया था। पुरातत्व विभाग इसकी देखरेख कर रहा है, लेकिन इसे पर्यटन की दृष्टि से बढ़ावा नहीं मिल सका है। गढ़ी तक पहुंचने का रास्ता भी खराब हो गया है। बंदरों की मौजूदगी और पर्यटकों के पहुंचने के बाद छांवदार स्थान न होने से पर्यटक यहां जाते हैं। उन्हें हाल ही वापस लौटना पड़ता है, जबकि इसे विकसित कर दिया जाए तो पर्यटन को एक नई पहचान मिल सकती है।
पोहरी का जल मंदिर, चारों ओर पानी, बीच में भगवान
जिले के पोहरी में बना प्राचीन जल मंदिर अनूठा और पर्यटकों के बीच खासा लोकप्रिय है। इस मंदिर का निर्माण 1811 में बालाबाई शीतौले की जागीर के समय राधाकृष्ण बंसल खजांची ने कराया था। मंदिर में भगवान शंकर और गणेश की प्रतिमा स्थापित हैं। मंदिर के मुख्य द्वार पर भगवान राधाकृष्ण भी विराजमान हैं। शहर से पोहरी के जलमंदिर की दूरी 35 किमी है। मंदिर के रास्ते या उसके मुख्य द्वार तक पहुंचने पर अंदर प्रवेश करते ही वहां के अद्भुत कलात्मक स्वरूप को देखते ही लोग आश्चर्यचकित हो जाते हैं। मंदिर के चारों ओर बने दो मंजिल दालानों के बीच पानी का एक कुंड खूबसूरत नजर आता है। मंदिर के परकोटे में फिल्म डाकू हसीना के कई दृश्य भी फिल्माए गए। बरसात में नीचे की दोनों मंजिल जलमग्न रहती हैं। मंदिर की सबसे खास बात यह है कि कुंड के ऊपर दिखती मंदिर की तीन मंजिलों के नीचे भी एक मंदिर है, जो सदैव पानी में डूबा रहता है। कोई भी मौसम हो इस मंजिल का पानी कभी भी कम नहीं होता है।
13 कैप्सन-यह हैं सुरवाया की गढ़ी का विहंगम नजारा, जिसे ड्रोन की नजर देखा तो कुछ इस तरह दिखाई दी गढ़ी।
14 कैप्सन-यह है बाणगंगा स्थित कुंड कुछ इसी अंदाज में एक समय 52 कुंड यहां बने हुए थे।
15, 16 कैप्सन-चुड़ैल छाज का यह नजारा नेशनल पार्क की सीमा में दिखाई देता है।
17 कैप्सन-पोहरी का जल मंदिर जो चारो ओर पानी से घिरा हुआ है।
18 कैप्सन-भदैया कुंड के झरने में नहाने का लुत्फ लेते पर्यटक।