ओरछा। नईदुनिया न्यूज
वेद और पुराणों में कल्पवृक्ष का उल्लेख मिलता है। कहते हैं कि कल्पवृक्ष स्वर्ग का एक विशेष वृक्ष है। पौराणिक धर्मग्रंथों और हिन्दू मान्यताओं के अनुसार यह माना जाता है कि इस वृक्ष के नीचे बैठकर व्यक्ति जो भी इच्छा करता है, वह पूर्ण हो जाती है। क्योंकि इस वृक्ष में अपार सकारात्मक ऊर्जा होती है। यहां लगे कल्प वृक्ष का वैज्ञानिक आधार पर परीक्षण किया गया। वन अधिकारियों और थाना प्रभारी सहित कई लोगों की मौजूदगी वैज्ञानिक महत्व को जानने का प्रयास किया गया। गुरुवार को धार्मिक नगरी ओरछा स्थित विवेकानंद चौराहे के पास कल्पवृक्ष का वैज्ञानिक आधार पर परीक्षण कराया गया। इस मौके पर ओरछा रेंजर एमएस राणा थाना प्रभारी ओरछा नरेंद्र त्रिपाठी, आरक्षक इकबाल, वन रक्षक बाबूलाल शर्मा एवं अन्य ग्राम वासियों के साथ कल्पवृक्ष की आयु लंबाई चौड़ाई का आकलन कराया गया। ओरछा में लगे कल्पवृक्ष की मौके पर मोटाई 15 मीटर तथा ऊंचाई लगभग 40 मीटर पाई गई। कल्पवृक्ष की पत्तियों, फूलों तथा फलों के आधार पर परीक्षण किया गया। कल्पवृक्ष का बॉटनिकल नाम एडन सोनिया डिजीटाटा है। कल्पवृक्ष की संभावित उम्र लगभग 500 वर्ष से ऊपर पाई गई कल्पवृक्ष की वास्तविक आयु जानने के लिए बॉटनिकल विशेषज्ञों से भी मार्गदर्शन लिया जाएगा। बताया गया कि इसके बीजों का तेल हृदय रोगियों के लिए लाभकारी होता है। इसके तेल में एचडीएल, हाईडेंसिटी कोलेस्ट्रॉल होता है। इसके फलों में भरपूर रेशा, फाइबर होता है। मानव जीवन के लिए जरूरी सभी पोषक तत्व इसमें मौजूद रहते हैं। पुष्टिकर तत्वों से भरपूर इसकी पत्तियों से शरबत बनाया जाता है और इसके फल से मिठाइयां भी बनाई जाती हैं। धार्मिक शास्त्रों में कल्पवृक्ष का उल्लेख मिलता है। इस संबंध में पंडित सुरेन्द्र मोहन दुबे का कहना है कि पुराणों के अनुसार समुद्र मंथन के 14 रत्नों में से एक कल्पवृक्ष की भी उत्पत्ति हुई थी। समुद्र मंथन से प्राप्त यह वृक्ष देवराज इन्द्र को दे दिया गया था और इन्द्र ने इसकी स्थापना सुरकानन वन हिमालय के उत्तर में कर दी थी। पद्मपुराण के अनुसार पारिजात ही कल्पतरु है। इसी प्रकार रेंजर राणा का कहना है कि ओलिएसी कुल के इस वृक्ष का वैज्ञानिक नाम ओलिया कस्पीडाटा है। यह यूरोप के फ्रांस व इटली में बहुतायत मात्रा में पाया जाता है। यह दक्षिण अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया में भी पाया जाता है। भारत में इसका वानस्पतिक नाम बंबोकेसी है। इसको फ्रांसीसी वैज्ञानिक माइकल अडनसन ने 1775 में अफ्रीका में सेनेगल में सर्वप्रथम देखा था। इसी आधार पर इसका नाम अडनसोनिया टेटा रखा गया। इसे बाओबाब भी कहते हैं। वृक्षों और जड़ी-बूटियों के जानकारों के मुताबिक यह एक बेहद मोटे तने वाला फलदायी वृक्ष है, जिसकी टहनी लंबी होती है और पत्ते भी लंबे होते हैं। दरअसल, यह वृक्ष पीपल के वृक्ष की तरह फैलता है और इसके पत्ते कुछ-कुछ आम के पत्तों की तरह होते हैं। इसका फल नारियल की तरह होता है, जो वृक्ष की पतली टहनी के सहारे नीचे लटकता रहता है। इसका तना देखने में बरगद के वृक्ष जैसा दिखाई देता है। इसका फूल कमल के फूल में रखी किसी छोटी सी गेंद में निकले असंख्य रुओं की तरह होता है। पीपल की तरह ही कम पानी में यह वृक्ष फलता-फूलता हैं। सदाबहार रहने वाले इस कल्पवृक्ष की पत्तियां बिरले ही गिरती हैं, हालांकि इसे पतझड़ी वृक्ष भी कहा गया है।
दीघार्यु वृक्ष होता है कल्पवृक्ष
शास्त्रों का मत है कि यह वृक्ष लगभग 70 फुट ऊंचा होता है और इसके तने का व्यास 35 फुट तक हो सकता है। 150 फुट तक इसके तने का घेरा नापा गया है। इस वृक्ष की औसत जीवन अवधि 2500-3000 साल है। कार्बन डेटिंग के जरिए सबसे पुराने फर्स्ट टाइमर की उम्र 6 हजार साल आंकी गई है।
भारत में कहां पाया जाता है कल्पवृक्ष
औषध गुणों के कारण कल्पवृक्ष की पूजा की जाती है। भारत में रांची, अल्मोड़ा, काशी, नर्मदा किनारे, कर्नाटक आदि कुछ महत्वपूर्ण स्थानों पर ही यह वृक्ष पाया जाता है। पद्मपुराण के अनुसार परिजात ही कल्पवृक्ष है। यह वृक्ष उत्तरप्रदेश के बाराबंकी के बोरोलिया में आज भी विद्यमान है। कार्बन डेटिंग से वैज्ञानिकों ने इसकी उम्र 5000 वर्ष से भी अधिक की बताई है। जानकारी के अनुसार ग्वालियर के पास कोलारस में भी एक कल्पवृक्ष है, जिसकी आयु 2 हजार वर्ष से अधिक की बताई जाती है। ऐसा ही एक वृक्ष राजस्थान में अजमेर के पास मांगलियावास में है और दूसरा पुट्टपर्थी के सत्य साईं बाबा के आश्रम में मौजूद है।
कल्पवृक्ष की पांच पत्तियां करतीं हैं खुराक पूरी
कल्प वृक्ष यह एक परोपकारी मेडिस्नल प्लांट अर्थात दवा देने वाला वृक्ष है। इसमें संतरे से 6 गुना ज्यादा विटामिन सी होता है। गाय के दूध से दोगुना कैल्शियम होता है और इसके अलावा सभी तरह के विटामिन पाए जाते हैं। इसकी पत्ती को धो-धाकर सूखी या पानी में उबालकर खाया जा सकता है। पेड़ की छाल, फल और फूल का उपयोग औषधि तैयार करने के लिए किया जाता है। सेहत के लिए इस वृक्ष की 3 से 5 पत्तियों का सेवन करने से हमारे दैनिक पोषण की जरूरत पूरी हो जाती है। शरीर को जितने भी तरह के सप्लीमेंट की जरूरत होती है इसकी 5 पत्तियों से उसकी पूर्ति हो जाती है। इसकी पत्तियां उम्र बढ़ाने में सहायक होती हैंए क्योंकि इसके पत्ते एंटी.ऑक्सीडेंट होते हैं। यह कब्ज और एसिडिटी में सबसे कारगर है। इसके पत्तों में एलर्जी, दमा, मलेरिया को समाप्त करने की शक्ति है। गुर्दे के रोगियों के लिए भी इसकी पत्तियों व फूलों का रस लाभदायक सिद्ध हुआ है।
21 टीकेजी 1, 2, 3, 4, और 5
कृल्पवृक्ष का परीक्षण करते रेंजर एवं अन्य कर्मचारी, कृल्पवृक्ष के फल को देखते रेंजर, कृल्पवृक्ष का मुआयना करते रेंजर, कृल्पवृक्ष का अवलोकन करते रेंजर