
नईदुनिया प्रतिनिधि, उज्जैन। लाड़ली बहना योजना को अब केवल मासिक सहायता तक सीमित न रखते हुए राज्य सरकार इसे महिलाओं की स्थायी आजीविका और आर्थिक आत्मनिर्भरता से जोड़ने जा रही है। उज्जैन जिले में योजना से जुड़ी करीब तीन लाख 40 हजार महिलाएं हैं, जिनमें से अनेक के लिए हर माह मिलने वाली राशि पहले ही स्वावलंबन की दिशा में सहारा बनी है।
अब इसी आधार को मजबूत करते हुए सरकार महिलाओं को नियमित और सम्मानजनक आय का स्थायी मंच देने की तैयारी में है। इसकी शुरुआत उज्जैन और अनूपपुर से पायलट प्रोजेक्ट के रूप में की जाएगी, जिसे सफल होने पर अन्य जिलों में लागू किया जाएगा।
नई पहल के तहत लाड़ली बहनों को हैंडलूम और हस्तशिल्प गतिविधियों से जोड़ा जाएगा। चयनित महिलाओं को लूम और चरखा उपलब्ध कराए जाएंगे, ताकि वे घर से ही बुनाई और कताई का कार्य कर सकें। साथ ही बुनाई, डिजाइन, रंगाई और फिनिशिंग का व्यावहारिक प्रशिक्षण दिया जाएगा। उन्नत उपकरणों के माध्यम से उत्पादों की गुणवत्ता बढ़ाई जाएगी, ताकि वे सीधे बाजार की मांग के अनुरूप हों।
लाड़ली बहनों द्वारा तैयार साड़ी, स्टोल, वस्त्र और हस्तशिल्प उत्पाद मृगनयनी, विंध्या वैली, कबीरा और प्राकृत जैसे सरकारी ब्रांड के माध्यम से बेचे जाएंगे। इन ब्रांडों के विक्रय केंद्र जिला स्तर तक विस्तारित किए जाएंगे, जिससे बाजार तक पहुंच आसान होगी। साथ ही फ्रेंचाइजी माडल लागू किया जाएगा, जिसमें लाड़ली बहनों के समूह और स्थानीय उद्यमी स्वयं बिक्री केंद्र संचालित कर सकेंगे। इससे बिचौलियों की भूमिका कम होगी और महिलाओं को बेहतर मूल्य मिलने की संभावना बढ़ेगी।
हैंडलूम-हस्तशिल्प क्षेत्र में एक महिला छह से 12 हजार रुपये तक मासिक अतिरिक्त आय अर्जित कर सकती है। समूह आधारित उत्पादन से आय और बढ़ सकती है। यह अनुमान खादी एवं ग्रामोद्योग इकाइयों और महिला स्व-सहायता समूहों की औसत आय पर आधारित है।
उज्जैन का भैरवगढ़ क्षेत्र पहले से ही बटिक कला का प्रमुख केंद्र है। यहां बटिक, सिलाई और संबंधित कार्यों से जुड़े करीब 1200 लोग कार्यरत हैं, जिनकी औसत दैनिक आय 300 से 400 रुपये है। जिले में बटिक प्रिंट, एंब्रायडरी, ज्वेलरी, मूर्तिकला, मांडना, काष्ठशिल्प, कशीदाकारी, लाख शिल्प और टेराकोटा जैसे क्षेत्रों के पंजीकृत हस्तशिल्पी मौजूद हैं, जो कई लोगों को रोजगार भी दे रहे हैं। यह आधार योजना को जमीन पर उतारने में सहायक माना जा रहा है।
लाड़ली बहनों के उत्पादों को सोशल मीडिया और ई-कामर्स प्लेटफार्म के जरिए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय बाजार तक पहुंचाने की रणनीति भी बनाई गई है। इससे स्थानीय उत्पादों को बड़े शहरों और विदेशों में पहचान मिलने की संभावना है।