
नईदुनिया प्रतिनिधि, उज्जैन। हाई कोर्ट की इंदौर खंडपीठ ने उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य विश्वविद्यालय द्वारा वर्ष 2022 की पीएचडी प्रवेश परीक्षा को पूरी तरह निरस्त करने के निर्णय को अनुचित करार दिया है। कोर्ट ने साफ शब्दों में कहा कि कुछ अभ्यर्थियों और अधिकारियों की कथित गड़बड़ी के आधार पर पूरी परीक्षा निरस्त करना न्यायसंगत नहीं है।
जो विद्यार्थी ईमानदारी से परीक्षा में सफल हुए हैं, उन्हें सामूहिक दंड नहीं दिया जा सकता। इस फैसले के बाद विश्वविद्यालय ने कोर्ट के आदेश के अनुपालन में परिणाम और प्रवेश बहाली की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने का निर्णय लिया है।
यह निर्णय जस्टिस विवेक रूसिया और जस्टिस बिनोद कुमार द्विवेदी की खंडपीठ ने पीएचडी प्रवेश परीक्षा-2022 की निरस्ती के खिलाफ दायर याचिका (डब्ल्यूपी 31954/2023) पर सुनवाई के बाद दिया। हाई कोर्ट ने 27 जुलाई 2023 को जारी उस अधिसूचना को याचिकाकर्ताओं के संदर्भ में निरस्त कर दिया, जिसके तहत पूरी परीक्षा को रद किया गया था।
‘कोर्ट ने निर्देश दिए कि योग्य अभ्यर्थियों के परीक्षा परिणाम और प्रवेश को यथावत बहाल रखा जाए।’ कोर्ट के आदेश के बाद विश्वविद्यालय की कार्य परिषद की बैठक में इस प्रकरण पर चर्चा हुई। परिषद के समक्ष न्यायालय का आदेश रखा गया।
इसमें यह स्पष्ट किया गया था कि जब जांच में दोषी अभ्यर्थियों और जिम्मेदार अधिकारियों की पहचान हो चुकी है, तब पूरी परीक्षा निरस्त करना मनमाना और असंगत निर्णय माना जाएगा। कार्य परिषद ने यह भी माना कि कोर्ट के निर्देशों की अनदेखी से विश्वविद्यालय नए कानूनी विवादों में उलझ सकता है और उसकी अकादमिक साख पर प्रतिकूल असर पड़ेगा।
इसी को ध्यान में रखते हुए परिषद ने कोर्ट के आदेश के अनुसार आगे की कार्रवाई और बहाली प्रक्रिया के लिए फाइल औपचारिक रूप से आगे बढ़ाने की स्वीकृति दी। विधिक राय लेकर परिषद की आगामी बैठक में प्रकरण पुन: आगामी कार्रवाई के लिए रखा जाएगा।
‘हाई कोर्ट ने पीएचडी प्रवेश परीक्षा-2022 को कार्य को रद करना अनुचित ठहराया है। कोर्ट के आदेश के पालन में बहाली की कार्रवाई करने को कार्य परिषद की बैठक में प्रस्ताव पर चर्चा हुई। आगामी बैठक में प्रस्ताव फिर रखा जाएगा।
अनिल शर्मा, कुलसचिव, सम्राट विक्रमादित्य विश्वविद्यालय