
धीरज गोमे, नईदुनिया उज्जैन(Lal Bahadur Shastri Jayanti 2024)। पूर्व प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री की सादगी के किस्से अक्सर चर्चा में रहते हैं। ऐसा ही एक किस्सा 26 मार्च 1955 को उज्जैन में घटित हुआ था, जब वे केंद्रीय रेल एवं परिवहन मंत्री थे। यहां उज्जैन-देवास-इंदौर रेलवे लाइन का लोकार्पण और बड़नगर मार्ग के लिए चक्रतीर्थ के समीप शिप्रा नदी पर पुल का शिलान्यास करने आए थे।
वे रेल से केवल एक अधिकारी के साथ उज्जैन पहुंचे थे। उन्होंने पहले रेलवे लाइन का लोकार्पण किया था, फिर पुल का शिलान्यास। पुल निर्माण स्थल पर पहुंचने के लिए किसी तरह से एक कार की व्यवस्था उनके लिए की गई थी। वहां पहुंचकर उन्होंने शिलालेख पर पुष्प अर्पित किए।
दीप प्रज्वलित कर शिलालेख की आरती की और प्रसाद स्वरूप उपस्थित 10-12 लोगों को पेड़े बांटे। उस कार्यक्रम के साक्षी मौजूदा प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. शिव चौरसिया हैं। उन्होंने 'नईदुनिया' को बताया कि जब वे 16 वर्ष के थे। शिप्रा नदी में अपने चार-पांच मित्रों के साथ नहा रहे थे।
देखा कि तीन कारें शिप्रा किनारे आकर रुकीं और कुछ लोग वहां पूजन करने लगे। कौतूहलवश मैं और मेरे मित्र भी वहां पहुंच गए। देखा कि शास्त्री जी पूजन कर रहे थे। उन्होंने पूजन पश्चात मुझे और मेरे मित्रों को पेड़े का प्रसाद बांटा और दुलार किया। तब पुलिसवाले भी गिनती के दो-तीन ही थे। उनकी इस सादगी ने सभी का दिल जीत लिया था। तब से लेकर आज तक डॉ. शिव चौरसिया शास्त्री जी से जुड़ा यह किस्सा सभी को बताते हैं।