Madhya Pradesh News: धीरज गोमे, उज्जैन । मुस्कुराती ये तस्वीर 87 वर्षीय दादी शांतिदेवी शर्मा की है, जिन्होंने 30 साल पहले कैंसर को हराने को बाद अब कोरोना को भी मात दे दी। जांच रिपोर्ट निगेटिव देख वे मुस्कुराई और नईदुनिया से बोली-जीने के लिए आशावादी रहें और खुश रहने की वजह बनें। मैंने यही किया।
शांतिदेवी पांचवीं पास एक आत्मनिर्भर महिला हैं, जिन्होंने युवा अवस्था में पापड़-बड़ी और सितारों वाली साड़ियां तैयार कराकर बेचने का काम किया। यानी खुद तो आगे बढ़ी औरों को भी रोजगार से जोड़कर उन्हें आगे बढ़ने का अवसर दिया। उनकी पांच बेटी और दो बेटों (एक का 30 साल पहले निधन हो चुका) का परिवार है। पति की भी करीब 30 साल पहले मौत हो चुकी है। शांतिदेवी की एक बेटी भारती तिवारी, निजी स्कूल की प्राचार्य और भारत विकास परिषद महाकाल की सदस्य हैं।
उन्होंने बताया कि मम्मी तिरुपति गोल्ड कालोनी में अकेली ही रहती हैैं। उन्हें किसी पर आश्रित रहना शुरू से पसंद नहीं है, इसलिए अपने जमाने में पापड़-बड़ी, साड़ी का व्यवसाय किया। घर का काम करने को लिए एक मेड लगा रखी थी, जिनका कुछ दिन पहले ही कोरोना की वजह निधन हो गया। मम्मी की जांच रिपोर्ट भी उसी दरमियान पाजिटिव आई। सकारात्मक और आशावादी हैं पहले दो दिन होम आइसोलेशन में रखा और फिर आठ अप्रैल को अमलतास अस्पताल में भर्ती किया।
बड़े भैया मनमोहन शर्मा और भतीजे प्रशांत ने समय-समय पर मां की सेवा की। मां के चेहरे पर कभी मायूसी नहीं देखी। वे हमेशा सकारात्मक और आशावादी रहीं। इसका नतीजा है कि कैंसर को हराने के बाद वे कोरोना को भी हरा पाईं, जबकि उनकी एंजियोग्राफी हो चुकी है। वे 40 साल से शुगर की मरीज भी हैं। डाक्टरों के अनुसार एक-दो दिन में अस्पताल से छुट्टी हो जाएगी।
बेटा रहा साथ
ये वह वक्त है जब सही जानकारी से अनभिज्ञ पड़ोसी क्या, अपने भी साथ छोड़ रहे, जबकि लोगों को सावधान, सकर्त रहकर हमेशा साथ देना चाहिए। इसकी मिसाल शांतिदेवी के पुत्र बने। वे कोरोना से बचाव कर 20 दिन मां की समय-समय पर सेवा करते रहे। आक्सीजन लेवल जांचना, गर्म पानी पिलाना, हंसी-मजाक की बाते करना उनका रूटीन बन गया था।