राजेश वर्मा, उज्जैन। श्रावण मास में शिव भक्तों के लिए अच्छी खबर आई है। महाकाल मंदिर के आंगन में भूगर्भ से निकले एक हजार साल पुराने शिव मंदिर का पुनर्निर्माण शुरू हो गया है। वर्ष 2020-21 में नवनिर्माण के लिए मंदिर परिसर में की जा रही खोदाई के दौरान भूमि से यह मंदिर प्राप्त हुआ था। मध्य प्रदेश पुरातत्व विभाग ने मंदिर के पुनस्र्थापना की योजना बनाई थी। किंतु एक हजार साल पहले जिस काले पत्थर से मंदिर का निर्माण हुआ था, वैसा ही पत्थर ढ़ूंढने में विभाग को चार साल लग गए। अब राजस्थान में उसी प्रकृति का पत्थर मिल गया है।
मध्य प्रदेश पुरातत्व विभाग के डॉ. रमेश यादव ने बताया देश विदेश से भगवान महाकाल के दर्शन करने आने वाले भक्त परमारकाल में एक हजार साल पहले बनाए गए शिव मंदिर को भी निहार सकेंगे। भूगर्भ से निकले इस मंदिर के पुनर्निर्माण की योजना करीब चार साल पहले बनाई जा चुकी थी। लेकिन पुरातन मंदिर जिस काले पत्थर का बना है, उसे आकार देने के लिए उसी प्रकार के पत्थर की आवश्यकता थी। इसे सेंड स्टोन कहते हैं।
उज्जैन तथा आसपास के जिलों में भी वैसा पत्थर मिल सकता था, लेकिन इन क्षेत्रों में मिलने वाला काला पत्थर जिसे हम बसाल्ट कहते हैं, काफी हार्ड होता है। इसे जरूरत के अनुसार तराशना काफी मुश्किल काम है। इसलिए हम उसी प्रकृति का का नरम पत्थर ढूंढ रहे थे।
आखिरकार राजस्थान में हमें यह पत्थर प्राप्त हुआ है। मंदिर निर्माण के लिए कारीगर भी राजस्थान से बुलवाए गए हैं। यह कारीगर राजस्थानी पत्थर को तराशने का हुनर रखते हैं। साथ ही इन्हें मंदिरों के पुनर्निर्माण का भी अनुभव है।
सन 2020-21 में खोदाई के दौरान एक हजार साल पुराने शिव मंदिर का आधार भाग, भारवाही कीचक, स्तंभ, आमलक, शिवलिंग, गणेश, माता चामुंडा, भगवान कार्तिकेय की पत्नी कुमारी आदि की मूर्तियां प्राप्त हुई थी। विभाग ने इन्हें मंदिर परिसर में ही संरक्षित कर रखा है। भक्त श्रावण मास में खुले में रखे गए एक हजार साल पुराने शिवलिंग की पूजा अर्चना भी कर रहे हैं।
पुरातत्व विभाग ने मंदिर निर्माण के लिए भूगर्भ से प्राप्त आधार भाग व भग्न अवशेषों की नंबरिंग करा ली है। अब आधार भाग को खोला जाएगा, अर्थात इसके पत्थरों को निकालकर अलग-अलग कर लिया जाएगा। इसके बाद इसमें फिलिंग की जाएगी तथा नंबरों के आधार पर पत्थरों को फिर से जोड़ दिया जाएगा। नंबर के आधार पर पत्थरों को जोड़ने से यह अपने आप अपने मूल स्वरूप में आकर ले लेगा।
महाकाल मंदिर समिति ने विश्व को जल संरक्षण का संदेश देने के लिए जल स्तंभ की स्थापना की है। चांदी से निर्मित इस जल स्तंभ का लोकार्पण संघ प्रमुख डॉ. मोहन भागवत ने किया था। जिस समय इसकी स्थापना की गई थी, सौंदर्य करण के लिए फव्वारे, फसाड लाइट आदि लगाई गई थी। लेकिन अब इस स्तंभ की और किसी का ध्यान नहीं है।
मंदिर समिति प्रतिमाह साफ सफाई पर लाखों रुपये खर्च करती है, लेकिन इसकी साफ सफाई नहीं हो पा रही है। होद में गाद, गंदगी जमा है। मंदिर प्रशासन को इस महत्वपूर्ण धरोहर के रख रखाव पर ध्यान देना चाहिए।