उज्जैन (नईदुनिया प्रतिनिधि)। कार्तिक पूर्णिमा पर सोमवार को राजाधिराज महाकाल रजत पालकी में सवार होकर तीर्थ पूजन के लिए मोक्षदायिनी शिप्रा के रामघाट पहुंचे। सवारी मार्ग पर अवंतिकानाथ की एक झलक पाने के लिए आस्था का सैलाब उमड़ा। देशभर से आए हजारों भक्तों ने भगवान महाकाल के दर्शन किए।
बता दें कार्तिक अगहन मास में निकलने वाली सवारियों के क्रम में 4 दिसंबर को अगहन मास की पहली सवारी निकलेगी।शाम 4 बजे प्रशासक संदीप कुमार सोनी ने भगवान महाकाल के मनमहेश रूप का पूजन कर पालकी को नगर भ्रमण के लिए रवाना किया।
मंदिर के मुख्य द्वार पर शस्त्रबल की टुकड़ी ने राजाधिराज को सलामी दी इसके बाद कारवा शिप्रा तट की ओर रवाना हुआ। महाकाल मंदिर से शुरू होकर सवारी कोटमोहल्ला, गुदरी चौराहा, बक्षी बाजार, कहारवाड़ी, रामानुजकोट होते हुए शिप्रा के रामघाट पहुंची। यहां महाकाल पेढ़ी पर पालकी को विराजित कर पुजारियों ने भगवान महाकाल व तीर्थ का पूजन किया।
पश्चात सवारी राणौजी के छत्री घाट से होते हुए शिप्रा के छोटे पुल, गणगौर दरवाजा, कार्तिक चौक, ढाबारोड,टंकी चौराहा, गोपाल मंदिर, पटनी बाजार होते हुए शाम 6.30 बजे पुन: मंदिर पहुंची। पं.महेश पुजारी ने बताया कार्तिक मास की आखिरी सवारी में पूर्णिमा का संयोग बना। कार्तिक पूर्णिमा पर तीर्थ पूजन का विशेष महत्व है।
ऐसे शुभ दिन समस्त चराचर जगत की खुशहाली के लिए पुजारियों ने शिप्रा तट पर भगवान महाकाल की ओर से तीर्थ का पूजन किया। भगवान महाकाल की सवारी में बीते 35 सालों से सेवा दे रहे भस्म रमैया भक्त मंडल ने कार्तिक अगहन मास की दूसरी सवारी में भी जाेरदार प्रस्तुति से समा बांध दिया।
मंडल के करीब 50 सदस्य मंडल प्रमुख मौनी बाबा डमरू वाले के सानिध्य में झांझ डमरू बजाते निकले। शिव प्रिय वद्यों की मंगल ध्वनी से धर्मधानी गुंजायमान हो गई। सवारी में शामिल भस्म रमैया रथ भी खासे आकर्षण का केंद्र रहा। रथ पर सवार वाद शहनाई व नगाड़े बजाते निकले।
कार्तिक-अगहन माह में सोमवार को भगवान महाकाल की दूसरी सवारी निकाली गई। सभा मंडप में विधिवत पूजन के बाद शाम चार बजे राजाधिराज की पालकी शाही ठाठबाट के साथ नगर भ्रमण के लिए रवाना हुई। मंदिर के मुख्य द्वार पर सशस्त्र बल की टुकड़ी ने अवंतिकानाथ को सलामी दी।
इसके बाद कारवां शिप्रा तट की ओर रवाना हुआ। महाकाल मंदिर से शुरू होकर सवारी मोक्षदायिनी शिप्रा के रामघाट पहुंची। यहां पुजारी शिप्रा जल से भगवान महाकाल का अभिषेक कर पूजा-अर्चना की। पश्चात सवारी शिप्रा के राणोजी छत्री घाट के रास्ते शिप्रा के छोटे पुल आदि से होते हुए शाम सात बजे पुन: महाकालेश्वर मंदिर पहुंचेगी।