Ujjain News: नईदुनिया प्रतिनिधि, उज्जैन। मोक्षदायिनी शिप्रा नदी का चिंताजनक स्वरूप मंगलवार को फिर सामने आया। उस नदी का जिसे ‘मां’ कहते, मानते और पूजते भी है। क्योंकि आरंभकाल से ये मां की भांति उज्जैनवालों का भरण-पोषण कर रही। अभ भी पीने को पानी दे रही और खेतों की मिट्टी उपजाऊ बना रही। इसके ही सहारे हजारों परिवारों का घर-संसार चल रहा। पर कार्तिक पूर्णिमा के अगले दिन इस नदी को जिसने भी देखा उसका मन व्यथित हो गया। सबकी जुबां पर एक ही वाक्य था- ‘इसका ऐसा हश्र करने वालों को अपनी जिम्मेदारी समझना होगी।’
पहली तस्वीर त्रिवेणी पुल के नीचे की है जहां पड़ोसी शहर इंदौर से छोड़े जा रहे केमिकल युक्त प्रदूषित पानी की वजह से शिप्रा के आंचल में झाग ही झाग तैर रहा है। दूसरी तस्वीर रामघाट की है जहां दीपों के साथ अर्पित कचरे का ढेर नदी की सतह पर जमा हो गया है। तीसरी तस्वीर, मुक्तिधाम चक्रतीर्थ के सामने स्थित घाट की है जहां अस्पताल और टेंटवालों के धोए चादर-तकिये, पर्दे सूखाए जा रहे हैं। ये नजारा देख प्रत्यक्षदर्शियों ने कहा कि शिप्रा को प्रवाहमान एवं स्वच्छ बनाए रखना सरकार और समाज की संयुक्त जिम्मेदारी है।
सरकार को इंदौर के सीवेज युक्त नालों का प्रदूषित पानी शिप्रा में मिलने से रोकने के लिए ट्रीटमेंट प्लांट लगाने, उपचारित पानी का उपयोग सड़कों की धुलाई, सिंचाई एवं औद्योगिक उपयोग में कराना चाहिए। स्थानीय निकाय को शहरी नालों का पानी शिप्रा में न मिलने देने का ठोस प्रबंध करना चाहिए। समाज का दायित्व है कि वो किसी भी तरह का कचरा शिप्रा में न डाले। पानी का महत्व समझे। पीने के पानी में किसी भी तरह का गंदा पानी या कचरा न मिलने दे।
मुक्तिधाम चक्रतीर्थ के सामने स्थित घाट पर धोकर सुखाए अस्पताल और टेंटवालों के पर्दे, चादर।
नदी का पानी खराब करने वालों के लिए कानूनी रूप से सजा और अर्थदंड का प्राविधान है। बावजूद बीते दो दशकों में उज्जैन के किसी जनप्रतिनिधि, अफसर या उद्यमी पर कार्रवाई न होना सवाल उठाता है। जबकि इसी अवधि में शिप्रा निरंतर प्रदूषित होती चली गई। वो भी तब जबकि इसके सुधार के लिए सरकार ने अरबों रुपये खर्चे।
रामघाट से लेकर छोटे पुल तक नदी में जमा कचरा, जो स्नान और पूजन के वक्त लोगों ने नदी में फेंका।
शिप्रा की जल शुद्धि के लिए सरकार ने बीते आठ वर्षो में दो कदम उठाए। एक, शहर में भूमिगत सीवेज पाइपलाइन बिछाने को, जो छह वर्ष में 300 करोड़ रुपये खर्च करने के बाद भी पूरी न हुई। दूसरी इंदौर के सीवेज युक्त नालों (कान्ह नदी) के पानी शिप्रा के नहान क्षेत्र में मिलने से रोकने को 95 करोड़ रुपये खर्च कर बिछाई पाइपलाइन, जो कारगर साबित न हुई।
दोनों ही सूरत में शिप्रा का जल अब भी मैला है। उज्जैन मास्टर प्लान-2035 में शिप्रा नदी का किनारा (रिवर फ्रंट) आकर्षक बनाने का प्रस्ताव शामिल न होना भी न सिर्फ खलता है।