महंगा प्रोजेक्टः उज्जैन, देवास को दिया 700 करोड़ रुपये का पानी, भुगतान नहीं
उज्जैन (नईदुनिया प्रतिनिधि)। अरबों रुपये की नर्मदा-शिप्रा लिंक परियोजना शासन पर बोझ बन गई है। परियोजना के संचालन पर सालाना जितना रुपया खर्च हो रहा है, उतनी आमदनी नहीं हो रही। वजह है, उज्जैन और देवास नगर निगम द्धारा पानी लेने के एवज में उसका बिल न चुकाना। दोनों निकायों पर बिल के 700 करोड़ रुपये से अधिक बकाया है। स्थिति से नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण (एनवीडीए) शासन को बार-बार अवगत करा रहा है।
मालूम हो कि मालवा-निमाड़ अंचल के लोगों की सिंचाई, औद्योगिक और पेयजल जरूरतों को पूरा करने के लिए आठ साल पहले 432 करोड़ रुपये की नर्मदा-शिप्रा लिंक परियोजना धरातल पर आकार ली थी। 6 फरवरी 2014 को परियोजना के लोकार्पण समारोह में मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने कहा था कि दो नदियों के संगम से संपूर्ण मालवा-नर्मदा की भूमि समृद्ध होगी। मालवा-निमाड़ अंचल में जल संकट सदा के लिए मिटेगा। सिंचाई और उद्योग के लिए पर्याप्त पानी मिलेगा। तब एनवीडीए ने बिजली से पंप हाउस संचालन और मेंटेनेंस खर्च निकाल पानी की कीमत 22 रुपये 60 पैसे प्रति हजार लीटर तय की थी। इसी कड़ी में आइआइटी इंदौर सिमरोल कैम्पस, इंदौर-पीथमपुर के उद्योगों सहित देवास नगर निगम एवं उज्जैन नगर निगम को मांग अनुरूप पानी मुहैया कराना शुरू किया। निर्धारित अवधि में आइआइटी इंदौर सिमरोल कैम्पस, उद्योगों ने तो देर-सवेर पानी का बिल चुकाना शुरू किया मगर देवास और उज्जैन नगर निगम ने पहल नहीं की। ऐसे में देवास नगर निगम का पानी का बिल बढ़ते-बढ़ते 400 करोड़ रुपये और उज्जैन नगर निगम का बिल 300 करोड़ रुपये से ज्यादा का पहुंच गया। इस बिल की वसूली के लिए प्राधिकरण ने कई बार निगम को पत्र भेजा, मगर बिल एक बार भी नहीं चुकाया गया। जानकारों का कहना है कि प्रदेश की संभवतः यह पहली परियोजना है, जिसमें शासन को करोड़ों रुपये का घाटा हो रहा है।
इनका कहना
यह सच है कि नर्मदा-शिप्रा लिंक परियोजना के संचालन पर जितना रुपया खर्च हो रहा है, उतनी आमदनी नहीं हो रही है। आय, खर्च के मुकाबले लगभग 50 फीसद है। पंप हाउस के रखरखाव और संचालन पर पिछले साल 50 करोड़ रुपये खर्च खर्च हुए थे। दिल्ली-मुंबई औद्योगिक कारिडोर, आरजेपीएल और आइआइटी सिमरोल कैम्पस से पानी का पैसा देर-सवेर प्राप्त हो रहा है। स्थिति से वरिष्ठ कार्यालय को समय-समय पर अवगत कराया है।
-ललित वर्मा, कार्यपालन यंत्री, एनवीडीए
परियोजना के तीन उद्देश्य थे, जो पूरे नहीं हुए
- शिप्रा को प्रवाहमान बनाना।
- उज्जैन, देवास, इंदौर, पीथमपुर के उद्योगों को पर्याप्त पानी देना।
- सूखाग्रस्त करीब 300 गांवों और शहरों को पेयजल एवं सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध कराना।
यह भी जानिये
-नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण ने पूरे आठ साल के बाद पेयजल उपयोग के लिए नर्मदा के जल की कीमत 22 रुपये 60 पैसे प्रति हजार लीटर से घटकार 22 रुपये 10 पैसे प्रति हजार लीटर करने का प्रस्ताव मप्र जल दर निर्धारण समिति को भेजा है।
- नर्मदा-शिप्रा लिंक परियोजना को उज्जैन दक्षिण के विधायक और मौजूदा उच्च शिक्षा मंत्री डा. मोहन यादव ने कुछ साल पहले फेल करार दिया था।
-पिछले साल सांसद अनिल फिरोजिया ने लोकसभा में शिप्रा शुद्धीकरण का मुद्दा उठाते हुए कहा था कि शिप्रा का जल स्नान छोड़ आचमन लायक भी नहीं है, ठोस कार्य योजना बनाने की जरूरत है।
-दो दशक में सरकार शिप्रा को प्रवाहमान एवं स्वच्छ बनाने के लिए 900 करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च कर चुकी है।