नईदुनिया प्रतिनिधि, इंदौर। धर्म का पालन करने के अधिकार का किसी विशेष स्थान से कोई संबंध नहीं है, इसलिए इस अधिकार को किसी विशेष भूमि के अधिग्रहण से उल्लंघन नहीं माना जा सकता। इस टिप्पणी के साथ मप्र हाई कोर्ट की इंदौर खंडपीठ ने उज्जैन के महाकाल लोक के विस्तार में अधिग्रहित तकिया मस्जिद की जमीन के संबंध में प्रस्तुत अपील निरस्त कर दी।
मस्जिद की जमीन के अधिग्रहण को स्थानीय रहवासियों ने हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। उनका कहना था कि वे 200 वर्षों से इस मस्जिद में नमाज पढ़ते थे। यह संपत्ति वर्ष 1985 में वक्फ संपत्ति घोषित हो चुकी थी, इसलिए इसका अधिग्रहण नहीं किया जा सकता था। जमीन अधिग्रहण करने और मस्जिद तोड़ने से उनके धार्मिक अधिकारों का हनन हुआ है।
कोर्ट ने अपील की सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था जो अब जारी हुआ है। इसमें कोर्ट ने धार्मिक स्वतंत्रता देने वाले संविधान के अनुच्छेद 25 को स्पष्ट करते हुए कहा कि प्रार्थना पृथ्वी पर कहीं भी की जा सकती हैं। कोई व्यक्ति अपने घर पर या किसी दूरस्थ स्थान पर प्रार्थना कर सकता है। इस अधिकार का यह अर्थ नहीं लगाया जा सकता कि ऐसी कोई जगह अधिग्रहित ही नहीं की जा सकती।
अनुच्छेद 25 की उचित व्याख्या सिर्फ यह है कि कोई भी कानून, धार्मिक क्रियाकलाप, अभ्यास या प्रचार को प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता। अधिग्रहण का कानून जमीन से संबंधित है न कि किसी व्यक्ति के धर्म को मानने, अभ्यास करने या प्रचार करने के अधिकार से। रहवासियों ने मस्जिद को दोबारा बनाने की मांग भी की थी। कोर्ट ने इसे भी खारिज कर दिया है।
कोर्ट ने मस्जिद के साथ ही कब्रिस्तान की जमीन अधिग्रहण को लेकर भी स्पष्ट किया कि कब्रिस्तान की जमीन को पवित्र और वक्फ माना जाता है, फिर भी इसके अधिग्रहण को किसी भी जीवित व्यक्ति के धर्म को मानने, उसका पालन करने या उसका प्रचार करने के अधिकार से वंचित नहीं माना जा सकता। अनुच्छेद 25 में वर्णित स्वतंत्रता एक व्यक्तिगत स्वतंत्रता है। यह एक ऐसी स्वतंत्रता है जिसका दावा कोई व्यक्ति अपनी इच्छानुसार व्यक्तिगत कार्य के लिए कर सकता है। यह ऐसी स्वतंत्रता नहीं है जो उन कब्रों के संरक्षण की गारंटी देती हो।