नईदुनिया प्रतिनिधि, उमरिया। मध्य प्रदेश के बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व को बाघों के साम्राज्य के रूप में जाना जाता है, लेकिन यहां श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर एक अलग ही नजारा देखने को मिलता है। इस दिन जंगल के बीच बने प्राचीन किले में स्थित श्रीराम-जानकी मंदिर साल में सिर्फ एक दिन के लिए श्रद्धालुओं के दर्शनार्थ खोला जाता है। खास बात यह है कि यहां भगवान श्रीराम को कान्हा के रूप में और माता सीता को राधारानी के रूप में पूजा जाता है।
कृष्ण जन्माष्टमी पर बांधवगढ़ में सुबह से ही श्रद्धालुओं का जत्था मंदिर की ओर निकल पड़ा। ताला गांव से करीब 15 किलोमीटर पैदल की कठिन चढ़ाई पार कर भक्तों ने भगवान श्रीराम और माता जानकी के दर्शन किए। दोपहर तक करीब 8 हजार श्रद्धालु मंदिर पहुंच चुके थे। मान्यता है कि एक झलक पाते ही भक्तों की सारी थकान मिट जाती है और वे ऊर्जा के साथ वापसी करते हैं।
बांधवगढ़ किले के भीतर स्थित इस मंदिर की परंपरा सदियों पुरानी है। रीवा राजघराने के सदस्य आज भी जन्माष्टमी पर यहां पहुंचते हैं। इस बार भी सिरमौर विधायक दिव्यराज सिंह समेत राजपरिवार के सदस्य पूजन-अर्चन में शामिल हुए।
कभी रीवा रियासत की राजधानी रहा बांधवगढ़, बाद में 1970 के दशक में टाइगर रिजर्व घोषित कर दिया गया। उस समय महाराजा मार्तंड सिंह ने जंगल सरकार को सौंपते समय शर्त रखी थी कि जन्माष्टमी पर लगने वाला मेला और मंदिर में पूजा की परंपरा समाप्त नहीं होगी। यही कारण है कि हर साल इस दिन वन्यजीव संरक्षण कानून (Wildlife Act) को शिथिल कर श्रद्धालुओं को मंदिर तक पहुंचने की अनुमति दी जाती है।
इतिहास और पौराणिक मान्यता दोनों में बांधवगढ़ किले का विशेष महत्व है। कहा जाता है कि वनवास से लौटने के बाद भगवान श्रीराम ने यह किला अपने छोटे भाई लक्ष्मण को उपहार स्वरूप दिया था। इसी वजह से इसका नाम पड़ा - बांधवगढ़ यानी भाई का किला।
इस किले और मंदिर का उल्लेख स्कंध पुराण और शिव संहिता में भी मिलता है। मंदिर में भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मण की मूर्तियां विराजित हैं। पहले यह जगह रीवा राजघराने की राजधानी थी और तभी से जन्माष्टमी का पर्व यहां धूमधाम से मनाया जाता रहा है।