उमरिया (नईदुनिया प्रतिनिधि)। एसईसीलए जोहिला एरिया की उमरिया सब एरिया अंतर्गत आने वाली दोनों कोयला खदानों में उत्पादन लगातार नीचे गिरता जा रहा है। इस क्षेत्र में दो खदानें हैं जिनमें चपहा उमरिया खदान और पिपरिया खदान शामिल हैं। इन खदानों में जहां पहले प्रतिदिन आठ सौ से एक हजार टन प्रतिदिन से ज्यादा का उत्पादन होता था वहीं अब यहां से महज डेढ़ सौ टन कोयले का प्रतिदिन उत्पादन हो पा रहा है। यह स्थिति खान प्रबंधक के ढीले रवैया के कारण बनी है। हालांकि खदान में कोयला भी कम हो गया है लेकिन उत्पादन जारी है। सवाल यह उठता है कि आखिर उत्पादन कम क्यो हुआ और इसके पीछे ऐसी कौनसी लापरवाही है। इस बारे में जब अधिकारियों द्वारा कोई स्पष्ट जवाब भी नहीं दिया जाता है।
मेन पावर हुआ दोगुना
बताया गया है कि कुछ समय में इन दोनों की खदानों में मेन पावर भी लगभग दोगुना कर दिया गया है। इसके बाद उत्पादन बढ़ जाना चाहिए था लेकिन इसके विपरीत उत्पादन और कम हो गया है। पहले इन खदानों में मेन पावर लगभग तीन सौ से पांच सौ के बीच था लेकिन अब तो एक हजार के आसपास हो गया है। इसकी वजह यह है कि एसईसीएल जोहिला एरिया की दो खदानें पिनौरा और पाली बंद हो चुकी हैं जिनका मेन पावर उमरिया की चपहा कॉलरी और पिपरिया कॉलरी में शिफ्ट कर दिया गया है। मेन पावर बढ़ने के बाद उत्पादन और बढ़ जाना चाहिए था लेकिन इसके विपरीत उत्पादन कम हो गया है। इस मामले में एरिया के महाप्रबंधक भी ध्यान नहीं दे रहे हैं।
उत्पादन बड़ी चिंता
कर्मचारियों में इस बात को लेकर चिंता बनी हुई है कि अगर उत्पादन इसी तरह कम होता गया तो खदान बंद हो जाएगी और उनकी नौकरी भी चली जाएगी। कर्मचारियों का कहना है कि प्रबंधन को उत्पादन बढ़ाने के लिए गंभीरता से ध्यान देना चाहिए। बताया गया है कि प्रबंधक सनत तिवारी के कार्यकाल के दौरान उत्पादन काफी ज्यादा हो रहा था। वे इस दिशा में गंभीतरता से ध्यान देते थे और कर्मचारियों के बीच उनकी पकड़ भी बेहतर थी। इस मामले में वर्तमान खान प्रबंधक राजकुमार मिश्रा का कहना है कि खदानों में उत्पादन घटता बढ़ता रहता है।
कर्मचारियों को हो रहा नुकसान
खदानों में उत्पादन कम होने के कारण कर्मचारियों को भी खास नुकसान हो रहा है। अब उन्हें संडे और ओवर टाइम नहीं मिल पाता जिससे हर कर्मचारी को कम से कम बीस हजार रूपये महीने का नुकसान हो रहा है। अगर उत्पादन बेहतर होता तो यह समस्या कर्मचारियों के सामने नहीं आती। वहीं दूसरी तरफ कुछ कर्मचारियों का कहना है कि अधिकारी कुछ नेता टाइप कर्मचारियों को इसके बाद भी उपकृत कर रहे हैं। वे विरोध करने वालों को अपने पक्ष में रखने के लिए अंडर ग्राउंड के कर्मचारियों को सरफेस में ड्यूटी देकर खुश करते हैं और उन्हें अंडर ग्राउंड का एनाउंस दिलाते हैं। इन कर्मचारियों को जमुनिहा पंप, मैगजीन, सब स्टेशन, पंखा घर में ड्यूटी दी जा रही है।
कैसे रूकेगा निजीकरण
गुरुवार को कोयला खदानों के निजीकरण के खिलाफ श्रम संघों ने एकदिवसीय हड़ताल करके अपना विरोध जताया था। एसईसीएल जोहिला एरिया क्षेत्र की सभी खदानों में श्रम संघों ने गेट पर प्रदर्शन किया सिर्फ निजीकरण रोकने के लिए। पर सवाल उठता है कि जब उत्पादन ही नहीं होगा तो निजीकरण कैसे र्स्क सकेगा। यही कारण भी है कि हड़ताल पूरी तरह से सफल नहीं रही। अपना नुकसान बचाने के लिए ही जोहिला क्षेत्र की उमरिया और और पिपरिया कॉलरी में भी कर्मचारियों ने उत्पादन किया। इसकी वजह यह थी कि पहले जुलाई में भी हड़ताल की गई थी। जुलाई के बाद अब हड़ताल की गई है। जुलाई के महीने की 1, 2 और 3 तारीख को लगातार तीन दिवसीय हड़ताल देशभर के श्रम संघों ने की थी। इस दौरान हड़ताल में शामिल रहने वालों की सैलरी कट गई थी। जबकि इस हड़ताल के बावजूद केंद्र सरकार ने निजीकरण के अपने फैसले को नहीं बदला। इसी बात से भयभीत होकर कर्मचारियों ने हड़ताल में जाना उचित नहीं समझा। हालांकि कर्मचारी नेता अमृतलाल विश्वकर्मा ने कहा कि निजी करण से देश का विनाश होगा। कर्मचारियों का अहित होगा, इसलिए निजीकरण का विरोध किया जा रहा है। इस दौरान अमर बहादुर सिंह इंटक, रामेश्वर विश्वकर्मा, राम गोपाल सिंह, रामप्रसाद एटक, राम सलोने शर्मा, सुदर्शन पटेल सीटू ने भी जमकर विरोध किया और कहा कि केंद्र सरकार मजदूर विरोधी नीतियों को लागू कर रही है जिसका विरोध जारी रहेगा।