
उमरिया(नईदुनिया प्रतिनिधि)। बांधवगढ़ के जंगल में जहां कल तक आसमान को चूमते दरख्त नजर आते थे वहां आज राख का ढेर लगा हुआ है। आग की आसमान को छूती लपटे तो अब शांत हो गई है लेकिन राख के अंदर दबे अंगारों से अब भी धुआं उठ रहा है। प्रकृति की गोद में रचा यह नया नाजारा कहीं न कहीं जिम्मेदार लोगों की लापरवाही की कहानी भी कह रहा है लेकिन इतना कुछ होने के बाद भी बांधवगढ़ प्रबंधन पूरी जवाबदारी के साथ कोई जवाब देने को तैयार नहीं है। अति व्यवस्तता का प्रदर्शन करने वाले अधिकारी जिस जंगल को बचा नहीं सके उसी जंगल के नुकसान की गणना करने की बात कह रहे हैं। जंगल के जिस हिस्से में अंगारे अभी भी दहक रहे हैं उन्हें बुझाने की बात भी कही जा रही है। वहीं आगजनी की इस घटना के बीच बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के मगधी जोन में हुई एक बाघिन की मौत को लेकर भी स्थिति साफ नहीं की जा रही है।
दो सौ से ज्यादा जानवरों की मौतः बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के पांच सौ हेक्टेयर से ज्यादा क्षेत्र में फैली आग से दो सौ से ज्यादा जानवरों के जलकर मर जाने की आशंका व्यक्त की जा रही है। तीन दिनो से लगी आग की वजह से भारी तादात में जमीन और पेड़ों पर घोंसला बना कर रहने जीव-जंतु मौत का शिकार हुए हैं। मरने वाले जानवरों में जमीन में बिल बनाकर रहने वाले सांप, अजगर, बिच्छू, गिलहरी, शामिल हैं। वहीं जमीन पर विचरण करने वाले शकाहरी जानवरों में खरगोश, नीलगाय, हिरण, चीतल और सांभर भी शामिल हैं। पेड़ों पर घोसला बनाकर रहने वाले पक्षी चिड़िया, मोर, का भी जिक्र सामने आ रहा है। इन जानवरों की मौत को लेकर पार्क प्रबंधन ने अभी तक अपनी तरफ से काई अधिकृत बयान जारी नहीं किया है जबकि गांव के लोग दावा कर रहे हैं कि जंगल के दो सौ से ज्यादा जानवर अभी तक आग का शिकार चुके हैं।
भयकंर तबाहीः जिले के राष्ट्रीय उद्यान बांधवगढ़ में आग ने भयंकर तबाही मचाई है। अब तक इससे हजारों दुर्लभ पेड़-पौधे और जीव-जंतु जल कर राख हो चुके हैं। बड़े जानवर अपनी जान बचाने के लिये यहां से वहां भागते फिर रहे हैं। दरअसल होली से ठीक पहले खितौली परिक्षेत्र मे लगी आग ने धीरे-धीरे दावानल का रूप ले लिया। पार्क प्रबंधन जब तक चेतता, आग ने पूरा खितौली और मगधी कोर तथा धमोखर बफर को अपनी आगोश मे ले लिया। मंगलवार दोपहर तक इसने ताला कोर और पनपथा मे भी दस्तक दे दी थी। आग इतनी तेज थी कि कई किलोमीटर तक सिर्फ धुआं ही धुआं दिखाई दे रहा था। आग के कारण पार्क के अंदर से गुजरने वाली विद्युत लाईनो को भी काफी क्षति पहुंची है।
श्रमिक भी झुलसेः आग बुझाने के लिए जंगल में उतरे कई श्रमिक भी बुरी तरह से झुलस गए हैं। इसमें वे श्रमिक भी शामिल हैं जिन्हे कलेक्टर के निर्देश के बाद ग्राम पंचायतों सहित विभिन्न विभागों से जंगल भेजा गया था। दरअसल बांधवगढ़ में लगी भीषण आग की तपिश जब राजधानी भोपाल में भी महसूस की गई तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जिले के कलेक्टर संजीव श्रीवास्तव को आवश्यक निर्देश दे दिये। इसी के बाद कलेक्टर ने शासकीय विभागों को अपने श्रमिक पार्क भेजने के लिये कह दिया था।यही श्रमिक जब जंगल के अंदर आग बुझा रहे थे तो इस दौरान वे झुलस गए। हालांकि कोई भी श्रमिक बहुत ज्यादा नहीं जला। इस बारे में जिला प्रशासन ने बताया कि बांधवगढ़ नेशनल पार्क के कोर क्षेत्र खितौली, ताला, मगधी में भीषण आग लगने की सूचना मिलते ही वन विभाग का अमला गाईड एवं ड्रायवर आग पर नियंत्रण पानें के प्रयास में लग गए। आस-पास के ग्राम पंचायतो, नगरीय निकायों सहित सभी विभाग के मैदानी अमले को उपलब्ध संसाधनों के साथ आग बुझानें में सहयोग प्रदान करनें के निर्देश दिए गए। टैंकर, फायर बिग्रेड, बोरवेल आदि के माध्यम से आग बुझाने हेतु पानी एवं संसाधन उपलब्ध कराया गया।
हटा दिया गया था फायर वॉचरों कोः बीते वर्षों के दौरान वन विभाग द्वारा फायर वाचर, चौकीदार तथा अन्य मजदूरों की बड़े पैमाने पर छटनी की गई है। कई श्रमिक मजदूरी न मिलने के कारण काम छोड़ कर चले गये। यही हाल अन्य विभागों का भी है। उनका कहना है कि वन विभाग द्वारा जब तक ईको समितियों, तेंदूपत्ता समितियों और स्थानीय लोगों की मदद नहीं ली जाती तब तक आग से पार पाना आसान काम नहीं है। जंगली क्षेत्रों मे गर्मी के दिनो आग लगना सामान्य सी बात है, इसके लिये समय रहते बचाव के प्रबंध किये जाते हैं। तो फिर बांधवगढ़ जैसे अत्यंत संवेदनशील इलाके में हालात कैसे बेकाबू हो गये, इसकी पड़ताल बेहद जरूरी है। स्थानीय लोग भी इसे लेकर हैरान हैं। वे बताते हैं कि इस बार की आग ने पार्क क्षेत्र को जो नुकसान पहुंचाया है, वह भीषण है। अधिकांश क्षेत्रों में खुर वाले जीव-जंतुओं का हरा-भरा चारा, पत्ते और छोटे-मोटे पेड़-पौधे पूरी तरह समाप्त हो गये हैं। लिहाजा इन जीवों को अब भोजन की तलाश मे रिहायशी बस्तियों की ओर रूख करना होगा। इन्ही के पीछे-पीछे बाघ और तेंदुए भी गावों मे पहुंच जायेंगे। इससे उनके सांथ ग्रामीणो का भी जोखिम बढ़ जायेगा।
इसलिए लगती है आगः जंगल में आग लगने का सबसे बड़ा कारण तो आसपास बसे गांव के लोगों की लापरवाही ही होती है। एसडीओ अनिल शुक्ला का कहना है कि गांव के लोग अक्सर जलती बीड़ी सूखे पत्तों पर फेंक देते हैं जिससे जंगल में आग लग जाती है।
कई बार ग्रामीण जानबूझकर भी जंगल में आग लगा देते हैं, जैसा कि वर्तमान घटना में हुआ है। होली की रात किसी शरारती तत्व ने इस जानबूझकर जंगल में आग लगा दी थी। महुआ बीनने वाले ग्रामीण भी पेड़ के नीेचे के पत्तों को जला देते हैं जिससे कई बार जंगल में आग भड़क जाती है।
तेज हवा चलने और ज्यादा गर्मी पड़ने पर बांस की रगड़ से भी जंगल में आग लग जाती है। आसपास के सूखे पत्तों में आग लगने से जंगल भी गिरफ्त में आ जाता है।
फायर लाइन काटने के दौरान भी जंगल में कई बार आग लग जाती है। जंगल में आग को रोकने के लिए गर्मी के पहले सूखे पत्तों को जलाया जाता है। पत्तों को जलाने के दौरान उस पर नजर रखी जाती है, लेकिन कई बार कर्मचारियों की लापरवाही से आग भड़क जाती है।
जंगल से गुजरनी वाली बिजली की हेवी लाइन के में होने वाले शॅर्ट-सर्किट की वजह से भी कई बार जंगल में आग लग जाती है। बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के कोर और बफर जोन में कुल 190 किलो मीटर बिजली लाइन दौड़ रही है।
जानवर होते हैं प्रभावितः वन्य प्राणी प्रेमी नरेन्द्र बगड़िया का कहना है कि जंगल में आग लगने से छोटे जानवर और पक्षी सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं। छोटे जानवरों की तो मौत भी हो जाती है। आग लगने के बाद वे बिना देखे एक दिशा में भागने लगते हैं जिससे कई बार आग में फंसकर और कई बार वृक्षों से टकरा जाने के कारण उनकी मौत हो जाती है। जबकि पक्षी आग से उठने वाली लपटों और धुएं का शिकार हो जाते हैं।