
अजय जैन, नईदुनिया, विदिशा। विकास कार्यों के लिए धन की कमी का रोना रोने वाले पंचायत, शिक्षा जैसे विभागों ने सरकारी धनराशि के प्रबंधन में आपराधिक लापरवाही बरती है। जिले में विभागों के अधिकारी बैंक खातों में नौ करोड़ 76 लाख रुपये की रकम जमाकर भूले बैठे थे। यह रकम 10 हजार 283 खातों में अलग-अलग जमा थी। इन खातों से लेनदेन बंद होने के बाद बैंक ने इसे निष्क्रिय सूची में डाल दिया था। इतने रुपयों में तो 30 गांवों की सूरत संवर सकती थी।
संबंधित विभागीय अधिकारियों को इन खातों में जमा राशि की जानकारी तक नहीं थी। इसका खुलासा तब हुआ, जब रिजर्व बैंक ने आपकी पूंजी, आपका अधिकार अभियान शुरू किया। अभियान के दौरान बैंक खातों का मिलान किया गया तो कई वर्षों से निष्क्रिय पड़े खातों में भारी-भरकम राशि डंप होने का तथ्य सामने आया। जांच के बाद पहली कार्रवाई में करीब तीन करोड़ 50 लाख रुपये का सेटलमेंट किया गया और यह राशि संबंधित योजनाओं में पुन: समायोजित कर दी गई।
इसके बाद भी जिले के लगभग दस हजार 233 बैंक खातों में छह करोड़ 26 लाख रुपये अब भी निष्क्रिय अवस्था में पड़े हुए हैं। विभाग इन खातों को पुन: सक्रिय कराने और राशि को संबंधित योजनाओं में उपयोग करने के प्रयास कर रहा है। कई खातों में राशि के मद का पता लगाने और खाते खोलने के समय उपयोग किए गए पुराने रिकार्ड खोजने का काम जारी है।
जानकारों का कहना है कि यदि यह पूरी राशि समय पर उपयोग में आ जाती तो विदिशा जिले के कम से कम 30 गांवों में मूलभूत विकास कार्य पूरे किए जा सकते थे। एक गांव में सड़क, नाली निर्माण, प्राथमिक विद्यालय के भवन की मरम्मत और पेयजल व्यवस्था विकसित करने में औसतन 25 से 30 लाख रुपये खर्च होते हैं। ऐसे में पौने दस करोड़ की यह राशि वर्षों तक बेकार पड़ी रही और ग्रामीण जनता को मूलभूत सुविधाओं के लिए तरसना पड़ा।
लीड बैंक अधिकारी भगवान सिंह बघेल के अनुसार प्रारंभिक तौर पर 50 बैंक खातों के साढ़े तीन करोड़ रुपये सेटलमेंट हुए है, इनमें जिला पंचायत सीईओ के एक ही खाते में एक करोड़ 14 लाख रुपये जमा थे। इसके अलावा कुरवाई जनपद के चार खातों में भी बड़ी राशि जमा थीं। अब यह बैंक खाते पुनः चालू हो गए है। विभाग इस राशि का उपयोग विकास कार्यों में कर सकता है।
इधर, अफसरों की लापरवाही का आलम ये है कि उन्हें यह तक नहीं पता कि यह राशि किस मद की थी। जिला पंचायत सीईओ ओपी सनोडिया से जब एक करोड़ 14 लाख रुपये के बारे में पूछा तो उन्होंने जानकारी होने से ही इनकार कर दिया।
प्रशासनिक सूत्रों का कहना है कि कई खातों में राशि 10 से 12 साल पुरानी है। इन खातों का संचालन करने वाले अधिकारियों का तबादला होने, रिकॉर्ड अपडेट न होने और विभागीय निगरानी की कमी के कारण यह स्थिति बनी। कई योजनाओं की राशि खाते खुलने के बाद उपयोग ही नहीं की गई और बाद में खाते निष्क्रिय हो गए।
बैंक अधिकारियों के साथ बैठक कर निष्क्रिय बैंक खातों की विभागवार जानकारी प्राप्त की है। विभागीय अधिकारियों को निर्देश दिए हैं कि वे बैंको से समन्वय कर निष्क्रिय खातों को पुनः शुरू कराएं। बैंकों को भी अधिक राशि वाले बैंक खातों की सूची अलग से उपलब्ध कराने को कहा गया है, ताकि उन्हें प्राथमिकता से चालू कराया जा सके। – अनिल डामोर, एडीएम, विदिशा