अजय जैन, नईदुनिया प्रतिनिधि, विदिशा। मध्य प्रदेश के विदिशा जिले के उदयगिरि में गुप्तकालीन कारीगरों ने चट्टानों पर भगवान गणेश की अलग-अलग मुद्राओं वाली चार प्रतिमाएं उकेरी हैं। पुरातत्वविद मानते हैं कि ये मूर्तियां चौथी–पांचवीं शताब्दी ईस्वी (करीब 1700-1800 साल पुरानी) की हैं और इन्हें देश में उपलब्ध सबसे पुरानी गणेश प्रतिमाओं में गिना जाता है।
गुफा क्रमांक- 6 में स्थापित बाल गणेश की प्रतिमा विशेष रूप से उल्लेखनीय है। इसमें गणेश जी घुटनों पर हाथ रखे बाल स्वरूप में दिखाई देते हैं, जो सामान्यत: प्रचलित मूर्तियों से अलग है। इतिहासविद् नारायण व्यास का मानना है कि यह प्रतिमा गणेश पूजा की प्रारंभिक परंपरा का प्रमाण है। इसी गुफा में दुर्गा, विष्णु और शिव की आकृतियां भी हैं, जिससे उस काल की धार्मिक विविधता स्पष्ट होती है।
विदिशा शहर से करीब सात किमी दूर स्थित उदयगिरि की गुफाएं भारतीय इतिहास और संस्कृति की अमूल्य धरोहर हैं। इस गुप्तकालीन स्थल पर भगवान विष्णु के वराह अवतार की विशाल मूर्ति विशेष आकर्षण हैं। उदयगिरि की पहाड़ी पर 20 गुफाएं हैं और इन गुफाओं के सामने चट्टानों पर अलग-अलग प्रतिमाएं उकेरी गई हैं।
गुफा नंबर छह पर वराह प्रतिमा के द्वार पर भगवान गणेश की प्रतिमा प्रतिमा शिल्पकला का अद्भुत उदाहरण है। इसी के बगल में आठ नंबर की तवा गुफा के समीप भी भगवान गणेश विराजमान हैं। इसके अलावा पांच नंबर की गुफा से थोड़ी दूर भी गणेशजी की प्राचीन प्रतिमा है, जो अब जगह-जगह से खंडित हो गई है।
उदयगिरि पर चौथी प्रतिमा गुफा नंबर-17 के बाहर है। यह प्रतिमा पीले पत्थरों की बनी है, जिसमें गणेश जी का एक हाथ अभय मुद्रा में है और दूसरा हाथ मोदक पात्र धारण किए हुए दिखता है।
इतिहासविद् व्यास का कहना है कि उदयगिरि की ये गणेश प्रतिमाएं भारतीय कला और भक्ति परंपरा की शुरुआती झलक पेश करती हैं। संदेश देती हैं कि गणेश भक्ति की परंपरा कितनी पुरानी और समृद्ध है। स्थानीय इतिहासकार गोविंद देवलिया के मुताबिक, उदयगिरि की इन गुफाओं में विराजमान गणेश प्रतिमाएं हमें एहसास कराती हैं कि गणपति बप्पा की महिमा हजारों सालों से भारतीय संस्कृति की आत्मा में रची-बसी है।