Vidisha News: 90 वर्षों से घोड़े पर सवार होकर दशहरा के जुलूस में निकलने वाले राजा भगवान सिंह का निधन
99 वर्ष की आयु में ली अंतिम सांस। उन्हें हवेली से निकलते वक्त और शमी पूजन के बाद गार्ड ऑफ आनर दिया जाता था।
Publish Date: Sat, 01 Jun 2024 02:41:25 PM (IST)
Updated Date: Sat, 01 Jun 2024 02:41:25 PM (IST)

नवदुनिया प्रतिनिधि, विदिशा। करीब 90 वर्षों से शहर में दशहरा पर्व पर निकलने वाले राजपूत सरदारों के जुलूस में घोड़े पर सवार होकर निकलने वाले राजा भगवान सिंह धाकड़ का शुक्रवार को 99 वर्ष की आयु में निधन हो गया। शनिवार को राजसी परंपरा से बेतवा नदी के किनारे उनका अंतिम संस्कार किया गया। पारिवारिक सूत्रों ने बताया कि वे करीब एक साल से अस्वस्थ चल रहे थे। शुक्रवार दोपहर करीब दो बजे उन्होंने किला अंदर स्थित हाथी वाली हवेली पर अंतिम सांस ली।
राजा परमार के वंशज
मालूम हो, राठौड़ परिवार को महोबा के राजा परमारदेव का वंशज बताया जाता है। पूर्व में विदिशा भी महोबा का ही एक हिस्सा था। स्वजन बताते है कि महोबा के तत्कालीन राजा चौधरी हरीसिंह ठाकुर के पुत्र का अल्पायु में निधन होने के बाद परिवार से ही तीन साल की उम्र में भगवान सिंह को गोद लिया गया था। पांच साल की उम्र में राजतिलक और नौ साल की उम्र में घोड़े पर सवार होकर वे शमी पूजन में शामिल होने लगे थे। बाद में वे रथ पर सवार होकर निकलने लगे।
पीछे चलते थे दो जमींदार
स्वजन बताते हैं कि एक समय था जब वे घोड़े पर सवार होकर चलते थे, तब उनके पीछे घोड़े पर सवार दो जमींदार चलते थे। उनके द्वारा कहा जाता था कि रूट सलामत सलाम पर निगाह यानी जहां तक नजर पहुंचे, वहां तक का रास्ता साफ कर दिया जाए और सभी लोग राजा को सलाम ठोंके। इस आदेश का कठोरता से पालन कराया जाता था। उन्हें हवेली से निकलते वक्त और शमी पूजन के बाद गार्ड ऑफ आनर भी दिया जाता था। उनके साथ प्राचीन व्यंकटेश बालाजी की पालकी भी चलती थी। जिसकी सुरक्षा में वह स्वयं तैनात रहते थे। परिवार के करीबी आनंद प्रताप सिंह के मुताबिक भगवान सिंह राठौड़ ने निधन से पूर्व ही अपने पौत्र अनिरुद्ध सिंह राठौड़ को युवराज घोषित कर दिया था।