
नईदुनिया प्रतिनिधि, विदिशा। हलाली बांध से मार्च में छोड़ा गया यूरेशियन ग्रिफिन प्रजाति का गिद्ध कजाकिस्तान में गर्मियां बिताकर लौट रहा है। पिछले दिनों उसने राजस्थान के जरिए देश की सीमा में प्रवेश किया। वह अभी धौलपुर जिले में है। विदिशा से पाकिस्तान, अफगानिस्तान, उज्बेकिस्तान होते हुए कजाकिस्तान और लगभग उसी मार्ग से वापसी की यात्रा में उसने करीब 15 हजार किलोमीटर का रास्ता तय किया है।
इस साल जनवरी के महीने में यूरेशियन ग्रिफिन प्रजाति का यह गिद्ध सतना जिले के नागौद गांव में घायल अवस्था में मिला था। वन विभाग की टीम इसे उपचार के लिए भोपाल ले आई। वहां वन विहार में उपचार के बाद 29 मार्च को हलाली डैम क्षेत्र से इसे आजाद किया गया। प्रवासी गिद्ध का माइग्रेशन पैटर्न समझने के लिए वन विभाग ने इसकी पीठ पर सैटेलाइट रेडियो कालर लगा दिया था।
पन्ना के बाद दूसरा अवसर था जब किसी गिद्ध को जियो टैग लगाकर छोड़ा गया था। उसने कुछ दिन आसपास के क्षेत्र में विचरण करने के बाद अपने मूल स्थान की राह ली। वह पाकिस्तान, अफगानिस्तान, उज्बेकिस्तान होता हुआ मई में कजाकिस्तान पहुंच गया था। गर्मी उसने अपने पुरखों के मूल प्राकृतिक निवास में बिताए। सितंबर में कजाकिस्तान में सर्दियों की आहट के साथ ही उसने भारत की ओर उड़ान भरी। करीब छह माह के प्रवास के बाद उसी पैटर्न का इस्तेमाल कर वह भारत लौट आया है।
विदिशा डीएफओ हेमंत यादव ने बताया कि यह गिद्ध मूलतः यूरोपीय देशों का रहने वाला है और सर्दी के मौसम में वहां ठंड बढ़ते ही वहां के गिद्ध भारत, पाकिस्तान जैसे अपेक्षाकृत कम ठंडे देशों में आ जाते हैं। इनके प्रवास के पैटर्न को समझने के लिए ही यह कवायद की गई थी। यादव के मुताबिक बुधवार को यह गिद्ध मध्य प्रदेश और राजस्थान की सीमा पर स्थित धौलपुर के जंगल क्षेत्र में था। उनका कहना है कि यह गिद्ध वापस हलाली बांध क्षेत्र में भी आ सकता है क्योंकि इसी क्षेत्र में यूरेशियन ग्रिफिन प्रजाति के गिद्ध अधिक आते हैं।
डीएफओ यादव के मुताबिक सैटेलाइट रेडियो कालर में एक 50 ग्राम वजन का जीपीएस सिस्टम लगा है, जो रोजाना मेल पर लाइव लोकेशन अपडेट भेजता है। साथ ही इसमें एक छोटा सा सोलर पैनल भी संलग्न है, जिससे इसकी बैटरी निरंतर चार्ज होती रहती है। इस डिवाइस का अनुमानित जीवनकाल तीन साल का है, यह निरंतर गिद्ध के आवास और गतिविधियों की जानकारी प्रेषित करता है।
वन अधिकारियों का कहना है कि वन विभाग और गिद्ध संरक्षण केंद्र के अधिकारी रेडियो कालर की मदद से उसकी एक-एक गतिविधि की निगरानी कर रहे थे। उसके यात्रा का पूरा चार्ट बन रहा था। उसके विदिशा लौटने के बाद अधिकारियों के पास उसका पूरा प्रवास पथ होगा। इससे प्रवासी पक्षियों के नेविगेशन पैटर्न आदि को समझने में मदद मिलेगी। यह गिद्ध संरक्षण में लगे विशेषज्ञों के लिए महत्वपूर्ण डाटा होगा।