नईदुनिया प्रतिनिधि, इंदौर। Ganesh Chaturthi 2024 : एक वक्त था जब इंदौर शहर में प्लास्टर ऑफ पेरिस (पीओपी) से बनने वाली मूर्तियां बहुतायत में मिलती थीं, जो सांचे में ढालकर तैयार की जाती थीं। मगर, बीते कुछ वर्षों से मिट्टी की मूर्तियों का चलन बढ़ा है। इसका सुंदर परिणाम यह हो रहा है कि इन मूर्तियों में विविधता नजर आने लगी है।
ऐसी ही विविधता में शामिल है शहर में ढाई क्विंटल सुपारी से बनने वाली विघ्नहर्ता की मूर्ति। इस बार गणेशजी क्रांतिकारी टंट्या भील, छत्रपति शिवाजी, बाल गणेश के रूप में भी पंडाल में विराजेंगे।
7 सितंबर से शुरू हो रहे गणेशोत्सव के लिए शहर के कलाकार अब इन मूर्तियों को अंतिम रूप दे रहे हैं। कोई यूपी और बंगाल में गंगा किनारे की मिट्टी से मूर्तियां गढ़ रहा है, तो कोई महाराष्ट्र की शाडू मिट्टी से।
इन मूर्तियों को आकर्षक और अलहदा बनाने के लिए जहां कई तरीके अपनाए जा रहे हैं। वहीं, विविध वस्तुओं का भी उपयोग हो रहा है। इसमें रंग, कपड़े के अलावा सुपारी, रुद्राक्ष, मोती, नग आदि शामिल हैं। अच्छी बात तो यह है कि मूर्तिकार इस बात का ध्यान रख रहे हैं कि मूर्तियां पर्यावरण हितैषी हों।
मूर्तिकार अतुल पाल बताते हैं कि अन्य शहरों में बनने वाले पंडाल के लिए भी इंदौर में मूर्तियां बनाई जा रही हैं। उज्जैन, देवास, खंडवा आदि के लिए भी इंदौर से ही मूर्ति जाती हैं। उज्जैन के लिए जो मूर्ति बनाई गई है, उसमें ढाई क्विंटल सुपारी का उपयोग हुआ है।
इस मूर्ति को ‘उज्जैन के महाराज’ का नाम दिया गया है। इस मूर्ति की सजावट रुद्राक्ष से हो रही है। ये मूर्तियां कई महीने पहले से बनना शुरू हो गई थीं। इस बार मूर्तियों को बनवाने के लिए लोग एआइ की मदद ले रहे हैं।
सबसे ज्यादा आकर्षण भगवान गणेश के बाल रूप मूर्ति का नजर आ रहा है। छोटी से लेकर बड़ी मूर्ति तक में इस रूप की खूब मांग है। बप्पा का यह सौम्य रूप एआई के कारण ज्यादा चलन में है। कलाकारों ने भी तकनीक से हाथ मिलाया और एआई की मदद से गणेशजी की छवि ढूंढकर उसके अनुरूप मूर्तियां बनाई।
ऐसी मूर्तियां भी बनाई गईं, जिसमें गणेशजी पर्यावरण का संरक्षण दे रहे हैं। ये मूर्तियां पर्यावरण के लिए अनुकूल सामग्री का उपयोग करके बनाई गई हैं और अब उनकी सजावट का अंतिम चरण भी इसी के अनुसार है। मूर्तिकारों की मानें तो ये मूर्तियां ऐसी हैं जो विसर्जन के बाद जल्द ही गल जाएंगी।
मूर्तिकार शिव कुमार बताते हैं कि भगवान गणेश की मूर्तियां बनाने के लिए खास तरह की मिट्टी का उपयोग करना होता है। इसलिए गंगा किनारे की मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है।
मूर्ति बनाने के लिए बंगाल और उत्तर प्रदेश से मिट्टी मंगवाई जाती है। ये मिट्टी ऐसी होना चाहिए, जिसमें कंकर न हो। बांस, घास से तैयार ढांचे पर मिट्टी लगाकर मूर्ति बनाई जाती है जो पर्यावरण हितैषी होती है।
भगवान गणेश के साथ एक ही मूर्ति में ब्रह्मा, विष्णु और महेश की आकृति।
हनुमान के रूप में भी गणेशजी की मूर्ति लोगों का ध्यान करेगी आकर्षित।
महाकाली के रौद्र रूप में भी बनाई गई है विघ्नहर्ता भगवान गणेश की मूर्ति।
भगवान राम और भगवान जगन्नाथ का भी रूप दिया गया है विनायक को।
नेता के अलावा मूर्ति को दिया गया पेशवा और होलकर शासकों का रूप।