उनके बगीचे में सैक़डों किस्म के फूल खिलते हैं और रोज करीब 50 परिंदे आते हैं। बागवानी से उनका यह लगाव काबिलेतारीफ है।
मैसुरू के कल्याणगिरी की रहने वाली हशमत फातिमा ने 26 बरस पहले बागवानी के शौक को बहुत गंभीरता से आगे बढ़ाना शुरू किया था और उसका परिणाम आज उनके बगीचे को देखकर नजर आता है। उनके बगीचे में सैक़डों फूल खिलते हैं और हरियाली दिल को सुकून देती है।
कई लोग बागवानी को शौकिया करते हैं ताकि घर के अगले हिस्से या छत को कुछ सुंदरता दी जा सके। कुछ लोग बागवानी से प्यार करने लगतेहैं और उन्हें इस काम में बहुत आनंद आने लगता है। फातिमा उन दूसरे तरह के लोगों में हैं जो बागवानी से प्रेम करती हैं। बचपन से ही उन्हें पेड़-पौधों से लगाव हो गया था और आज उनके बगीचे में 40 प्रजातियों के फूल हैं, लताएं हैं और पेड़ भी हैं।
उन्होंने हर पौधे को बड़े जतन से पाला है और उसका ख्याल रखा है। हशमत फातिमा बताती हैं कि 26 बरस पहले वह अपने मौजूदा घर में रहने आई थीं और तभी से उन्होंने इस घर के बगीचे को संवारने का काम किया। उनका घर 40 गुना 70 के प्लॉट पर बना और इस घर के बड़े हिस्से में उनका बगीचा है।
इस बगीचे में 800 से ज्यादा गमले होना ही नहीं चकित करता है बल्कि यह भी चौंकाता है कि उन्होंने बांस, टायर और पुराने जूतों वगैरह जैसी बेकार हो चुकी चीजों का रचनात्मक उपयोग करके अपने बगीचे को सुंदर बनाया है।
उनके यहां एक वर्टिकल गार्डन भी है जिसे उन्होंने प्लास्टिक की खाली बोतलों के सहारे खड़ा किया है। वह कहती हैं, 'मैं इंटरनेट पर गार्डनिंग से जुड़े कई चैनल और पेज देखती हूं और इन्हीं से मुझे नए आयडियाज मिलते हैं। तीन बरस पहले ही मैंने बेकार हो चुकी चीजों से गार्डन को सजानेकी कला सीखना शुरू किया था और अब उनके कारण मेरा बगीचा बहुत निखर गया है।'
उनके बगीचे में डहेलिया, मेरीगोल्ड, हिबीस्कस, बिगोनिया, डेजी, वरबेना, पिटोनिया, एंथुरियम, जेनोबिया, गेरानियम और ग्लेडिओला सहित कई फूल देने वाले पौधे हैं। कुछ बड़े पेड़ भी हैं। मगर इस तरह का बगीचा बनाने के लिए बहुत सारी चीजें जुटाना भी पड़ती हैं। उन्होंने कई पत्थरों को इस बगीचे में इस जतन से जमाया है कि वे पेड़-पौधों के सहचर की तरह नजर आएं। उनके बगीचे की खूबसूरती पर फिदा होकर रोज 50 से ज्यादा परिंदे वहां आने लगे हैं।
फातिमा जी बताती हैं, 'कुछ पेड़ बरसों पुराने हैं। कुछ फूल के पौधे बगीचे में ऐसे हैं जो खास मौसम में ही फूल देते हैं। पहले मैं खुद ही जैविक खाद बनाती थी और अब मैंने मदद के लिए एक माली भी रख लिया है। मैं एक बूटीक भी चलाती हैं और उसमें भी मेरा बहुत समय चला जाता है।
फिर भी मैं हर दिन 2 घंटे का समय अपने गार्डन के लिए जरूर देती हूं।' जितना समय फातिमा जी अपने गार्डन को देती हैं और जिस तरह की देखरेख अपने पेड़-पौधों की करती हैं उससे उनकी खुशी सीधे तौर पर जुड़ी है। लोग अक्सर उनके यहां आतेहैं और अपने बगीचे को सजाने के लिए उनसे मशविरा मांगते हैं। उनका तब एक ही जवाब होता है कि पेड़-पौधों से प्यार कीजिए, उसके बिना आप अच्छा बगीचा नहीं लगा सकते हैं।