डॉ. रमेशचंद्र
जब किसी ने पूछा कि क्या आप अपनी पत्नी से डरते हैं? तो उनका जवाब था-'जी हां, मैं अपनी पत्नी से डरता हूं।' ऐसी साफगोई बहुत कम लोगों में होती है। लेकिन कुछ पत्नीवीर ऐसे भी होते है, जो कहते है- 'हें पत्नी से क्या डरना! है तो वह पत्नी ही न!'
लेकिन ऐसी बात करने वालों की वास्तविकता कुछ और ही होती है। वे शेर से नहीं डरते होंगे, वे चीते से नहीं डरते होंगे, वे कुत्ते, आदमी और जमाने वालों से भी नहीं डरते होंगे, लेकिन पत्नी से अवश्य डरते होंगे। क्योंकि पत्नी के हाथ में उनका 'रिमोट' कन्ट्रोल होता है।
वैसे जीवन में किसी न किसी का डर तो होना ही चाहिए ताकि जीवन की गाड़ी सुचारू रूप से चलती रहे। ऐसी दशा में हर व्यक्ति के जीवन में हर किसी का डर बना ही रहता है। बचपन में माता-पिता का, स्कूल में टीचर्स का, युवावस्था में बुजुर्गों का और नौकरी में आपने बॉस का। विवाह पश्चात यह डर पत्नी में समा जाता है। अर्थात व्यक्ति सबसे ज्यादा पत्नी से डरने लगता है।
अच्छा है ऐसा डर
पत्नी से डरना एक प्रकार से अच्छा ही है। पत्नी डर से व्यक्ति दुर्व्यसनों से बचे रहते हैं, गलत संगति में नहीं पड़ते, समय पर घर आते और प्रेम-ब्रेम के लफड़े में नहीं पड़ते। पत्नी के डर से घर में सुख-शांति और प्रेम बना रहता है। पत्नी का डर इसलिए भी होना चाहिए कि 'बिनु भय होत न प्रीति' जैसा कि बाबा दुलसीदास ने फरमाया है।
इससे पति-पत्नी में 'प्रेम' भी बना रहता है और तलाक की नौबत भी नहीं आती। लेकिन कई पड़ोसियों को पति-पत्नी का प्रेम 'रास' नहीं आता। वे येन-केन-प्रकारेण पति-पत्नी में 'दरार" डालकर अपने 'पड़ोसी धर्म" का निर्बाह करते हैं।
कई पतियों ने अपनी पत्नी के डर के कारण दुर्व्यसन छोड़ दिए हैं। सिगरेट, शराब, जुआ, सट्टा आदि बुरी लतों के छुटकारा प्राप्त कर मजे की जिंदगी गुजार रहे हैं। कई पुरुष तो पत्नी के डर के कारण 'महापुरुष' हो गए। कई गृह त्याग कर 'साधु-संत' की जमात में शामिल हो गए। अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा ने स्वीकार किया है कि उन्होंने अपनी पत्नी के डर से सिगरेट पीना छोड़ दिया। ओबामा की तरह ऐसे कई व्यक्ति होंगे जिन्होंने 'पत्नी डर' से दुर्व्यसनों से तौबा करली होगी।
कुछ लोगों के जीवन में कुछ अलग तरह का डर बैठा होता है-जैसे कोई चोर-लुटेरों से डरता है तो कोई अपने यहां बिजलेंस के छापा पड़ने से डरता है, कोई रिश्वत लेने से डरता है तो कोई अपनी इज्जत से डरता है। नेताओं को हमेशा अपनी कुर्सी खोने का डर रहता है। कहीं 'दाग न लग जाए' इसलिए महिलाएं संभल-संभल कर, डर-डर कर चलती हैं। पति को एकमात्र यही डर रहता है कि पत्नी कहीं रूठ कर 'मायके' न चली जाए। ऐसे और भी बहुत से डर हो सकते हैं, लेकिन इन सबसे उनका 'डर' यदि कोई है तो वह है अपनी पत्नी का।
डर से गुजरती है सुख-शांति की राह
बेशक अपनी पत्नी से डरना ही चाहिए। उसके डर से ही तो परिवार सुख, शांति और समृद्धि में रहता है। जिन घरों में पत्नी का डर नहीं रहता, वहां रात दिन 'चख-चख" होती रहती है। न परिवार सुख से रह पाता है न बच्चों की शिक्षा और न उनका भविष्य ही बन पाता है। पत्नी का डर पति और परिवार की भलाई के लिए आवश्यक है। इसलिए हर पति का यह 'कर्तव्य' होना चाहिए कि वह अपनी पत्नी से डरें।
पत्नी की नजर हमेशा अपने पति पर लगी रहती है। यदि पति कहीं पार्क या बाजार में भी है तो उसे यही लगता है कि उसकी पत्नी उसके पीछे खड़ी होकर उसकी 'हरकतों' को देख रही है। यह आदर्श पत्नी का आचरण है कि अपने पति के साथ-साथ उसकी 'पॉकेट' पर भी नजर रखें।
इससे पति फिजूलखर्ची और 'अय्याशी' से बच जाता है। यदि पत्नी अपने पति पर नजर न रखें तो वह किसी अन्य महिला के 'फेर' में पड़ सकता है। इतना ही नहीं, वह अपने 'फोकटिए' दोस्तों के साथ मस्ती में गुलछर्रे उड़ा सकता है। इसी कारण समझदार और दूरदर्शी पत्नियां अपने पति की 'सेलरी' मिलते ही 'हथिया" लेती हैं। यह उसका 'मौलिक अधिकार भी है, जिसे आज तक कोई 'चैलेंज' नहीं कर सका।
एक सर्वेक्षण से यह नूतन जानकारी प्राप्त हुई है कि जो पति अपनी पत्नियों से डरते हैं वे न केवल स्वस्थ, सुखी एवं प्रसन्ना बल्कि दीर्घायु भी होते हैं। इस तथ्य के बाद तो हर पति को अपनी पत्नी से डरना ही चाहिए। न...!