
पवन दुग्गल, सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट और सायबर कानून विशेषज्ञ
जब सुप्रीम कोर्ट के आईटी एक्ट की धारा 66- ए को खत्म करने का आदेश आया शबाना आजमी ने ट्वीट किया कि 'धारा 66- ए को हटाकर सुप्रीम कोर्ट ने फिर से आश्वस्त किया है कि वह राज्य की स्वेच्छाचारी शक्ति के खिलाफ व्यक्तिगत स्वंतत्रता की रक्षा करता रहेगा। लेकिन इसके साथ ही समझबूझ से खुद पर नियंत्रण रखना भी जरूरी है।'
आईटी एक्ट की धारा 66-ए पर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद यह साफ हो गया है कि भारत में इंटरनेट पर अभिव्यक्ति की आजादी किसी अस्पष्ट कानून द्वारा बाधित नहीं की जा सकेगी। सोशल मीडिया पर उत्साह में भरकर पोस्ट लिखने वाली पीढ़ी के लिए यह एक बड़े डर के खत्म होने जैसा है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा, 'आईटी एक्ट की धारा 66-ए संविधान के अनुच्छेद 19 (1) के अंतर्गत मिलने वाली अभिव्यक्ति की आजादी का हनन करती है।'
इस ताजा निर्णय को इंटरनेट का उपयोग करने वाली पीढ़ी के लिए आजादी की संज्ञा भी दी जा रही है, लेकिन इसे आजादी से ज्यादा अधिकार की जीत मानना चाहिए और हर अधिकार अपने साथ जिम्मेदारी भी लाता है।
इस निर्णय के बाद इंटरनेट पर अपने संतुलित विचार व्यक्त करते हुए डरने की बिल्कुल भी जरूरत नहीं है क्योंकि अब किसी नेता का अपमान करने के नाम पर या अतार्किक बात का विरोध करने पर कोई गिरफ्तार नहीं करेगा, जैसा कि अब तक हो रहा था। लेकिन इसके साथ ही अब इंटरनेट पर कोई भी ऐसी सामग्री जो धमकी भरी और अपमानजनक हो उसे प्रसारित करना भी आपराधिक मामले की परिधि से बाहर हो गया है।
एकतरफा कानून का खामियाजा
जोश और उत्साह से भरी इस पीढ़ी को मैं सलाह दूंगा कि अभी भी इंटरनेट पर कोई भी सामग्री शेयर करते हुए पूरी तरह सावधानी बरतें। आईटी एक्ट से धारा 66-ए हटाने के बावजूद आईटी एक्ट 2000 में जो अन्य प्रावधान थे वे यथावत हैं। सुनने में यही लगता है कि सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय के बाद इंटरनेट पर हर किसी को पूरी आजादी है लेकिन इंटरनेट पर पूरी आजादी जैसा कुछ नहीं है।
आईटी एक्ट 2000 के प्रावधान हैं और आईपीसी की अन्य धाराएं भी इंटरनेट का उपयोग करने वालों पर लागू रहेंगी। लेकिन 66-ए के हटने से सायबर दुनिया में मासूम लोगों को नुकसान भी झेलना पड़ सकता है। अब सायबर बुलीइंग की घटनाएं बढ़ सकती हैं क्योंकि 66-ए की सख्ती को हटा लिया गया है। धारा 66-ए के साथ सबसे बड़ी मुश्किल यही थी कि विशेषज्ञों या प्रभावित होने वालों के पक्ष को सुने बिना ही इसे बनाया गया था।
इसे लागू करते हुए भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 का ध्यान भी नहीं रखा गया था जो नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देता है। आईटी कानून में ऐसी बहुत सी कमियां थीं जो इसे कमजोर बनाती हैं और धारा 66-ए इन्हीं में से एक थी। इसकी खामियां ही इस धारा के खात्मे की वजह बनी। बहरहाल इसके खत्म होने से उन जिनके खिलाफ आईटी एक्ट की धारा 66-ए के अंतर्गत मुकदमे चल रहे थे वे स्वत: समाप्त हो जाएंगे। उन्हें बड़ी राहत मिलेगी।
राहत के साथ आफत भी जहां तक सायबर स्पेस में पीड़ित होने वाले लोगों का सवाल है तो उन्हें 66-ए के तहत जो बचाव मिलता था अब वे इससे वंचित हो जाएंगे।
सायबर स्टाकिंग, सायबर न्यूसेंस, सायबर हैरसमेंट और सायबर डिफेमेशन हमारे देश में बड़े पैमाने पर होते हैं। अब मोबाइल पर तरह-तरह के एप्लीकेशन के कारण सायबर अपराधियों को फलने-फूलने का मौका मिल गया है। वे तरह-तरह के जाल मासूम लोगों को फांसने के लिए बुनते रहते हैं। इस तरह के परिदृश्य में 66-ए के तहत लोगों को कुछ सुरक्षा मिली हुई थी लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद वह नहीं रही। सायबर अपराधियों ने भी इस बात से राहत महसूस की होगी कि उनके सिर पर धारा 66-ए की जो तलवार लटकती रहती थी वह अब नहीं है।
स्पैम मेल को रोकने के लिए भी धारा 66-ए के अंतर्गत नियम थे लेकिन इसके हटने से वे प्रावधान भी जाते रहे। स्पैम मेल हमारी बड़ी समस्या है क्योंकि भारत में बड़े पैमाने पर स्पैम मेल भेजे जाते हैं लेकिन भारत में स्पैम मेल को लेकर कोई कानून नहीं है। इस धारा के हटने के बाद सायबर बुलीइंग की घटनाएं भी बढ़ना तयशुदा हैं।
अभी तक लोगों को यही लग रहा है कि अब उन्हें पूरी आजादी मिल गई है और इससे कानून का पालन करवाने वाली एजेंसियों को भी मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा। लेकिन हर हाल में सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय ने सरकार को इस बात के लिए आगाह किया है कि वह सायबर कानून पर नए सिरे से विचार करे।
अभी जो कानून है वह 15 वर्ष पहले बना था और उसमें बस 2008 में ही कुछ बदलाव हुए थे। 2015 की जमीनी हकीकत पूरी तरह बदल चुकी है और उसे पुराने कानून से नहीं चलाया जा सकता है।
कोई सायबर कानून सौ प्रतिशत उपयुक्त नहीं हो सकता। ऐसे कानून की लगातार समीक्षा जरूरी है ताकि वह समाज और यूजर्स की अपेक्षाओं पर खरा उतर सके। भारतीय सायबर कानून को इस लिहाज से तैयार करना होगा।
निर्णय का है यह आशय
आईटी कानून के अहम पड़ाव
धारा 66- ए खत्म लेकिन ये धाराएं हैं
धारा 500: मानहानि के मामले में
जब कोई व्यक्ति किसी की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाए, उसके चरित्र का हनन करे या जाति और व्यवसाय के आधार पर उसकी निंदा करे या शारीरिक रूप से उसे अपशब्द कहे।
सजा- अधिकतम दो वर्ष व जुर्माना भी संभव।
धारा 505 : भय फैलाना
कोई भी ऐसी सामग्री प्रकाशित, प्रसारित करना या ऐसा बयान देना जो जनता को भड़काए या उनमें डर पैदा करे। किसी भी समुदाय या वर्ग को दूसरे समुदाय या वर्ग के प्रति किसी घटना को अंजाम देने के लिए उकसाना।
सजा- अधिकतम 3 वर्ष की जेल और जुर्माना।
धारा 506 : आपराधिक दुष्प्रेरण
किसी व्यक्ति को जान से मारने की या उसकी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने की धमकी देना।
सजा- अधिकतम 2 वर्ष की जेल और जुर्माना। इसमें किसी महिला के चरित्र हनन के प्रकरण में 7 साल की सजा और जुर्माना।
धारा 509: शील भंग
किसी महिला के शील भंग का प्रयास या उसके व्यक्तिगत जीवन में दखल।
सजा- अधिकतम 1 वर्ष की सजा, जुर्माना।
धारा 124-ए : बलवा
ऐसी कोई भी पोस्ट करना या ब्लॉग लिखना जो भारत सरकार के विरुद्ध लोगों को उकसाती हो या उन्हें भड़काती हो।
सजा- आजीवन कारावास।
धारा 295-ए : सांप्रदायिक विद्वेष
लगातार ऐसे बयान देना जो किसी धर्म की मान्यताओं और विश्वासों को चोट पहुंचाते हैं।
सजा- 2 वर्ष की जेल और जुर्माने का प्रावधान है। ऐसे प्रकरणों में धारा 298 भी लागू होती है।