शरद व्यास (मिड डे), मुंबई। महाराष्ट्र के आदिवासियों के लिए चलाई जा रहीं कल्याणकारी योजनाओं में करोड़ों का घोटाला सामने आया है। जनजाति अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान (टीआरटीआई) द्वारा उत्तरी महाराष्ट्र के जनजाति बहुल क्षेत्रों में पिछले तीन वर्षों में की गई जांच पड़ताल में आदिवासी कल्याण निधि में घोर अनियमितता का खुलासा हुआ है। आदिवासियों के चलाई जा रही 28 सौ करोड़ की 16 योजनाओं का लेखा-जोखा तैयार किया जा रहा है।
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेता विजय कुमार गावित के मंत्रित्वकाल में अनियमितता के आरोप लगने के बाद 2010 में स्वतंत्र ऑडिट को मंजूरी दी गई थी। ऑडिट रिपोर्ट के मुताबिक, पैसों के आवंटन के बावजूद आदिवासियों के कल्याण के लिए चलाई गई योजनाओं का लाभ पात्रों को नहीं मिला। जबकि राज्य सरकार का दावा है कि आदिवासियों की बेहतरी के लिए चलाई गई 16 योजनाओं के जरिये 7 लाख से ज्यादा लोगों को लाभ पहुंचाया गया।
हकीकत यह है कि वर्ष 2009-13 के बीच 56-84 हजार आदिवासियों को ही इसका लाभ मिला। वर्ष 2003 में बदतर रहन-सहन और पानी की समस्या से जूझ रहे 47,043 गांवों के कायाकल्प के लिए महाराष्ट्र सरकार ने वाडी कार्यक्रम की शुरुआत की थी। इसके तहत पांच वर्षों के अंदर 40,500 से ज्यादा आदिवासियों के अलावा 12 हजार भूमिहीनों को लाने की योजना थी। 144.5 करोड़ रुपये की वाडी योजना की जिम्मेदारी भारत एग्रो इंडस्ट्रीज (बीएआई) को सौंपी गई थी। नाशिक स्थित मित्रा ऑर्गेनाइजेशन ने बागवानी का काम किया था।
जांच में सामने आया है कि वर्ष 2003-08 के बीच सतपुड़ा रेंज के 52,500 किसानों में सिर्फ 3,675 को ही योजना का लाभ मिला। लाभार्थियों का रिकॉर्ड भी नहीं रखा गया। हालत तो यह है कि परियोजना अधिकारियों को यह तक नहीं मालूम की क्षेत्र में वाडी परियोजना लागू भी की गई है। बीएआइ ने भी स्वीकार किया है कि इस परियोजना को सिर्फ तीन ब्लॉकों (रेवर, चोपडा और यवल) में ही क्रियान्वित किया जा सका। जांच टीम में शामिल एक अधिकारी ने बताया कि ऑडिट में फंड के गबन का गंभीर मामला भी सामने आया है।
वर्ष 1981 में लघु व्यवसाय के लिए शुरू की गई योजना में भी अनियमितता उजागर हुई है। इसके तहत एक परिवार को 15 हजार रुपये और एक समूह को 7.5 लाख रुपये देने की योजना थी। हालांकि, पिछले 33 वर्षों में सिर्फ 1.1 लाख लोगों को ही इसका फायदा हुआ है। उसमें भी राजनीतिज्ञों से जुड़े लोगों की बड़ी तादाद है। ठेकेदारों ने भी बहती गंगा में हाथ धोए। इसके अलावा आश्रमशाला निर्माण और बुदित माजुरी योजना में भी अनियमितता सामने आई हैं।