चेन्नई। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार की मूल अवधारणा पर आघात करने वाली आईटी ऐक्ट की धारा 66ए को रद्द कर दिया। मगर, इसका अर्थ यह नहीं है कि कंप्यूटर या किसी अन्य माध्यम से अश्लील संदेश भेजना अपराध की श्रेणी में नहीं आएगा।
साइबर अपराधी को सजा दिलाने के लिए आईटी ऐक्ट, भारतीय दंड संहिता और राज्यों में लागू कानूनों की 66ए से मिलती-जुलती धाराओं के तहत सजा का प्रावधान अब भी खुला है। ऐसे ही एक मामले में कर्नाटक के सॉफ्टवेयर इंजीनियर को एक साल जेल की सजा सुनाई गई है।
यह भी पढ़ें : सोशल मीडिया पर आजादी मिली है, लेकिन ऐसी नहीं कि कुछ भी लिखें
श्रीनाथ नंबूदरी अपनी सहकर्मी को अश्लील और आपत्तिजनक ईमेल भेजता था। उसके खिलाफ महिला ने दिसंबर 2011 को सीबी-सीआईडी में कई धाराओं के तहत केस दर्ज करया था, जिसमें आईटी ऐक्ट की धारा 66ए भी शामिल थी।
मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने आईटी ऐक्ट की धारा 66ए को हटा दिया। हालांकि, अदालत ने आईटी ऐक्ट की धारा 67 (ई माध्यम से किसी आपत्तिजनक कंटेंट को प्रसारित या प्रकाशित करना), 506 की उपधारा दो (जान से मारने या चोट पहुंचाने की धमकी), और 509 (महिलाओं के सम्मान को ठेस पहुंचाने वाला कोई शब्द कहना या अभद्र इशारा करना) इसके साथ ही तमिलनाडु राज्य महिला उत्पीड़न निषेध अधिनियम 1998 के तहत अपराधी माना।
यह भी पढ़ें : श्रेया सिंघल की वजह से निरस्त हुई आईटी एक्ट की धारा 66A
नंबूदरी सिरुसेरी स्थित टीसीएस में सॉफ्टवेयर इंजीनियर था। वह अपनी एक सहकर्मी के प्रति आकर्षित हुआ। जब लड़की ने उसके प्रेम प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया, तो नंबूदरी ने अप्रैल 2011 से उसे कई आपत्तिजनक और अपमानजनक ईमेल भेजने लगा।
एक बार जब वह महिला आधिकारिक काम से अमेरिका गई तो नंबूदरी ने उसके बारे में अश्लील कंटेंट कंपनी के हेड को ईमेल कर दिया। नंबूदरी ने फोटोशॉप से महिला की नग्न तस्वीर बनाकर उसके भाई को भेज दी।
यह भी पढ़ें : SC का बड़ा फैसला, 'लिखने' से रोकने वाली धारा 66A खत्म
चेन्नई लौटने के बाद महिला ने इस पूरे मामले की शिकायत सीबीसीआईडी की आईटी शाखा में कराई। इसके बाद पुलिस ने नंबूदरी के खिलाफ मामला दर्ज किया। मंगलवार को सुनवाई के दौरान नंबूदरी ने महिला को उचित मुआवजा देने की बात कही।
सरकारी वकील जयंती ने इसका विरोध करते हुए कहा कि यह प्रताड़ना का गंभीर मामला है और इसलिए इस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए। जयंती ने बताया कि इस मामले की पूरी सुनवाई के दौरान पीड़िता का विवाह भी हो गया था, लेकिन उसने शादी के बाद भी इस केस को जारी रखने का फैसला किया। वह इस मामले में न्याय चाहती थी।