फैजाबाद। गुमनामी बाबा प्रकरण में सुबूतों की गिनती और चिन्हीकरण का आखिरी दिन भी काफी रोमांचकारी रहा। गुमनाम संत में अमेरिका की दिलचस्पी भी सामने आई है। इसके सुबूत अमेरिका के विदेश सचिव की ओर से स्वामी जी को संबोधित पत्र व अन्य पत्रों से मिले हैं, जिसे सीतापुर में नैमिषारण्य व मुरारका धर्मशाला के पते पर भेजा गया था। सबसे अहम वस्तु तो दांत व खून के सैंपल हैं। थर्मस व अन्य सामान भी मिला है।
देश को आजाद कराने के लिए नेता जी सुभाषचंद्र बोस की मुहिम में अमेरिका भी ब्रिटेन के साथ दुश्मन की श्रेणी में था। नेताजी को इंटरनेशनल वार क्रिमिनल घोषित कराने के लिए अमेरिका का खासा दबाव रहा। अब आइए पत्र की बात, शुक्रवार को मुखर्जी आयोग के बक्से से निकले अंतिम किस्त के सामान में अमेरिका के नई दिल्ली स्थित दूतावास से गुमनामी बाबा को भेजा गया पत्र है, जो यूनाइटेड स्टेट ऑफ अमेरिका की विदेश सेवा के पैड पर है। पत्र में यूनाइटेड मिशन की ओर से लिखा गया है कि "डियर मिस्टर स्वामी, आइ एग्रीड टू इनफार्म यू दैट द यूनाइटेड मिशन हैज लेफ्ट इंडिया।" यह किसी अमेरिकन एक्जीवीशन को लेकर है।
आगे लिखा है कि मैं सुनिश्चित हूं कि मिशन के सदस्य मुझसे जरूर मिलेंगे। संत को पत्र पर संज्ञान लेने के लिए धन्यवाद भी दिया गया है। ऐसा प्रतीत होता है कि यह पत्र गुमनामी बाबा के किसी पत्र के जवाब में भेजा गया था। अमेरिकी दूतावास से भेजे गए इस पत्र की प्राप्ति 10 फरवरी 1959 की है। पांच जुलाई 1980 को भेजा गया पत्र भी अहम है। पत्र में तत्कालीन यूनियन कैबिनेट मिनिस्टर अब्दुल बरकत अताउल्ला खान गनी चौधरी का भी उल्लेख है, जो बाद में पश्चिम बंगाल में कांग्रेस सरकार में मुख्यमंत्री भी बने थे। यह पत्र जिला अस्पताल के तत्कालीन सर्जन डॉ. रघुनाथ प्रसाद मिश्र के पते पर भेजा गया था। डॉ. मिश्र गुमनामी बाबा के बेहद करीबी लोगों में माने जाते हैं। 22 जुलाई 1971 को ब्रह्मकुंड गुरुद्वारा के पते पर गुमनामी बाबा को पोस्ट से भेजे गए पत्र का पावना है। माना जाता है कि गुमनामी बाबा ने कुछ समय अयोध्या स्थित ब्रह्मकुंड गुरुद्वारा में भी प्रवास किया था।
आरएसएस से जुड़ाव, डिक्टेटरशिप का भय
गुमनामी बाबा की ओर से उनकी एक और करीबी सरस्वती देवी शुक्ला द्वारा चार जुलाई 1970 व छह सितंबर 1972 को हेडगेवार भवन नागपुर के पते से गुरु गोलवरकर को भेजे गए पत्र की पावती मिली है। एक और पत्र राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ नागपुर के सर संघचालक के पैड पर 16 सितंबर 1972 को भेजा गया था, जो आज मिला। अनुमान है कि यह पत्र छह सितंबर 1972 के किसी पत्र के जवाब में भेजा गया था। यह पत्र गुमनामी बाबा के बस्ती प्रवास के दौरान भेजा गया था। सात नवंबर 1971 को लखनऊ के अधिवक्ता वीएन कौल का अंग्रेजी में लिखा पत्र है, जिसमें लिखा है कि अनाम संत का पत्र मिला, पढ़ते ही उबाल आ गया।
गिनती हुई पूरी अब तकनीकी समिति की प्रतीक्षा
26 फरवरी को शुरू हुई गुमनामी बाबा से जुड़े सुबूतों की गिनती आज पूरी हो गई। 18 दिनों के इस अभियान में 23 बक्सों के 1721 व मुखर्जी आयोग के 1131 सुबूतों की गिनती फैजाबाद के कोषागार के डबल लॉक में की गई। इनको फिर वहीं रख दिया गया है।
नेता जी से मेल नहीं खायी डीएनए रिपोर्ट
गुमनामी बाबा ही नेताजी सुभाष चंद बोस थे, नेताजी इन्क्वायरी कमीशन ने 1970 में इस प्रकरण की जांच की थी, जो किसी नतीजे पर नहीं पहुंचा। तमाम सुबूतों के बावजूद डीएनए रिपोर्ट ने विरोधाभास की स्थिति पैदा कर दी। शुक्रवार को मिले सुबूतों में छह दांत व रक्त सैंपुल भी हैं। रक्त सैंपल के बारे में कहा जाता है कि गुमनामी बाबा के शरीर त्यागने के दौरान ही वहां मौजूद डॉक्टरों ने यह रक्त सुरक्षित रखा था। मुखर्जी आयोग ने दोनों का डीएनए परीक्षण कोलकाता स्थित प्रतिष्ठित लैब से कराया था। डीएनए रिपोर्ट नकारात्मक आई थी।