दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला देते हुए कहा है कि किसी भी महिला की जाति उसके जन्म से निर्धारित होती है ना कि उसके दूसरी जाति के व्यक्ति से विवाह करने से। सर्वोच्च न्यायालय ने इस आधार एक महिला को केंद्रीय विद्यालय में मिली नौकरी को भी रद्द कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि जाति जन्म से निर्धारित होती है और दूसरी जाति में शादी करने से वह बदल नहीं जाती है।
मामला एक महिला का है जो 1993 से केंद्रीय विद्यालय में नौकरी कर रही थी। अग्रवाल परिवार में जन्मी महिला ने बाद में एक अनुसूचित जनजाति के पुरूष से विवाह कर लिया। विवाह के बाद महिला को बुलंदशहर के जिलाधिकारी कार्यालय से अनुसूचित जाति का प्रमाणपत्र भी जारी कर दिया गया। इस आधार पर महिला ने केंद्रीय विद्यालय में नौकरी भी पा ली। और बाद में जातिगत आधार पर प्रमोशन लेकर केंद्रीय विद्यालय में वाइस प्रिंसिपल भी बन गई।
इलाहाबाद हाइकोर्ट ने रद्द किया प्रमाणपत्र-
लंबे समय तक नौकरी करने के बाद उसके खिलाफ स्कूल में यह शिकायत दर्ज करवाई गई कि वो अवैध तरीके से अनुसूचित जाति को मिलने वाले फायदे ले रही है। स्कूल ऑथोरिटी ने जांच में शिकायत को सही पाया और महिला के जाति के प्रमाणपत्र को रद्द कर दिया। महिला ने स्कूल के फैसले के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट में अपील की, हाईकोर्ट का फैसला भी उसके खिलाफ आया, लेकिन हाईकोर्ट ने एक राहत भी दी की उसकी नियुक्ति को रद्द नहीं किया।
सुप्रीम कोर्ट ने भी खिलाफ दिया फैसला-
महिला ने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की और सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में महिला के जाति के प्रमाणपत्र को रद्द कर दिया,लेकिन महिला के विद्यालय में बेहतर रिकॉर्ड को देखते हुए उसको नौकरी से बर्खास्त नहीं करते हुए उसको अनिवार्य सेवानिवृत्ति दे दी गई और कहा कि उन्होने कोर्ट में किसी भी तथ्य को छुपाया नहीं है। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि महिला का जन्म अग्रवाल परिवार में हुआ है और उसने अनुसूचित जाति के व्यक्ति से शादी की है इसलिये इस आधार पर उसको अनुसूचित जाति का प्रमाणपत्र दिया जाना तर्कसंगत नहीं है।