Bail Rules: जानें क्या हैं ‘जमानत’ से जुड़े नियम, कानून में आज तक इस शब्द की परिभाषा तय नहीं
Bail Rules भारतीय कानून व्यवस्था में अपराध की गंभीरता को देखते हुए उसे दो भागों में विभाजित किया गया है।
By Sandeep Chourey
Edited By: Sandeep Chourey
Publish Date: Fri, 14 Apr 2023 12:52:28 PM (IST)
Updated Date: Fri, 14 Apr 2023 12:52:45 PM (IST)

Bail Rules। कोर्ट संबंधी मामलों में आपने अक्सर ‘जमानत’ शब्द के बारे में सुना होगा। आमतौर पर यह समझा जाता है कि जमानत जेल नहीं जाने का एक कानूनी उपाय है, लेकिन जमानत शब्द को लेकर कानून में विस्तार से उल्लेख किया गया है। कानूनी भाषा में जमानत शब्द का मतलब अन्वेषण एवं विचारण के लंबित रहने के दौरान और कतिपय मामलों में अभियुक्त के विरुद्ध दोषसिद्धि के बाद भी अभियुक्त का न्यायिक उन्मोचन है। कानूनी की ये भाषा समझने में भले ही काफी कठिन लगती है लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि भारतीय दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 'जमानत' शब्द को परिभाषित नहीं करती है, इसके बावजूद जमानत शब्द का प्रयोग भारतीय दंड संहिता में कई बार किया गया है। IPC में किसी अपराध के 'जमानतीय' एवं 'अजमानतीय' होने के बारे में कई बार वर्गीकृत किया गया है। जमानत के कानूनी पहलुओं और इससे जुड़े नियमों के बारे में यहां विस्तार से जानकारी दे रहे हैं एडवोकेट कमलेश गुरु -
जानें क्या होती है जमानत
हर व्यक्ति के जीवन मे कई सारी ऐसी घटनाएं हो जाती है, जिसमें उसके द्वारा जानबूझकर या अनजाने में अपराध हो जाता है। ऐसे में कानून की नजर में दोषी होने पर ऐसे व्यक्ति के लिये जमानत लेने का अधिकार दिया गया है। इस अधिकार के जरिए व्यक्ति जेल जाने से बच सकता है। हालांकि कई बार अपराध की गंभीरता देखकर कुछ मामलों में जमानत की व्यवस्था नहीं होती है। भारत में अपराध की गंभीरता को देखकर ही जमानत प्रदान की जाती है।
अपराध का दो प्रकार से वर्गीकरण
भारतीय कानून व्यवस्था में अपराध की गंभीरता को देखते हुए उसे दो भागों में विभाजित किया गया है। पहला जमानती अपराध और दूसरा गैर जमानती अपराध। किसी व्यक्ति द्वारा किए गए छोटे-मोटे अपराधों को जमानती अपराध की श्रेणी में रखा गया है। वहीं दूसरी ओर गैर जमानती अपराध में गंभीर अपराधों को शामिल किया जाता है। ऐसे मामलों में 3 साल या उससे कम की सजा का कानून में प्रावधान किया गया है।
ये अपराध होते हैं गैर जमानती
गैर जमानती अपराध की श्रेणी में जो अपराध शामिल किए गए हैं, उनमें दुष्कर्म, अपहरण, लूट, डकैती, मर्डर, मर्डर की कोशिश, गैर इरादतन हत्या, फिरौती के लिए अपहरण आदि शामिल हैं। ये सभी गंभीर किस्म के अपराध होते हैं इसलिए ऐसे मामलों में अपराधी को जमानत नहीं दी जाती है। हालांकि CRPC की धारा 437 में अपवाद स्वरूप कुछ गंभीर मामलों में भी अपराधी को जमानत दी जा सकती है।
इन शर्तों के साथ दी जाती है जमानत
जब किसी अपराधी को कोर्ट से जमानत दी जाती है तो उसमें कुछ शर्तें भी शामिल होती है। इस सभी शर्तों का उसे कड़ाई के साथ पालन करना होता है, अन्यथा जमानत खारिज हो जाती है। कोर्ट की शर्तें इस प्रकार होती है -
- रिहा होने के बाद पीड़ित पक्ष को परेशान नहीं करेंगे
- जमानत पर रिहा के दौरान किसी सबूत या गवाह को नुकसान पहुंचाने की कोशिश नहीं करेंगे
- जमानत के दौरान अपराधी विदेश नहीं जा सकता है
- जमानत के दौरान रिहा हुए व्यक्ति को निश्चित दायरे में ही रहना तय किया जा सकता है।
- गंभीर अपराध के मामले में अपराधी को रोज पुलिस स्टेशन जाकर हाजिरी लगानी पड़ सकती है।