एजेंसी, अररिया। बिहार में चुनावी रण (Bihar Assembly Election 2025) शुरु हो चुका है। 243 विधानसभा सीटों के लिए मतदान होने है। ऐसे में सभी दल सीटों का गणित और इतिहास समझने की कोशिश कर रही है। इसी क्रम में आज आपको एक ऐसे विधानसभा सीट के बारे में बताएंगे जहां भले ही पार्टी बदल जाए मगर जीत लगभग उसी प्रत्याशी की होती है जो यादव हो। यादव प्रत्याशियों का 'अभेद्य दुर्ग' कहा जाने वाला नरपतगंज विधानसभा (Narpatganj Vidhan Sabha)। आइए जानते है यहां चुनावी समीकरण...
अररिया जिले के उत्तरी व पश्चिमी छोर पर बसे इस विधानसभा क्षेत्र में यादव वोटरों का दबदबा रहता है। बता दें कि अब तक 15 विधानसभा चुनाव में से 14 बार यादव उम्मीदवार ही विधायक चुनकर निकले है। पार्टियां बदलती रही मगर जीते हुए उम्मीदवार की जाति नहीं। बिहार की राजनीति पर गहरा असर डालने वाला इस क्षेत्र की सबसे बड़ी समस्या बाढ़ है। इसका स्थायी हल अभी तक नहीं हो पाया है।
अब चलिए समझते है कि कैसे और कब-कब यहां की राजनीति ने सबको हैरान किया है।
बदलता है वोटरों का मिजाज - नरपतगंज विधानसभा सीट से कई दिग्गज अपनी किस्मत अजमा चुके हैं। माना जाता है कि हर बार यहां के वोटरों का मिजाज भी बदलता है। चुनावी संग्राम में हार-जीत का अनुमान जितना कठिन है उतना ही मुश्किल माना जाता है यहां के उम्मीदवारों का भविष्य।
फिलहाल टक्कर राजद और भाजपा में - पिछले कुछ चुनाव में राजद और भाजपा की टक्कर यहां देखी गई। साल 2020 चुनाव में बीजेपी उम्मीदवार जय प्रकाश यादव को जनता ने चुना, वहीं 2015 में राजद के अनिल कुमार यादव को वोटरों ने लोगों की कमान सौंपी। साल 2010 का चुनाव भी बीजेपी के नाम रहा और देवयंती यादव विधायक बनीं। हालांकि तीनों बार वोट प्रतिशत में बड़ा फेरबदल भी देखने को मिला।
परिसीमन के बाद बदला भूगोल - जानकारी हो कि 2009 के परिसीमन के बाद इस विधानसभा सीट का भूगोल बदल गया। नरपतगंज प्रखंड की सभी 29 पंचायत व भरगामा प्रखंड की 15 पंचायत फिलहाल इस विस सीट का हिस्सा है।
पहले सुरक्षित फिर सामान्य - इस क्षेत्र का सबसे पहले विधायक डूमरलाल बैठा बने। लेकिन अगले ही चुनाव सीट सुरक्षित से सामान्य होते ही कांग्रेस की टिकट पर सत्यनारायण यादव ने जीत हासिल की और लगातार तीन बार 1967, 1969 व 1972 में विधायक चुने गए। उन्होंने मंत्री पद की शपथ भी ली थी।
22 साल का कैंडिडेट बना MLA - साल 1977 में कुछ ऐसा हुआ जिसकी उम्मीद न थी। जनसंघ से चुनाव लड़े जनार्दन यादव ने दिग्गज सत्यनारायण यादव को हराकर खलबली मचा दी। जनार्दन यादव की उम्र उस वक्त मात्र 22 साल की थी।
राजनीतिक गलियारे में भूचाल आने के बाद मामला हाई कोर्ट पहुंचा और कम उम्र के कारण उन्हें विधायक पद गंवाना पड़ा। 1980 में फिर उम्मीदवारी जनार्दन यादव को मिली और उन्होंने इस सीट पर कब्जा जमाया।
वर्ष : विजेता (पार्टी)
1962 : डूमरलाल बैठा (कांग्रेस)
1967 : सत्यनारायण यादव (कांग्रेस)
1969 : सत्यनारायण यादव (कांग्रेस)
1972 : सत्यनारायण यादव (कांग्रेस)
1977 : जनार्दन यादव (जनसंघ)
1980 : जनार्दन यादव (भाजपा)
1985 : इंद्रानंद यादव (कांग्रेस)
1990 : दयानंद यादव (राजद)
1995 : दयानंद यादव (राजद)
2000 : जनार्दन यादव (भाजपा)
2005 : जनार्दन यादव (भाजपा)
2005 : अनिल कुमार यादव (राजद)
2010 : देवयंती यादव (भाजपा)
2015 : अनिल कुमार यादव (राजद)
2020 : जय प्रकाश यादव (भाजपा)