एजेंसी, पटना। बिहार चुनाव की रणभेरी बज चुकी है। इस बार एनडीए और महागठबंधन के अलावा प्रशांत किशोर की जनसुराज भी तीसरी ताकत के रूप में उभरी है। बिहार में 6 और 11 नवंबर को मतदान होगा। 14 नवंबर को पता चल जाएगा कि बिहार की जनता ने एनडीए, महागठबंधन या जनसुराज किस पर भरोसा जताया है।
ऐसे में यह जानना जरूरी है कि बिहार में ताल ठोंक रही एनडीए, महागठबंधन व जनसुराज की ताकत व कमजोरी क्या है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जोड़ी एनडीए की सबसे बड़ी ताकत है। दोनों सरकारों की जनकल्याणकारी योजनाएं, खासकर सामाजिक सुरक्षा पेंशन, महिलाओं को रोजगार सहायता और मुफ्त बिजली जैसी योजनाएं जनता के बीच लोकप्रिय हैं। राजद शासन से नाराज मतदाता अभी भी एनडीए के साथ हैं। एक करोड़ युवाओं को रोजगार देने की घोषणा ने उम्मीद जगाई है।
एनडीए को अफसरशाही की मनमानी, मंत्रियों पर लगे भ्रष्टाचार के आरोप और कार्यकर्ताओं की उपेक्षा जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। कई क्षेत्रों में वर्तमान विधायकों के प्रति आक्रोश और अधूरी घोषणाओं के कारण असंतोष भी बढ़ा है।
महागठबंधन का सबसे मजबूत पक्ष उसका मुस्लिम-यादव वोट समीकरण है, जो लगभग 30 प्रतिशत वोटों का आधार बनाता है। राहुल गांधी की वोटर अधिकार यात्रा से कांग्रेस की सक्रियता बढ़ी है। तेजस्वी यादव युवाओं के बीच लोकप्रिय हैं। नीतीश सरकार की कई योजनाओं का श्रेय और दलों की एकजुटता उन्हें मजबूती देती है।
टिकट वितरण में मुसलमानों की उपेक्षा, यादवों को प्राथमिकता परेशान कर सकती है। तेजस्वी-तेज प्रताप के बीच मतभेद ने भीतरखाने दरारें पैदा की हैं। कई दबंग नेताओं के कारण कमजोर वर्ग दूर हुआ है। बागियों के मैदान में उतरने का खतरा है।
प्रशांत किशोर की रणनीति और जनसंपर्क कौशल जनसुराज की सबसे बड़ी पूंजी है। लगातार ग्रामीण पदयात्रा ने पार्टी को जमीनी मजबूती दी है। युवाओं और भ्रष्टाचार विरोधी मतदाताओं में इसका असर दिख रहा है।
हालांकि अनुभवी प्रचारकों की कमी और तत्काल लाभ चाहने वाले समर्थक इसकी कमजोरी हैं। सवर्णवादी छवि और आरोप कि पीके किसी और दल के लिए काम कर रहे हैं। यह पार्टी के लिए चुनौती बन सकते हैं।