विकास चन्द्र पांडेय, पटना। बिहार में खुदरा महंगाई की दर 7.75 प्रतिशत रही, जो कि जुलाई में राष्ट्रीय औसत से अधिक रही। यह इस वित्तीय वर्ष का सर्वाधिक मंहगाई दर है। महंगाई बढ़ने की सबसे बड़ी वजह खाद्यान्न के साथ सब्जी-फल और मसाले आदि के मूल्य में अप्रत्याशित वृद्धि है। इसकी वजह से आम लोगों के लिए भोजन, कपड़े और आवास से जुड़ी लगभग हर चीज पर खर्च बढ़ गया है। वैसे भी उपभोक्ता प्रदेश होने के कारण बिहार को आय से लेकर खर्च तक हर मोर्चे पर परेशानी झेलनी पड़ती है।
केंद्र सरकार के आंकड़ों के मुताबिक जुलाई में पड़ोसी बंगाल में महंगाई की दर, बिहार से 1.79 प्रतिशत कम रही और झारखंड में 1.41 प्रतिशत अधिक। इसकी वजह ये रही कि बंगाल अनाज और सब्जी के उत्पादन में झारखंड से आगे है। इस माह महंगाई का सबसे बड़ा कारक सब्जियां रहीं, जिसका मूल्य जून की तुलना में 37.34 प्रतिशत अधिक रहा। वहीं मसाले एक महीने में 21.63 प्रतिशत महंगे हो गए। दाल और खाद्यान के भाव क्रमश: 13.27 और 13.04 प्रतिशत बढ़ गए। कपड़ा और फुटवियर के दाम 5.64 प्रतिशत बढ़े, जबकि मकान पर खर्च 4.47 प्रतिशत अधिक बढ़ गया।
भारतीय खाद्य निगम के गोदामों से गेहूं-चावल की खुले में बिक्री तक हो रही है। इसके बावजूद चावल-आटा और दाल के भाव बढ़ते जा रहे हैं। पिछले वित्तीय वर्ष के अंत में सभी श्रेणी में चावल की कीमत लगातार बढ़ रही थी। निर्यात पर रोक से मूल्य नियंत्रण में कुछ हद तक सफलता मिली। लेकिन फिर भी खाद्य पदार्थों के अनवरत बढ़ते मूल्य पर नियंत्रण के प्रयास पर्याप्त नहीं हैं। इसकी वजह के बारे में कारोबारी क्या कहते हैं आइये जानते हैं।
प्राधिकार का प्रयास मूल्य में लगातार होने वाली वृद्धि को नियंत्रित करना होता है। यह नियंत्रण किसी एक स्तर पर पहुंचकर होता है। यानी पिछली बार की तुलना में बढ़ी हुई किसी दर पर जाकर उस सामग्री का मूल्य स्थिर हो जाता है। इस तरह लाभ के लिए बाजार का मार्ग प्रशस्त रहता है। वह स्थिर मूल्य पर लंबे समय के लिए लाभ की स्थिति होती है। - राशन के थोक कारोबारी, रविशंकर गुप्ता
दूसरी स्थिति अल्पकालिक रूप से बेतहाशा लाभ की होती है, जैसा कि इन दिनों टमाटर के साथ हुआ। जीरा, काली मिर्च, आजवायन आदि मसालों के साथ भी अभी ऐसी ही स्थिति है। टमाटर का मूल्य अब स्थिर होने की ओर है तो प्याज और लहसुन का भाव धीरे-धीरे चढ़ रहा। इससे स्पष्ट है कि बाजार और लाभ के अंतर्संबंध का चक्र अनवरत घूमता रहता है।-राशन के थोक कारोबारी, रविशंकर गुप्ता
जाहिर है , स्थानीय उत्पादों से मूल्य-वृद्धि के इस चक्र की गति धीमी की जा सकती है, लेकिन इसमें दिक्कत ये है कि बिहार में उत्पादन कम होता है, जबकि उपभोक्ता अधिक हैं। ऐसे में स्थानीय उत्पादों का सस्ता मिलना आसान नहीं होता।