संतोष शर्मा, अलीगढ़। जिन पेट्रोलियम उत्पादों के रेट में उतार-चढ़ाव से भारत समेत पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था हिलोरें मार जाती हैं, उनके विकल्प की तलाश में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) अहम पड़ाव पर पहुंच चुकी है। यहां चर्बी और जेट्रोफा के बाद अब सरसों के तेल से बायो डीजल बनाने में कामयाबी हासिल की गई है।
पेट्रोलियम स्टडीज डिपार्टमेंट की असिस्टेंट प्रोफेसर की अगुवाई में डीजल बनाने की ऐसी तकनीक ईजाद की गई है, जो पांच घंटे की प्रक्रिया को सिर्फ पांच मिनट में कर देगी। एएमयू में पेट्रोलियम स्टडीज डिपार्टमेंट की असिस्टेंट प्रोफेसर मोइना अथर और उनकी टीम ने सरसों के तेल से बायो डीजल बनाने में कामयाबी पाई है। टीम ने तेल के साथ अल्कोहॉल व कोसोलवेंट (खास किस्म का रसायन) मिलाया है।
कोसोलवेंट ने सरसों के तेल व अल्कोहॉल को मिक्स कर दिया। यह प्रक्रिया इतनी तेजी से होती है कि इसमें सिर्फ चार से पांच मिनट ही लगते हैं। अभी तक जो तकनीक है, उससे बायो डीजल तैयार करने में चार से पांच घंटे लगते हैं। पुरानी विधियों में तेल व अल्कोहॉल को नहीं मिलाया जाता था। कोसोलवेंट के जरिए बायो डीजल बनाने के फायदे ही फायदे हैं। इस प्रक्रिया को लगातार चालू रखा जा सकता है।
अभी इस्तेमाल हो रही विधियों में ऐसा नहीं है। मसलन, एएमयू में जेट्रोफा से बायो डीजल बनाने के लिए प्लांट में जेट्रोफा का तेल लेते हैं। उत्प्रेरक, पोटेशियम हाइड्रो-ऑक्साइड और इथेनॉल को मिक्स करके 65 डिग्री सेल्सियस तक उबालते हैं। यह प्रक्रिया 45 से 130 मिनट तक चलती है। इसमें तैयार पदार्थ को बाल्टी में भरकर छोड़ देते हैं। दो दिन बाद बायो डीजल ऊपर आ पाता है।
मोइना अथर का कहना है कि बायो डीजल बनाने में कोसोलवेंट का इस्तेमाल पहली बार किया गया है। यह व्यावसायिक प्रयोग के लिहाज से कामयाब तरीका हो सकता है। इस बायो डीजल को बनाने में 30 रुपए प्रति लीटर खर्च आएगा। उन्होंने कहा कि हम तकनीक का पेटेंट कराने जा रहे हैं।