Chandra Shekhar Azad Birth Anniversary: इलाहाबाद में मिले थे चंद्रशेखर आजाद और जवाहरलाल नेहरू… इसके ठीक बाद अल्फ्रेड पार्क में चली थी गोलियां
Chandra Shekhar Azad Birth Anniversary: चंद्रशेखर आजाद का जन्म मध्यप्रदेश के भाबरा गांव में हुआ था, लेकिन मूल रूप से उनका परिवार उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के बदरका गांव से था। चंद्रशेखर आजाद का नाम चंद्रशेखर तिवारी था।
Publish Date: Wed, 23 Jul 2025 10:10:56 AM (IST)
Updated Date: Wed, 23 Jul 2025 10:10:56 AM (IST)
Chandra Shekhar Azad Birth AnniversaryHighLights
- जन्म जयंती पर चंद्रशेखर आजाद को दी जा रही श्रद्धांजलि
- जलियांवाला बाग कांड के दौरान बनारस में पढ़ाई कर रहे थे
- उसी समय आजाद ने क्रांतिकारी बनने का ले लिया था फैसला
डिजिटल डेस्क, इंदौर। वीर स्वतंत्रता सेनानी चंद्रशेखर आजाद (Chandra Shekhar Azad) का जन्म 23 जुलाई 1906 को मध्य प्रदेश में हुआ था। उन्होंने बहुत कम उम्र में ही अंग्रेजों के खिलाफ बगावत शुरू कर दी थी। उनकी बहादुरी के किस्से आज भी युवाओं को प्रेरित करते हैं।
इतिहास की किताबों में Chandra Shekhar Azad के बारे में बहुत कुछ लिखा गया है। उनके जुड़ा ऐसा ही एक किस्सा जवाहर लाल नेहरू से मुलाकात का है। पढ़िए इसी बारे में।
1931 में हुई थी चंद्रशेखर आजाद और जवाहरलाल नेहरू की मुलाकात
- साल 1931 में चंद्रशेखर आजाद की मुलाकात इलाहाबाद में जवाहरलाल नेहरू से हुई थी। इस मुलाकात के बारे में खुद नेहरू ने अपनी आत्मकथा में और इतिहासकार यशपाल ने अपनी किताब ‘सिंहावलोकन’ में लिखा है।
- मुलाकात नेहरू के निवास आनंदभवन में हुई थी। जब आजाद पहुंचे, तो नेहरू पहचान नहीं पाए, लेकिन जब परिचय जान लिया, तब आजाद से बोले कि हां मैंने 10 साल पहले भी तुम्हारा नाम सुना था।
- इसके बाद आजाद ने अंग्रेजों और कांग्रेस के बीच होने वाले समझौते के बारे में पूछा। इसी चर्चा के दौरान नेहरू ने कहा कि क्रांतिकारी तौर-तरीकों से आजादी हासिल नहीं का जा सकती है। साथ ही आजाद के संगठन पर भी टिप्पणी की।
इतिहासकार लिखते हैं कि चंद्रशेखर आजाद इस मुलाकात से खुश नहीं थे। यह संयोग ही है कि इस मुलाकात के ठीक सात दिन बाद यानी 27 फरवरी 1931 को चंद्रशेखर आजाद अपने साथी राजगुरु के साथ अल्फ्रेड पार्क में बैठे थे।
अल्फ्रेड पार्क के ठीक सामने ही नेहरू का निवास थे। पार्क में बैठे आजाद और राजगुरु बातें कर रहे थे, तब एक बग्घी आई, जिसमें से हाथ में बंदूक लिए कुछ अंग्रेज उतरे।
ये अंग्रेज सीधे आजाद और राजगुरु की तरफ बढ़े। वो समझ नहीं पा रहे थे कि अंग्रेजों को कैसे उनकी लोकेशन मिली। एक अंग्रेज अफसर ने बंदूक तानते हुए दोनों से उनका परिचय पूछा।
आजाद और राजगुरु के हाथ भी अपनी-अपनी बंदूकों पर थे। कोई कुछ कह पाता और सुन पाता, इससे पहले गोलियां चलने लगी। इसी दौरान एक गोली आजाद के पैर में लगी। आजाद के कहने पर राजगुरु वहां से भाग गए।
बाद में बचने का कोई तरीका नहीं सूझा, तो आजाद ने खुद को गोली मार ली। इस तरह इस महान स्वतंत्रता सेनानी का अंत हो गया। आज भी सवाल उठता है कि नेहरू से मुलाकात के ठीक बाद हुई इस घटना का राज क्या है। ![naidunia_image]()
यहां भी क्लिक करें - विप्र समागम की तैयारी... चंद्रशेखर आजाद व बाल गंगाधर तिलक को करेंगे नमन
मुखबिरों से संभल कर रहते थे Chandra Shekhar Azad
चंद्रशेखर आजाद मुखबिरों से संभल कर रहते थे। जहां भी उनकी पहचान उजागर हो जाती थी, वो ठिकाना बदल लेते थे। कई बार तो उन्होंने शहर तक बदल लिया। नेहरू से मुलाकात के बाद ठिकाना बदलने का मौका नहीं मिला।