माला दीक्षित, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा है कि उच्च न्यायालय मृत्युदंड, उम्रकैद या दस वर्ष से अधिक कारावास की सजा पाए अपराधी को अपील के दौरान यूं ही जमानत नहीं दे सकता। यानी गंभीर अपराध के दोषियों को आसानी से जमानत पर रिहा नहीं किया जा सकता है। ऐसे मामले में दोषी को जमानत देने से पहले कोर्ट सरकार को लिखित में आपत्ति दर्ज कराने का मौका देगा।
यह कहते हुए कोर्ट ने हत्या के जुर्म में उम्रकैद की सजा पाए चार दोषियों को जमानत दिए जाने का इलाहाबाद हाई कोर्ट का आदेश निरस्त कर दिया है। कोर्ट ने ऐसे मामलों में जमानत देने के कानूनी आधार तय करते हुए मामला नए सिरे से विचार के लिए उच्च न्यायालय वापस भेज दिया है।
न्यायमूर्ति एमवाई इकबाल और न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ की पीठ ने उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ के एक मामले में यह फैसला सुनाया है। कोर्ट ने हत्या के जुर्म में उम्रकैद की सजा पाए प्रधानाचार्य श्याम नारायण पांडे, व तीन अन्य दोषी लक्ष्मी नारायण पांडे, उमेश कुमार पांडे व रमेश कुमार पांडे की जमानत रद कर दी। कोर्ट ने चारो को तीन सप्ताह में समर्पण करने का आदेश दिया है।
कोर्ट ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 389(1) में साफ कहा गया है कि मृत्युदंड, उम्रकैद या दस वर्ष से अधिक के कारावास की सजा पाए दोषी को जमानत देने से पहले कोर्ट लोक अभियोजक यानी सरकारी वकील को लिखित में आपत्ति दर्ज कराने का मौका देगा। सरकार दोषी को जमानत के खिलाफ अपना लिखित जवाब दाखिल करेगी।
अगर मौका देने के बावजूद सरकार लिखित जवाब नहीं दाखिल करती है तो भी कोर्ट अपने आदेश में यह बात दर्ज करेगा। इसके बाद कोर्ट न्याय के हित को देखते हुए अपराध की गंभीरता, दोषी की उम्र और उसके आपराधिक रिकार्ड के अलावा उसकी रिहाई से समाज पर पड़ने वाले प्रभाव पर विचार करने के बाद ही कोई फैसला देगा।
कोर्ट ने कहा कि मौजूदा मामले में ऐसा नहीं किया गया है। दोषियों को जमानत देने से पहले सरकारी वकील को लिखित में आपत्ति दर्ज कराने का मौका नहीं दिया गया है।
इसके अलावा कोर्ट ने सजा पर रोक लगाने की मांग वाली श्याम नारायण पांडे की अलग से दाखिल की गई याचिका भी खारिज कर दी। पांडे का कहना था कि अगर उसकी सजा पर रोक नहीं लगाई गई तो वह जेल चला जाएगा और उसकी प्रधानाचार्य की नौकरी चली जाएगी, जो कि उसकी व परिवार की रोजी रोटी का जरिया है।
कोर्ट ने कहा कि सजा पर रोक लगाने का यह उचित आधार नहीं है। वैसे भी उसकी जमानत खारिज की जा चुकी है।
कोर्ट अपराध की गंभीरता, दोषी की उम्र और उसके आपराधिक रिकार्ड के अलावा उसकी रिहाई से समाज पर पड़ने वाले प्रभाव पर विचार करने के बाद ही कोई फैसला देगा। -सर्वोच्च न्यायालय