माला दीक्षित, नई दिल्ली। पश्चिम बंगाल का भूमि सुधार कानून सुप्रीम कोर्ट की कसौटी पर है। पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ कानून के तहत भूमि की परिभाषा में हाट, बाजार, पोखर और तालाब की जमीन को भी शामिल कर भूमि हद बंदी लागू किए जाने की वैधानिकता जांचे परखेगी।
मामले में आने वाले फैसले से पूरा पश्चिम बंगाल प्रभावित होगा। न्यायमूर्ति एचएल दत्तू, न्यायमूर्ति आरके अग्र्रवाल व न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा की पीठ ने किसानों और भू स्वामियों की ओर से भूमि सुधार संशोधन कानून पर सवाल उठाने वाली विभिन्न याचिकाओं को विचार के लिए पांच न्यायाधीशों की संविधानपीठ को भेज दिया।
जो प्रश्न विचार के लिए संविधानपीठ को गए हैं, उनमें खास कर हाट, बाजार, पोखर और तालाब की जमीन को भूमि की परिभाषा में शामिल करना और उस पर हदबंदी लागू करने का मसला शामिल है। इसके अलावा जमीन के मालिकाना हक का और भूमि सुधार कानून को संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल कर अदालत में चुनौती दिए जाने की जद से बाहर करने के प्रश्न पर भी विचार होगा।
भू स्वामी तुषार कांति दत्ता मुंशी के वकील राजकुमार गुप्ता ने अदालत में कहा कि इस मामले में कानून के अहम प्रश्न शामिल हैं। आखिर पोखर, तालाब, हाट, बाजार को भूमि की परिभाषा में शामिल कर 11 एकड़ जमीन रखने की हदबंदी कैसे लागू की जा सकती है। उन्होंने कहा कि पश्चिम बंगाल में पोखर और तालाब तो लोग रखते ही हैं, ये अतिरिक्त सुविधा है इसे नहीं छीना जा सकता।
इसमें पूरा पश्चिम बंगाल प्रभावित हो रहा है। कोर्ट ने उनकी और करीब दो दर्जन किसान संस्थाओं की ओर से दाखिल याचिकाओं को विचार के लिए संविधानपीठ को भेज दिया। पश्चिम बंगाल भूमि सुधार अधिनियम 1955 में बना। 1981 में इसमें संशोधन हुआ और 11 एकड़ तक जमीन रखने का भू हदबंदी कानून शामिल कर दिया गया।
हालांकि उस समय भूमि की परिभाषा में बगीचा शामिल नहीं था। 1986 में इस कानून में फिर संशोधन हुआ और जमीन की परिभाषा को और व्यापक कर दिया गया और कृषि भूमि के साथ-साथ गैर कृषि भूमि को भी इसमें शामिल कर दिया गया। इसमें मील, फैक्ट्री, बाजार, हाट, जलाशय, तलाब, पोखर सब शामिल हो गए और ये जमीन भी 11 एकड़ की हदबंदी सीमा में शामिल कर दी गई। कानून के इन दोनों संशोधनों को कलकत्ता हाई कोर्ट में चुनौती दी गई।
हाई कोर्ट ने मुआवजा संबंधी कुछ प्रावधान तो निरस्त किए, लेकिन संशोधन कानून को सही ठहराया। फैसले के खिलाफ किसान भूस्वामी और राज्य सरकार सभी सुप्रीम कोर्ट पहुंचे हैं। पहले यह मामला दो न्यायाधीशों फिर तीन और अब मामला पांच न्यायाधीशों को भेजा गया है।