कानून मंत्रालय ने संकेत दिए हैं कि यदि शिकायत की जाती है तो 1997 में हुए दिल्ली के उपहार सिनेमा कांड की दोबारा जांच हो सकती है। कानून मंत्रालय की ओर से कहा गया है कि शिकायत मिलने पर सभी विकल्पों पर विचार किया जाएगा, जिनमे केस की दोबारा जांच भी शामिल है। बता दें, दिल्ली के उपहार सिनेमागृह (Uphar Cinema Kand) में हुए उस अग्निकांड की सबसे बड़ी विडंबना यह थी कि सिनेमागृह की बिल्डिंग में आग लगने से ट्रांसफार्मर फूटने सहित अन्य चीजों के जलने और फूटने से जोरदार धमाके हो रहे थे, लेकिन सिनेमा हॉल के अंदर बैठकर फिल्म देख रहे लोगों को लग रहा था कि ये धमाके तो फिल्म के सीन में हो रहे हैं।
किस्सा उस दर्दनाक घटना का है, जिसमें 59 लोग मारे गए थे और 103 लोग बुरी तरह घायल हो गए थे। वह 13 जून, 1997 का दिन था। गर्मियां के दिन थे और दोपहर में लपट चलती थी। उन्हीं दिनों देशभर के सिनेमागृहों में 'बॉर्डर' फिल्म चल रही थी। फिल्म सुपरहिट थी और देश के तमाम शहरों में लोग उसे देखने उमड़ रहे थे। 13 जून के उस मनहूस दिन, दोपहर वाले शो में राजधानी दिल्ली में भी लोग उपहार सिनेमागृह में बॉर्डर देखने पहुंचे।
तय समय पर शो शुरू हुआ और अपनी तरफचुपचाप कदमों से बढ़ती मौत से बेफिक्र लोग अपनी-अपनी सीटों पर जाकर बैठ गए। फिल्म शुरू हुई और साथ ही शुरू हो गया वह रोमांच, जिसकी अनुभूति के लिए वे भद्र लोग अपने परिवारों के साथ सिनेमागृह में पहुंचे थे। लेकिन तभी मृत्यु ने अपना खेल दिखा दिया। भीषण गर्मी का समय था इसलिए पता नहीं किस क्षण में सिनेमागृह के ट्रॉसफार्मर रूम में शॉर्ट सर्किट हो गया।
चिंगारी भड़की और कुछ ही देर में भयानक आग में बदल गई। ट्रॉसफार्मर फूटने लगे और जोरदार धमाकों की आवाजें आने लगीं। ये आवाजें सिनेमागृह के अंदर गहन अंधकार में बैठे लोगों के कानों तक भी पहुंची, लेकिन उसी समय स्क्रीन पर बॉर्डर फिल्म में लड़ाई का सीन भी चल रहा था। दर्शकों ने स्वाभाविक रूप से मान लिया कि ये धमाके तो फिल्म में हो रहे हैं।
इन धमाकों की जोरदार आवाजों ने दर्शकों का रोमांच बढ़ाया ही होगा। किंतु कुछ ही देर में आग ने विकराल रूप धारण किया और पूरे सिनेमागृह को लाक्षागृह बना डाला। अंधेरे में बैठे लोगों का जीवन ही अंधकारमय हो गया। बचे रह गए तो सिर्फ सवाल, सन्नाटा और आंसू।