अश्वनी त्रिपाठी, शामली। कोई कुछ भी कहे, मगर सच यही है कि कौमी एकता के हामी रहे उत्तर प्रदेश के शामली जिले के कैराना कस्बे की कीर्ति कलंकित हो चुकी है। रंगदारी, अपहरण, लूटपाट और हत्या की लगातार वारदातों ने अवाम का चैन छीन लिया है।
पिछले करीब चार वर्षों में भय के मारे ढाई सौ से भी ज्यादा हिदू परिवारों ने यहां से पलायन कर लिया। इनमें अधिकांश कारोबारी हैं। पलायन का यह सिलसिला खत्म नहीं हुआ है। पुलिस-प्रशासन ने इस लंबी अवधि में सुरक्षा के उपाय नहीं किए।
हाकिम और हुक्मरानों से भरोसा उठा तो तमाम लोगों ने घर-बार छोड़ दिया। नतीजतन कई बस्तियां बेगानी हो गईं। तमाम घरों पर ताले लटके हैं। अब भाजपा सांसद हुकुम सिंह ने इस मुद्दे पर गृह मंत्रालय को पत्र लिखा तो सियासी प्याले में तूफान उठा। प्रशासन के कान खड़े हो गए।
कारोबारी बने निशाना
आपराधिक वारदातों के लिए कैराना पहले से ही बदनाम रहा है। अधिकांश मामलों में बदमाशों ने व्यापारियों को ही निशाना बनाया। 2014 में शिवकुमार, विनोद और राजेंद्र नामक कारोबारियों से बदमाशों ने रंगदारी मांगी और न देने पर तीनों को बेरहमी से मार डाला। इस घटना के बाद तो कैराना में व्यापार करने वालों में दहशत घर कर गयी। लूटपाट, अपहरण और हत्या की अनगिनत घटनाएं होती रहीं, लेकिन पुलिस-प्रशासन इसे रोकने में नाकाम रहा।
मकान बिकाऊ हैं
नतीजा यह हुआ कि कैराना की मिश्रित आबादी वाले मोहल्ला दरबार कलां, आलकला, गुंबद, आर्यपुरी, घोसा चुंगी, अफगानान और कायस्थबाड़ा में रहने वाले हिदू परिवारों ने जान बचाकर घर छोड़ने में ही भलाई समझी। अब आलम यह है कि इन मोहल्लों से तमाम हिदू परिवार अपनी दुकान-मकान बेचकर दूसरे शहरों में बस गए हैं। कई घर ऐसे हैं, जिनके दरवाजों पर "मकान बिकाऊ हैं" का बोर्ड टंगा हुआ है।
खौफ में हिदू परिवार
इन मोहल्लों में जो हिदू परिवार रह भी रहे हैं, वे भी खौफ के साये में हैं। संपन्न वर्ग के पलायन के पीछे रंगदारी और हत्या ही मुख्य वजह है। कारोबार करने वालों से हफ्ता वसूली की जाती है। पुलिस किसी मामले में कोई ठोस कार्रवाई नहीं कर सकी है।
अस्मत की चिंता
व्यापारियों के अलवा दलित और पिछड़े वर्ग के भी बड़ी संख्या में लोग यहां से जा चुके हैं। दलितों-पिछड़ों के पलायन के पीछे रंगदारी तो नहीं लेकिन उनकी बहू-बेटियों की इज्जत का सवाल रहा। कई बार दुष्कर्म जैसी घटनाएं प्रकाश में आईं। छेड़छाड़ तो यहां के लिए आम बात है।