शंकर शाह ने कविताओं से जगाई आजादी की अलख
शंकर शाह गढ़ा मंडला के प्राचीन गौंड राजघराने के वंशज थे। उन्होंने अपनी कविताओं से ग्रामीणों और आदिवासियों को आजादी के लिए प्रेरित किया।
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Publish Date: Thu, 14 Aug 2014 02:27:32 PM (IST)
Updated Date: Fri, 15 Aug 2014 04:00:54 AM (IST)
शंकर शाहजबलपुर। शंकर शाह गढ़ा मंडला के प्राचीन गौंड राजघराने के वंशज थे। इसी राजवंश में प्रतापी वीर महारानी दुर्गावती थीं, जिन्होंने मुगल बादशाह अकबर की फौज से संघर्ष करते हुए अपने प्राणों की आहुति देकर अपनी और अपने राज्य की स्वतंत्रता को अक्षुण्ण रखा था।
स्वतंत्रता प्रेमी यशस्वी पूर्वजों से प्रेरित होकर शंकर शाह ने अंग्रेजों के खिलाफ क्रांति में सहयोग दिया। वीर शंकर शाह ने एक छंदमय कविता की रचना की और गांव-गांव में और दूरदराज के वनों में रहने वाले आदिवासी गर्व और जोश से इस कविता को गाते हुए अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह करने लगे। जबलपुर के डिप्टी कमिश्नर को जब इसकी सूचना मिली तो उन्होंने इस कविता के रचनाकार को तलाशना शुरू कर दिया।
जांच के दौरान जब पुलिस को पता चला कि राजा शंकर शाह कविताएं लिखते हैं, तो डिप्टी कमिश्नर ने गढ़ा मंडला में उनके निवास की तलाशी ली। वहां एक कागज पर लिखी कविता उन्हें मिली, तो उन्होंने राजा शंकर शाह को कैद कर लिया। अपने प्रिय नेता और राजा तथा उसके परिजनों की गिरफ्तारी की खबर मिलने पर आदिवासी उग्र हो गए। उन्होंने इनकी रिहाई के लिए जबलपुर पर सशस्त्र हमला कर दिया।
तोप से बांधकर उड़ा दिया
आदिवासी विद्रोहियों ने जेल से कई कैदियों को रिहा कराने में सफलता पाई पर कुछ दिनों बाद जेल से भागे कई कैदियों को पकड़ने में अंग्रेज पुलिस को सफलता भी मिल गई और उनमें से कई कैदियों को चुपचाप राजद्रोह का अपराधी घोषित कर उन्हें कठोर दण्ड दिया गया।
राजा शंकर शाह और उनके पुत्र रघुनाथ शाह को 18 सितम्बर 1857 को एक तोप के मुंह से बांधकर मौत की नींद सुला दिया गया। वृद्ध शंकर शाह और उनके पुत्र ने सीना तानकर अपनी मातृभूमि की आजादी के लिए जयघोष किया और खुशी-खुशी मौत को गले लगा लिया।