नईदिल्ली। श्री राम के परम भक्त हनुमानजी को 'वीरों के वीर महावीर' कहा जाता है। जिन्होंने अपने प्रभु राम की रक्षा करने के लिए बहुत से युद्ध किए और जीते। शास्त्रों में इन्हें 'संकटमोचन' कहा जाता है क्योंकि ये अपने भक्तों को हर संकट से उबारते हैं। रामायण की कथा से यह पता चलता है कि हनुमानजी अपनी निःस्वार्थ भक्ति से राम के मन मंदिर में बसे हुए हैं। उन्होंने अपने पराक्रम से बड़े-बड़े राक्षसों का नाश किया। हनुमानजी ने अपने पराक्रम से शनिदेव, बाली, अर्जुन, भीम जैसे वीरों को युद्ध में पराजित करके उनका अभिमान चूर-चूर किया। लेकिन क्या आपको पता है कि संकटमोचन हनुमानजी ने अपने जीवन काल में अभिमान वश एक ऐसा भी युद्ध लड़ा जिसमें उन्हें हार का सामना करना पड़ा ? इस युद्ध में हनुमानजी को हराने वाले कोई और नहीं एक अन्य राम भक्त ही थे।
उन्हें हराने वाले मच्छिंद्रनाथजी नाम के एक बड़े तपस्वी थे। एक बार जब वे रामेश्वरम में आए तो रामजी निर्मित सेतु देख कर वे भावविभोर हो गए और प्रभु राम की भक्ति में लीन होकर वे समुद्र में स्नान करने लगे। तभी वानर वेश में उपस्थित हनुमानजी की नजर उन परपड़ी और उन्होंने मच्छिंद्रनाथजी की शक्ति की परीक्षा लेनी चाही। हनुमानजी ने अपनी लीला आरंभ की, जिससे वहां तेज बारिश होने लगी, हनुमानजी उस बारिश से बचने के लिए एक पहाड़ पर वार कर गुफा बनाने की कोशिश का स्वांग करने लगे। मच्छिंद्रनाथजी का ध्यान टूटा और उन्होंने तुरंत सामने पत्थर को तोड़ने की चेष्टा करते हुए उस वानर से कहा - 'हे वानर तुम क्यों ऐसी मूर्खता कर रहे हो, जब प्यास लगती है तब कुआं नहीं खोदा जाता, इससे पहले ही तुम्हें अपने घर का प्रबंध कर लेना चाहिए था।' ये सुनते ही वानर रूपी हनुमानजी ने मच्छिंद्रनाथजी से पूछा - 'आप कौन हैं?' जिस पर मच्छिंद्रनाथजी ने स्वयं का परिचय दिया - 'मैं एक सिद्ध योगी हूं और मुझे मंत्र शक्ति प्राप्त है।' हनुमानजी ने मच्छिंद्रनाथजी की शक्ति की परीक्षा लेने के उद्देश्य से कहा - 'वैसे तो प्रभु श्रीराम और महाबली हनुमानजी से श्रेष्ठ योद्धा इस संसार में कोई नहीं है, पर कुछ समय उनकी सेवा करने के कारण, उन्होंने प्रसन्ना होकर अपनी शक्ति का एक प्रतिशत हिस्सा मुझे भी दिया है, ऐसे में अगर आप में इतनी शक्ति है और आप पहुंचे हुए सिद्ध योगी हैं तो मुझे युद्ध में हरा कर दिखाएं, तभी मैं आपके तपोबल को मानूंगा।'इतना सुनते ही मच्छिंद्रनाथजी ने उस वानर की चुनौती स्वीकार कर ली।
तब वानर रूपी हनुमानजी ने मच्छिंद्रनाथजी पर 7 बड़े पर्वत फेंके, पर इन पर्वतों को अपनी तरफ आते देख मच्छिंद्रनाथजी ने अपनी मंत्रशक्ति का प्रयोग किया और उन सभी सातों पर्वतों को हवा में स्थिर कर उन्हें उनके मूल स्थान पर वापस भेज दिया। इतना देखते ही महाबली को क्रोध आया उन्होंने मच्छिंद्रनाथजी पर फेंकने के लिए वहां उपस्थित सबसे बड़ा पर्वत अपने हाथ में उठा लिया। जिसे देखकर मच्छिंद्रनाथजी ने समुद्र के पानी की कुछ बूंदों को अपने हाथ में लेकर उसे वाताकर्षण मंत्र से सिद्ध कर हनुमानजी के ऊपर फेंका। पानी की बूंदों का स्पर्श होते ही हनुमानजी का शरीर स्थिर हो गया और वे हलचल करने में भी असमर्थ हो गए।
मंत्रशक्ति से कुछ क्षणों के लिए हनुमानजी की शक्ति छिन गई और वे उस पर्वत के नीचे दबकर तड़पने लगे। हनुमानजी का कष्ट देख उनके पिता वायुदेव प्रकट हुए और मच्छिंद्रनाथजी से हनुमानजी को क्षमा करने की प्रार्थना की। वायुदेव की प्रार्थना सुन मच्छिंद्रनाथजी ने हनुमानजी को मुक्त कर दिया और हनुमानजी अपने वास्तविक रूप में आ गए। फिर उन्होंने मच्छिंद्रनाथजी से कहा 'हे मच्छिंद्रनाथजी आप तोस्वयं में नारायण के अवतार हैं, ये मैं जानता था, फिर भी मैं आपकी शक्ति की परीक्षा लेने की कुचेष्टा कर कर बैठा, आप मेरी इस भूल को माफ करें।' यह सुनकर और स्थिति को समझते हुए मच्छिंद्रनाथजी ने हनुमानजी को क्षमा कर दिया।