डिजिटल डेस्क, मुंबई। महाराष्ट्र के मालेगांव में हुए शक्तिशाली विस्फोट (Malegaon bomb blast) के सत्रह साल बाद, मुंबई की एक विशेष NIA अदालत आज 2008 के मालेगांव बम विस्फोट मामले में अपना फैसला सुनाया। आपको बता दें कि 2011 में यह मामला राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) को सौंप दिया गया था। तब से, कई आरोपपत्र और पूरक रिपोर्ट दायर की जा चुकी हैं। सात अभियुक्तों के विरुद्ध औपचारिक रूप से आरोप तय होने के बाद 2018 में मुकदमा शुरू हुआ और आज यानी 31 जुलाई को NIA कोर्ट ने इस मामले 17 साल बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने मामले में पूर्व BJP सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह और पूर्व सैन्य अधिकारी लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद श्रीकांत पुरोहित ठाकुर सहित सभी सात आरोपियों को बरी कर दिया है।
क्या था मामला?
आपको बता दें कि 29 सितंबर, 2008 की रात मालेगांव के भिक्कू चौक के पास हुए विस्फोट में छह लोग मारे गए और सौ से ज़्यादा घायल हुए। एक व्यस्त चौराहे के पास एक मोटरसाइकिल में लगा बम फट गया, जिससे सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील इस कस्बे में दहशत और अफरा-तफरी मच गई। मालेगांव विस्फोट का मुकदमा हाल के दिनों में सबसे जटिल और राजनीतिक रूप से संवेदनशील आतंकवादी मुकदमों में से एक रहा है।
शुरुआत में महाराष्ट्र आतंकवाद निरोधक दस्ते (ATS) की ओर से जांच किए जाने के बाद, इस मामले में नाटकीय मोड़ तब आया जब जांच के दौरान हिंदू दक्षिणपंथी समूहों से जुड़े लोगों की गिरफ़्तारी हुई। इसके बाद विवादास्पद राजनीतिक मुहावरा "हिंदू आतंक" सामने आया। गिरफ़्तार किए गए लोगों में पूर्व भाजपा सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर और पूर्व सैन्य अधिकारी लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद श्रीकांत पुरोहित भी शामिल थे, जिन्होंने अपनी संलिप्तता से इनकार किया और बाद में उन्हें जमानत मिल गई।
दोनों ने आरोपों से इनकार करते हुए आरोप लगाया कि उन्हें झूठा फंसाया गया तथा जांच के दौरान प्रताड़ित किया गया। 2011 में मामला अपने हाथ में लेने के बाद, एनआईए ने एटीएस द्वारा शुरू में लगाए गए कुछ आरोप हटा दिए, जिनमें महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (मकोका) के तहत लगाए गए आरोप भी शामिल थे, लेकिन गैरकानूनी गतिविधियाँ रोकथाम अधिनियम (UPA) और भारतीय दंड संहिता के तहत लगाए गए आरोप बरकरार रखे। दोनों आरोपियों को 2017 में ज़मानत मिल गई थी।
मालेगांव विस्फोट की शुरुआत में महाराष्ट्र आतंकवाद निरोधक दस्ते (ATS) ने जांच की थी। हेमंत करकरे के नेतृत्व वाली एटीएस ने दावा किया था कि विस्फोट दक्षिणपंथी हिंदू अतिवादी समूहों से जुड़े लोगों की ओर से किया गया था। उनकी जांच ने भारतीय आतंकवाद-रोधी आख्यानों में एक महत्वपूर्ण मोड़ ला दिया, क्योंकि यह पहली बार था जब हिंदू संगठनों से जुड़े व्यक्तियों पर आतंकवाद का आरोप लगाया गया था।
एटीएस ने साध्वी प्रज्ञा को गिरफ्तार किया, जिनकी मोटरसाइकिल कथित तौर पर विस्फोट में इस्तेमाल की गई थी। जांचकर्ताओं ने दावा किया कि वह योजना बनाने में सक्रिय रूप से शामिल थीं और उन्होंने ही अपराधियों को वाहन उपलब्ध कराया था।
बाद में लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित को गिरफ्तार किया गया और उन पर एक प्रमुख विचारक और सूत्रधार होने का आरोप लगाया गया। एटीएस ने आरोप लगाया कि पुरोहित ने अभिनव भारत समूह के साथ अपने संबंधों के माध्यम से बैठकें आयोजित कीं, लोगों की भर्ती की और विस्फोट में इस्तेमाल आरडीएक्स हासिल किया।
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