प्रसिद्ध कवि व लेखक मंगलेश डबराल का बुधवार को 76 वर्ष की आयु में निधन हो गया। वह बीते कुछ दिनों से कोविड-19 से संक्रमित थे। डबराल वसुंधरा सेक्टर नौ स्थित जनसत्ता अपार्टमेंट में रहते थे। एक सप्ताह पहले वह कोरोना संक्रमित हो गए थे। उनका वसुंधरा के निजी अस्पताल में इलाज चल रहा था। उनकी तबीयत लगातार बिगड़ती जा रही थी। बुधवार को हृदयगति रुकने से उनकी मृत्यु हो गई। 14 मई 1948 को टिहरी गढ़वाल, उत्तराखंड के काफलपानी गांव में मंगलेश डबराल का जन्म हुआ था। लंबे समय से वह वसुंधरा में ही रह रहे थे।मंगलेश डबराल (16 मई 1948-9 दिसंबर 2020) का जन्म उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल के कपालपानी गाँव में हुआ था, उन्होंने देहरादून में अपनी शिक्षा पूरी की। उन्होंने दिल्ली में हिंदी देशभक्त, प्रतिपक्ष और आसपास में सेवा की है। बाद में उन्होंने भोपाल के भारत भवन से प्रकाशित पूर्वाग्रह में सहायक संपादक के रूप में काम किया। उन्होंने इलाहाबाद और लखनऊ से प्रकाशित अमृत प्रभात में भी काम किया है। वह जनसत्ता के संपादक भी रहे हैं।
संपादक के रूप में सहारा सामय में काम करने के बाद, मंगलेश एक संपादकीय सलाहकार के रूप में नेशनल बुक ट्रस्ट में शामिल हो गए। नेशनल बुक ट्रस्ट, भारत छोड़ने के बाद, वह इसके संपादक के रूप में हिंदी मासिक 'सार्वजनिक एजेंडा' में शामिल हो गए। उन्होंने कविता के पांच संग्रह प्रकाशित किए, जिनके नाम हैं, पहर लाल लालटेन, घर का रास्ता, हम जो दे गए, जाग रहे एक जग है और नई युग पुरुष शत्रु, गद्य के दो संग्रह लीख की रोटी और कवि के अकलेपन और एक यात्रा डायरी एक।
वर्ष 2000 में उनके कविता संग्रह हम जो दे गए हैं के लिए उन्हें भारत के राष्ट्रीय साहित्य अकादमी द्वारा साहित्य अकादमी पुरस्कार दिया गया। डबराल की कविता का सभी प्रमुख भारतीय भाषाओं में अनुवाद किया गया है, और कई विदेशी भाषाओं जैसे अंग्रेजी, रूसी, जर्मन, डच, स्पेनिश, पुर्तगाली, इतालवी, फ्रेंच, पोलिश और बल्गेरियाई।