.webp)
डिजिटल डेस्क। भारत में राज्यपालों के सरकारी आवास, जिन्हें लंबे समय से 'राजभवन' कहा जाता रहा है, अब एक बड़े बदलाव से गुजर रहे हैं। केंद्र सरकार ने इन प्रतिष्ठित भवनों का नाम बदलकर 'लोकभवन' करने का फैसला लिया है। यह नाम परिवर्तन केवल एक शब्द का हेरफेर नहीं, बल्कि औपनिवेशिक विरासत (Colonial Legacy) को खत्म कर, इन संस्थानों को आम जनता और लोकतंत्र के करीब लाने की एक प्रशासनिक पहल है।
आइए, इस महत्वपूर्ण बदलाव के पीछे के कारणों, प्रक्रिया और इससे जुड़े सभी कानूनी तथा प्रशासनिक पहलुओं को विस्तार से समझते हैं।
ब्रिटिश राज के दौरान राज्यों में तैनात 'गवर्नर' के आवास को 'गवर्नर हाउस' कहा जाता था। आजादी के बाद, इन आवासों को 'राजभवन' के नाम से जाना जाने लगा। हालांकि, यह आम तौर पर कहा जाता है कि आजादी के बाद पहले गवर्नर-जनरल सी. राजगोपालाचारी ने इन्हें 'राजभवन' नाम दिया था, लेकिन इस दावे की पुष्टि करने वाला कोई आधिकारिक रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है।
अब 'राजभवन' को 'लोकभवन' में बदलने का मुख्य उद्देश्य स्पष्ट है :
.jpg)
कोलोनियल प्रतिध्वनि समाप्त करना : केंद्र सरकार का मानना है कि 'राजभवन' शब्द में कहीं न कहीं औपनिवेशिक शासन की झलक या 'राजा' की अवधारणा निहित है, जो आधुनिक लोकतंत्र की भावना के अनुरूप नहीं है।
जनता के करीब लाना : सरकार चाहती है कि ये भवन आम जनता के लिए खुले, सुलभ और अधिक 'मानवीय' बनें। 'लोकभवन' नाम 'जनता का भवन' या 'लोगों के लिए भवन' का भाव दर्शाता है, जो लोकतंत्र में इन संस्थानों की सही भूमिका को स्थापित करता है।
यह बदलाव केंद्रीय गृह मंत्रालय के निर्देशों और देश के राज्यपाल सम्मेलन की सिफारिशों के आधार पर किया जा रहा है, जिसका निर्देश 25 नवंबर 2025 को जारी किया गया था।
यह प्रक्रिया देश के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में लागू की जा रही है। अब तक आठ राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश ने इसे लागू कर दिया है :
शेष राज्यों में भी नाम बदलने की प्रक्रिया तेजी से जारी है।
यह एक जरूरी सवाल है कि क्या यह फैसला राज्यपाल या राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में आता है।
केंद्र सरकार का निर्णय : राजभवन का नाम बदलकर लोकभवन करने का अधिकार राज्यपाल या राज्य सरकार के पास नहीं है। यह पूरी तरह से केंद्रीय गृह मंत्रालय का निर्णय है।
राज्यपाल की भूमिका : हालांकि, हर राज्य में इसे लागू राज्यपाल ही कर रहे हैं, क्योंकि वे केंद्र सरकार के प्रतिनिधि होते हैं। इस प्रशासनिक निर्णय को लागू करने में राज्य सरकारों की कोई भूमिका नहीं है और न ही उनका कोई अधिकार है।
क्या संविधान में नाम बदलने का कोई प्रावधान है?
नहीं। भारतीय संविधान में इस तरह के नाम परिवर्तन के लिए कोई विशेष व्यवस्था या संवैधानिक अनुच्छेद नहीं दिया गया है। यह फैसला एक प्रशासनिक निर्णय है, जो केंद्र सरकार के गृह मंत्रालय के निर्देशों पर आधारित है।
अधिसूचना जारी करना : राज्यपाल इस नाम परिवर्तन को लागू करने के लिए या तो राष्ट्रपति से अनुमति लेते हैं या गृह मंत्रालय के 25 नवंबर 2025 के आदेश के अनुपालन में अधिसूचना (Notification) जारी करते हैं, जिससे नाम तत्काल प्रभाव से बदल जाता है। यह केंद्रीय कार्यपालिका (Central Executive) का अधिकार क्षेत्र है, क्योंकि राज्यपाल केंद्र द्वारा नियुक्त होते हैं और राजभवन केंद्र सरकार की संपत्ति है।
संविधान में इन आवासों को 'राजभवन' के रूप में नहीं, बल्कि 'राज्यपाल का आधिकारिक निवास' के तौर पर उल्लेखित किया गया है। महत्वपूर्ण बात यह है कि भवन का नाम जरूर बदल रहा है, लेकिन राज्यपाल के पद का नाम (Governor) वही रहेगा, क्योंकि संविधान में इसी पदनाम की व्यवस्था है।
इस नाम बदलाव के लिए राज्य विधानसभाओं की सहमति या अनुमति बिल्कुल भी जरूरी नहीं है। यह विशुद्ध रूप से गृह मंत्रालय का एक प्रशासनिक निर्णय है, जिसे राज्यपाल अधिसूचना जारी कर लागू करते हैं।
यदि कोई राज्यपाल गृह मंत्रालय के 25 नवंबर 2025 के निर्देश का पालन नहीं करता है, तो यह केंद्र सरकार के आदेश का उल्लंघन माना जाएगा, जो सभी राज्यपालों पर बाध्यकारी है।
दबाव और स्पष्टीकरण : गृह मंत्रालय राज्यपाल से स्पष्टीकरण मांग सकता है और इसे लागू करने के लिए दबाव डालेगा।
हटाने की सिफारिश : ऐसी स्थिति में, गृह मंत्रालय राष्ट्रपति की मंजूरी से राज्यपाल को हटाने या स्थानांतरित करने का सुझाव भी दे सकता है, जैसा कि अन्य विवादों में होता रहा है।
हालांकि, अब तक किसी भी राज्यपाल ने इस फैसले का विरोध नहीं किया है, और इसे अदालत में चुनौती दिए जाने की संभावना भी कम है क्योंकि यह एक प्रशासनिक और प्रतीकात्मक बदलाव है, न कि संवैधानिक।
केंद्र सरकार ने इस फैसले को संसद में विधायिका प्रक्रिया (Legislative Process) के तहत नहीं लाकर, सीधे लागू कर दिया। इसका कारण यह है कि यह नाम परिवर्तन कोई संवैधानिक या विधायी बदलाव नहीं है। राजभवन का नाम बदलना किसी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के नाम परिवर्तन जैसा संवैधानिक मामला नहीं है, बल्कि यह केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा जारी किया गया एक प्रशासनिक निर्देश है, जिसे संसद के किसी बिल या कानून के माध्यम से पारित करने की आवश्यकता नहीं है।
'राजभवन' के नाम को 'लोकभवन' करने पर मुख्य रूप से निम्नलिखित बदलाव होंगे :

1. सूचनापट और बोर्ड : राजभवन के सभी सूचनापटों, फलकों और बोर्डों पर लगे नाम को हटाकर नए नाम 'लोकभवन' की तख्तियां लगाई जाएंगी।
2. दस्तावेजीकरण : सरकारी दस्तावेज़ों, वेबसाइटों, विजिटिंग कार्डों, और सरकारी संचार (Government Communication) में भी नाम को अपडेट करना होगा।
3. प्रतीक : नए संकेतक, लोगो या प्रतीकों का प्रयोग भी किया जा सकता है।
इस पूरे बदलाव पर मामूली आर्थिक खर्च ही आएगा, जिसे सरकार के सामान्य प्रशासनिक खर्च में शामिल किया जाएगा।
इसे भी पढ़ें... Sanchar Saathi App: चोरी, फ्रॉड और फर्जी सिम पर रोक... संचार साथी को सरकार ने किया अनिवार्य, जानिए 10 बड़ी बातें
कुछ राज्यों की ओर से नाम बदलने की आधिकारिक प्रति पढ़ने के लिए क्लिक करें।