नई दिल्ली। इंदिरा गांधी के निजी सचिव, राजदार और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राजिंदर कुमार धवन का 81 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। उन्होंने लंबे समय से अपनी साथी रही अचला (59 वर्ष) से 74 साल की उम्र में साल 2012 में शादी की थी। पंजाब यूनिवर्सिटी से स्नातक आरके धवन 1962 से 1984 तक इंदिरा के निजी सचिव रहे। वह 1990 में राज्यसभा के लिए चुने गए। इसके अलावा वह कई संसदीय समितियों के सदस्य रहे। धवन की पढ़ाई देहरादून और बीएचयू में भी हुई थी। वह राज्यसभा के सांसद भी रहे थे।
1984 में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के समय वह घटनास्थल पर मौजूद थे और उन्हें इंदिरा का बेहद करीबी माना जाता था। उनके बारे में कहा जाता है कि इंदिरा युग में उनकी स्थिति एक समय देश के दूसरे या तीसरे नंबर के ताकतवर शख्सियत के रूप में होती थी। प्रधानमंत्री कार्यालय से लेकर प्रशासनिक नियुक्तियों तक हर विभाग में उनकी पकड़ मजबूत थी। साल 1984 में इंदिरा गांधी की उनके आवास पर हत्या के दौरान धवन भी वहीं मौजूद थे और उन्होंने पूरा घटना अपनी आंखों से देखी थी।
इस तरह बने थे इंदिरा के राजदार
इंदिरा गांधी के पास आरके धवन के आने का किस्सा काफी रोचक है। बताते हैं कि धवन के रिश्तेदार यशपाल कपूर इंदिरा जी के करीबी थे, वह ही धवन को इंदिरा जी के पास लाए थे। उस वक्त इंदिरा गांधी के पास कोई आधिकारिक पद नहीं था, फिर भी उन्होंने 1962 में धवन को निजी सचिव के रूप में अपने साथ रख लिया।
वह 24 घंटे इंदिरा गांधी के साथ काम करते थे। वही वरिष्ठ अधिकारियों और कैबिनेट मंत्रियों को इंदिरा गांधी के आदेशों के बारे में बताते थे। इंदिरा गांधी के समय में आरके धवन की इतनी चलती थी कि इंदिरा गांधी से मिलने के लिए समय मांगने वालों को धवन के न कहने के बाद बमुश्किल ही समय मिल पाता था।
आपातकाल के अलावा कोई राज नहीं खोला
आपातकाल लगाने व उसके बाद इंदिरा गांधी के दोबारा प्रधानमंत्री बनने के बाद धवन की स्थिति बेहद मजबूत हो गई थी। इस दौरान गांधी की ओर से लिए जा रहे फैसलों में उनकी भूमिका मानी जाती थी। हालांकि, धवन के कई बार जोर देकर कहा कि वह अपनी मर्जी से कुछ नहीं करते हैं। धवन के जरिये ही संजय गांधी सरकारी मामलों में काफी दखल देते थे। धवन ही संजय गांधी को बताते थे कि सरकार में अहम पदों के लिए किसे चुना जाए।
धवन ने इस बात का खुलासा किया था कि इमरजेंसी के लिए उस वक्त पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री रहे सिद्धार्थ शंकर रॉय ने इंदिरा गांधी पर दबाव बनाया था। वरिष्ठ पत्रकार करन थापर को दिए इंटरव्यू में धवन ने ये दावा किया था। उन्होंने कहा था कि मुख्य रूप से रॉय इमरजेंसी के कारण थे।
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8 जनवरी, 1975 को रॉय ने इंदिरा गांधी को पत्र लिख कर इमरजेंसी लागू करने के तरीके के बारे में कहा था। इसके छह महीने बाद जून 1975 में इंदिरा गांधी के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला आते ही रॉय फिर से इमजरेंसी की वकालत करने लगे थे और आखिरकार इमरजेंसी लगा दी गई थी।
राजीव गांधी की भी की मदद
हालांकि, देश के पहले परिवार के बारे में धवन के पास कई जानकारियां थीं, लेकिन उन्होंने उन जानकारियों का कभी खुलासा नहीं किया। हालांकि, इंदिरा गांधी की मौत के बाद जब राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने, तब उन्होंने धवन को पार्टी के सभी अहम पदों से हटा दिया गया। मगर, जब विपक्षी दलों ने बोफोर्स घोटाले और अन्य आरोपों से राजीव गांधी को घेरा, तो धवन को 1989 में प्रधानमंत्री राजीव गांधी का ऑफिसर ऑन स्पेशल ड्यूटी बना दिया गया। उन्होंने राष्ट्रपति जैल सिंह और राजीव गांधी के बीच शांति स्थापित कराई थी।