मल्टीमीडिया डेस्क। भारत की आजादी की लड़ाई में कई स्वतंत्रता सेनानियों का योगदान रहा है। इनमें से ही एक नाम है शहीद-ए-आजम भगत सिंह का। शहीद भगत सिंह ने ही 8 अप्रैल 1929 को लाहौर असेंबली पर बम फेंका था। लेकिन, क्या आपको पता है कि शहीद भगत सिंह के शहीद-ए-आजम बनने की की कहानी भी कम रोचक नहीं है। शायद कम ही लोग जानते हैं कि यदि दोस्तों ने लड़की के साथ संबंधों को लेकर ताना नहीं मारा होता तो लाहौर असेंबली में आठ अप्रैल 1929 को बम फेंकने शहीद भगत सिंह नहीं जाते।
वर्ष 1929 में अंग्रेजी सत्ता को भारत छोड़ने के लिए मजबूर करने के लिए लाहौर असेंबली में बम फेंकने की योजना बनाई गई थी। इसकी कहानी भी अजब है। भगत सिंह लाहौर के नेशनल कॉलेज में पढ़ते थे और उस समय एक सुंदर लड़की को उनसे प्रेम हो गया था। भगत सिंह के कारण वह भी क्रांतिकारी दल में शामिल हो गई थीं। मकसद सिर्फ एक था कि उसे भगत सिंह का साथ मिलता रहे। जब असेंबली में बम फेंकने की जिम्मेवारी देने की बात आई तो दल के नेता चंद्रशेखर आजाद ने भगत सिंह को यह जिम्मेदारी देने से मना कर दिया।
आजाद यह मानते थे कि दल को भगत सिंह की बहुत जरुरत थी। भगत सिंह के मित्र सुखदेव ने भगत सिंह पर ताना कसा कि वे उस लड़की के कारण बम फेंकने नहीं जा रहे हैं। भगत सिंह इस ताने से काफी दुखी हुए। उन्होंने दबाव बनाकर अपना चयन करवाया। भगत सिंह ने सुखदेव को नारी तथा प्रेम पर केंद्रित पत्र लिखा जो असेंबली बम धमाके के तीन दिन बाद सुखदेव की गिरफ्तारी के समय प्रकाश में आया। इस पत्र में भगत सिंह ने प्रेम को मानव चरित्र को ऊंचा करने वाला अवधारणा बताया।
भगत सिंह के निकटस्थ सहयोगी शिव वर्मा ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि भगत सिंह कभी शादी नहीं करना चाहते थे। एक बार शादी की चर्चा होने पर घर से भाग गए थे। पारिवारिक दवाब के चलते एक बार तो उनकी शादी तय भी हो गई थी लेकिन वह क्रांतिकारी दल में शामिल थे। उन्होंनें शादी से मना करने वाले परिवार को भेजे खत में लिखा था कि उनका जन्म भारत माता को आजादी दिलाने के लिए हुआ है। वह जब तक गुलामी की जंजीर से मुक्त नहीं होते वह किसी और जंजीर में नहीं बंध सकते।