
हेमंत पाठक, गोरखपुर। भागदौड़ की जिंदगी में बढ़ रहे मानसिक तनाव, कर्ज, विवाद, परीक्षा में असफलता, अवसाद आदि के चलते आत्महत्या की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं। ज्यादातर मामलों में देखा जाता है कि लोग सल्फास खाकर आत्महत्या की कोशिश करते हैं। कोई सही दवा नहीं होने से ऐसे लोगों की मौत लगभग तय होती है। लेकिन, बीआरडी मेडिकल कॉलेज के मेडिसिन विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. आरके शाही के नेतृत्व में हुए शोध ने इस दिशा में नई उम्मीद जगा दी है।
इलाज का ऐसा तरीका ढूढ़ निकाला गया है जो ऐसे मरीजों की जान बचाने में बेहद कारगर साबित हुआ। बीते तीन साल के भीतर आत्महत्या की कोशिश करने वाले 20 से 35 साल के 200 लोग मेडिसिन विभाग में भर्ती हुए। इसमें से 112 ने सल्फास खाया था। इनमें से 64 लोगों की जान इलाज की नई विधि से बचाई गई। यह शोध विश्व के प्रतिष्ठित बुल्गारिया के वर्ल्ड जर्नल ऑफ फार्मास्यूटिकल रिसर्च में प्रकाशित हुआ है।
ऐसे असर करता सल्फास
सल्फास (एल्यूमिनियम फास्फाइड) प्रभावी कीटनाशक है जो आसानी से उपलब्ध है। जब यह रसायन नमी के संपर्क में आता है तो अत्यंत जहरीली फास्फीन गैस बनाता है, जो शरीर के सभी अंगों व कोशिकाओं को प्रभावित करती है। जहर असर करने पर उल्टी, प्यास, पेट में दर्द, सिरदर्द, पतला दस्त, काला मल, खून की उल्टी, सांस में अवरोध, गुर्दे का काम न करना, हृदय की गति असामान्य होना, बेहोशी और लहसुन या सड़ी मछली का गंध आने के लक्षण मिलते हैं। इस जहर की काट के लिए कोई दवा मौजूद नहीं है जिससे इलाज बेहद चुनौती भरा होता है।
यह रहा शोध
शोध के दौरान सल्फास खाए लोगों के आमाशय की सफाई पोटैशियम परमैंगनेट से की गई। गैस्ट्रिक वॉश के बाद सौ ग्राम सक्रिय चारकोल तथा मेडिकेटेड लिक्विड पैराफीन मरीज की नाक के रास्ते पाइप से दी गई। डॉ. शाही के मुताबिक, यह लिक्विड फास्फीन गैस को सोख कर शौच के रास्ते बाहर निकल देती है। इस दौरान मरीज को आइवी फ्लूइड दिया गया।
डोपामीन व डोबुटामीन से सामान्य रखा गया। पूरी प्रक्रिया के दौरान मरीज के रक्तचाप पर निगाह रखी गई। पांच फीसद डेक्सट्रोज के हर सौ मिली में एक ग्राम मैग्नीसियम सल्फेट तीन से छह घंटे तक हर घंटे पर दिया गया। इसके बाद पांच से छह दिन तक यही इलाज छह घंटे पर दिया गया।