आजादी के बाद भारत का बंटवारा होकर भले ही दो देश भारत और पाकिस्तान बने, लेकिन यदि वक्त ने तब थोड़ी-सी भी करवट ली होती तो दुनिया के नक्शे पर एक और देश 'पख्तूनिस्तान" भी अस्तित्व में आ गया होता। यदि ऐसा हुआ होता तो पाकिस्तान वैसा नहीं होता, जैसा कि आज है।
तब वो बहुत छोटा, कमजोर और दूसरों के संसाधनों पर पलने-बढ़ने वाला मुल्क होता। मगर ऐसा हो न सका और पख्तूनिस्तान बनते-बनते रह गया।
किस्सा कुछ यूं था कि जब मुस्लिम लीग के नेता मोहम्मद अली जिन्ना भारत का बंटवारा कर मुसलमानों के लिए अलग देश पाकिस्तान की मांग कर रहे थे, उसी समय अफगानिस्तान से लगी भारतीय सीमा पर रहने वाले पश्तो समुदाय के लोगों ने भी अलग देश पख्तूनिस्तान की मांग उठानी शुरू की।
जल्द ही इस मांग ने जोर पकड़ा और महात्मा गांधी से लेकर पंडित जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल और अंग्रेजों तक ये बात जा पहुंची। पख्तूनिस्तान की मांग उस समय के सम्मानित मुस्लिम नेता और सीमांत गांधी कहे जाने वाले खान अब्दुल गफ्फार खान ने उठाई थी।
दरअसल, वे भारत से अलग होना नहीं चाहते थे और साथ रहकर ही पश्तो समुदाय का उज्ज्वल भविष्य देखते थे। मगर जब जिन्ना ने अलग देश पाकिस्तान की जिद पकड़ ली तो तय होने लगा कि सिंध, पंजाब और बलूचिस्तान इलाका मिलाकर पाकिस्तान (पश्चिमी) बनेगा।
खान अब्दुल गफ्फार खान मुस्लिम होने के बावजूद मुसलमानों के लिए बन रहे देश पाकिस्तान में जुड़ना नहीं चाहते थे। मगर जब बंटवारे को रोकने की तमाम कोशिशें नाकाम होती दिखीं तो उन्होंने एक नया विचार उछाला। उन्होंने जिन्ना के समर्थक मुस्लिमों से अलग पश्तो समुदाय के लोगों के लिए अलग देश पख्तूनिस्तान की मांग जोर-शोर से उठाई।
इसे लेकर अंग्रेज और तत्कालीन भारतीय नेता तो हैरत में पड़े ही, सबसे ज्यादा धक्का जिन्ना को लगा। जिन्ना जानते थे कि यदि पख्तूनिस्तान अलग देश बना तो पाकिस्तान महज सूखे रेगिस्तान का टुकड़ा बनकर रह जाएगा।
इस सुगबुगाहट के बीच अंग्रेजों की ओर से भारत के बंटवारे का मामला देख रहे माउंटबेटन इसके लिए राजी नहीं हुए। नतीजतन पख्तूनिस्तान बनते-बनते रह गया। इससे निराश खान अब्दुल गफ्फार खान कांग्रेस कार्यकारिणी की बैठक में रो दिए। वे बोले- 'हम तो तबाह हो गए। अब जल्द ही हम हिंदुस्तान के लिए पराए हो जाएंगे।
आजादी के लिए लड़ी गई हमारी लंबी लड़ाई पाकिस्तान के जन्म के रूप में खत्म होगी, जबकि हम हिंदुस्तान में रहना चाहते हैं।"
बहरहाल, खान को अपने समुदाय के साथ अपनी पसंद के देश हिंदुस्तान को छोड़कर पाकिस्तान जाना पड़ा। इस तरह पश्तो समुदाय के लिए पख्तूनिस्तान का उनका सपना, सपना ही रह गया। -नईदुनिया संदर्भ